(भास्कर मुखर्जी)
नयी दिल्ली, 27 मई (भाषा) कुछ बच्चों के लिए हर रोज जिंदगी की शुरूआत मां की गोद से नहीं बल्कि जेल की चारदीवारी और सलाखों के पीछे शुरू होती है। जेल में सजा काट रही माताओं की संतानों की शुरुआती यादें खेल के मैदानों या पार्क की नहीं, बल्कि सलाखों वाली खिड़कियों और वर्दीधारी सुरक्षाकर्मियों की होती हैं।
एक अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में 31 बच्चे, जिनमें लड़के और लड़कियां दोनों हैं, दिल्ली की उच्च सुरक्षा वाली तिहाड़ और मंडोली जेलों में कैद अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं।
हालांकि जेल प्रशासन यह सुनिश्चित करता है कि इन बच्चों को उनके जन्म की परिस्थितियों के कारण कोई कष्ट न उठाना पड़े।
अधिकारी ने कहा, ‘‘प्लेस्कूल से लेकर नियमित चिकित्सा जांच और टीकाकरण तक, बच्चे की हर जरूरत का ध्यान रखा जाता है। हम ऐसा माहौल प्रदान करने का प्रयास करते हैं, जहां उनके बुनियादी विकास की जरूरतें पूरी हो सकें।’’
एशिया के सबसे बड़े जेल परिसर तिहाड़ में वर्तमान में लगभग 19,000 कैदी हैं, जिनमें विचाराधीन और दोषी समेत 506 महिलाएं शामिल हैं। वहीं, 237 महिला कैदी मंडोली जेल में बंद हैं।
जेल सूत्रों का कहना है कि तिहाड़ जेल में 11 बच्चे अपनी माताओं के साथ रह रहे हैं, जिनमें 11 लड़के और 10 लड़कियां हैं जबकि मंडोली जेल में चार लड़के और छह लड़कियां हैं।
अधिकारियों का कहना है कि बच्चों को केवल छह साल की उम्र तक ही कैदी माताओं के साथ रहने की अनुमति है।
अधिकारी ने कहा, ‘‘हम उनके (बच्चों) रिश्तेदारों से उनकी देखभाल करने के लिए कहते हैं, लेकिन कुछ मामलों में, जब रिश्तेदार भी उन्हें अपने पास रखने के लिए तैयार नहीं होते, तो हम उन्हें बाल देखभाल केंद्रों या कुछ गैर सरकारी संगठनों को सौंप देते हैं।’’
उन्होंने कहा कि वे विभिन्न हस्तक्षेपों के माध्यम से ऐसे बच्चों का समग्र विकास सुनिश्चित करते हैं, ताकि उन्हें अपने शैक्षणिक, सामाजिक और भावनात्मक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सके।
भाषा शफीक नरेश
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