(सौगत मुखोपाध्याय)
कोलकाता, 18 जून (भाषा) संघर्ष प्रभावित ईरान में फंसे भारतीय पर्यटक फाल्गुनी डे तेहरान से 500 किलोमीटर की जोखिम भरी सड़क यात्रा करने के बाद अजरबैजान से लगती अस्तारा सीमा पर जैसे-तैसे मंगलवार शाम को पहुंच गए, लेकिन स्वदेश पहुंचने में आ रही परेशानियां खत्म होने का नाम नहीं ले रहीं।
डे को सीमा पार कर अजरबैजान जाने और बाकू पहुंचने के लिए आवश्यक जटिल कागजी कार्रवाई पूरी करनी होगी। बाकू से उनकी घर लौटने की योजना है।
डे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को भेजे ‘वॉयस मैसेज’ (श्रव्य संदेश) के जरिए कहा, ‘‘मैं यह यात्रा कर तेहरान में बमों से बचने में कामयाब हो गया लेकिन अब मैं ईरान की अस्तारा सीमा पर फंस गया हूं क्योंकि अजरबैजान के प्राधिकारी मुझे सरकार द्वारा जारी विशेष प्रवासन कोड के बिना उनके देश में आने नहीं दे रहे और मेरा ई-वीजा इस मामले में किसी काम का नहीं है।’’
कोलकाता के कॉलेज प्रोफेसर ने कहा, ‘‘मेरी स्थिति के बारे में लाख समझाने के बावजूद मुझे बताया गया कि मुझे वह कोड मिलने में कम से कम एक पखवाड़ा और लगेगा। मुझे नहीं पता कि मैं ईरान में इतने लंबे समय तक कैसे जीवित रह पाऊंगा।’’
उत्तर-पूर्वी ईरान में कैस्पियन सागर के पास स्थित अस्तारा से बाकू स्थित किसी होटल के कमरे तक सुरक्षित पहुंचने के लिए 300 किलोमीटर की अतिरिक्त यात्रा करना डे के लिए आसान नहीं है।
डे की स्थिति के बारे में पीटीआई-भाषा ने मंगलवार को खबर प्रसारित की थी। डे दक्षिण कोलकाता स्थित एक महिला क्रिश्चियन कॉलेज में सहायक प्रोफेसर हैं और शौकिया तौर पर एक पर्वतारोही भी हैं। वह ईरान की राजधानी के उत्तरपूर्वी किनारे पर 5,610 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एशिया की सबसे ऊंची ज्वालामुखी चोटी ‘दामावंद’ को फतह करने के उद्देश्य से पांच जून को तेहरान गए थे लेकिन वह इजराइली मिसाइल हमलों के कारण वहीं फंस गए।
डे ने कहा, ‘‘मैं इस समय शारीरिक और भावनात्मक रूप से पूरी तरह से थक चुका हूं। साथ ही मेरे पास पैसे नहीं हैं और घर पहुंचने को लेकर अनिश्चितता की स्थिति मुझे परेशान कर रही है। ऐसा लगता है कि सुरक्षित निकलने के मेरे सारे प्रयास और मेरे परिवार एवं दोस्तों द्वारा खर्च किया गया पैसा बेकार हो गया है।’’
डे ने बताया कि कोलकाता से उनके परिवार ने बाकू के होटल में कमरा आरक्षित कराया था जिसमें डे को बुधवार सुबह पहुंचना था, लेकिन सीमा चौकी पर जटिलताओं के कारण वे सीमा पार नहीं कर पाए और उन्हें आरक्षण रद्द कराना पड़ा।
उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि बाकू से मुंबई जाने वाली जिस उड़ान के लिए मैंने टिकट आरक्षित किया था, उसे भी चारों ओर अनिश्चितताओं की स्थिति के कारण रद्द कराना पड़ा है।’’
डे ने कहा, ‘‘तेहरान में किसी ने भी मुझे यह नहीं बताया था कि मेरा ई-वीजा जमीन के रास्ते अजरबैजान जाने के लिए पर्याप्त नहीं है और मुझे खास तौर पर इस तरह की युद्ध स्थिति में इस विशेष प्रवासन पास कोड की भी जरूरत है। मैंने समय बर्बाद किए बिना इस कोड के लिए आवेदन प्रक्रिया शुरू कर दी लेकिन प्राधिकारियों ने मुझे ई-मेल के जरिए जवाब दिया कि इस प्रक्रिया को पूरा होने में कम से कम 15 दिन लगेंगे।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं ऐसी जगह पर इतने लंबे समय तक कैसे इंतजार कर सकता हूं? यहां विदेशियों की लंबी कतार है और उनके पास हर तरह के वीजा हैं। मैं उन्हें अपने-अपने वतन लौटने के लिए सीमा पार करते हुए देख सकता हूं लेकिन मेरे जैसे भारतीयों को बताया गया है कि सीमा पार करने के लिए हमारे पास प्रवासन कोड होना अनिवार्य है।’’
डे पर हालांकि मंडरा रहे इन काले बादलों के बीच उनके लिए राहत की एक बात यह है कि उन्हें अपने दोस्तों, परिवार और उस दूर देश में अजनबियों से भी लगातार मदद मिल रही है।
डे ने कहा, ‘‘कलकत्ता विश्वविद्यालय की कुलपति शांता दत्ता लगातार मेरे संपर्क में हैं। वह दूतावास और अधिकारियों से संपर्क करने में मेरी मदद कर रही हैं ताकि मैं (ईरान से) सुरक्षित बाहर निकल सकूं। पर्वतारोही देबाशीष बिस्वास भी मेरी मदद कर रहे हैं। तेहरान में भारतीय दूतावास की सांस्कृतिक शाखा के एक वरिष्ठ अधिकारी बलराम शुक्ला भी मेरी सहायता कर रहे हैं।’’
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि तेहरान और बाकू दोनों में दूतावास के अधिकारी ईरान में फंसे भारतीयों की मदद के लिए युद्धस्तर पर काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं जिस विशेष परिस्थिति में फंसा हुआ हूं, उसे देखते हुए दूतावासों ने अब मेरे दस्तावेज अजरबैजानी प्राधिकारियों को भेज दिए हैं ताकि मैं इस देश से बाहर निकल सकूं।’’
डे ने बताया कि उन्हें तेहरान से अस्तारा जाते समय भोजन, शौच, ईंधन आदि के लिए कार को कई बार बीच में रोकना पड़ा।
डे ने कहा, ‘‘ईरान में कार में ईंधन भराने की सीमा तय है। निर्धारित सीमा से अधिक ईंधन भरवाना संभव नहीं है इसलिए हमें टैंक भरवाने के लिए कई बार रुकना पड़ा।’’
डे ने कहा कि वर्तमान अनिश्चितता को देखते हुए अब वह आठ घंटे की यात्रा कर आर्मेनिया सीमा तक जाने के विकल्प पर विचार कर रहे हैं ताकि वह वहां से सीमा पार कर ईरान से बाहर निकल सके।
भाषा
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