(फाइल फोटो के साथ)
नयी दिल्ली, 19 जून (भाषा) केंद्रीय मंत्री एच. डी. कुमारस्वामी ने कहा कि हरित इस्पात के उत्पादन के लिए कम कार्बन उत्सर्जन वाली प्रौद्योगिकियों को अपनाना अब एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता है।
उन्होंने साथ ही कार्बन उत्सर्जन कम करने की दिशा में कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया।
इस्पात मंत्री ने यह टिप्पणी इस्पात क्षेत्र में नवाचार एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आयोजित ‘बिगमिंट फ्यूचर स्टील कॉन्क्लेव’ को संबोधित करते हुए की।
मंत्री ने इस कार्यक्रम को बुधवार को ऑनलाइन संबोधित करते हुए कहा कि हरित इस्पात और स्वच्छ प्रौद्योगिकी अब एक विकल्प नहीं बल्कि एक आवश्यकता है।
कुमारस्वामी ने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में हमारा इस्पात उद्योग 2030 तक 30 करोड़ टन क्षमता तक पहुंचने के साहसिक लक्ष्य की ओर तेजी से आगे बढ़ रहा है। हम न केवल विस्तार करने बल्कि 2070 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य के अनुरूप स्थिरता लाने को भी प्रतिबद्ध हैं।’’
सरकार ने दिसंबर 2024 में हरित इस्पात की परिभाषा पेश की थी और उद्योग से आग्रह किया था कि वे तैयार उत्पादों पर प्रति टन कार्बन उत्सर्जन को 2.2 टन के स्तर से नीचे लाने के लिए कदम उठाएं।
कुमारस्वामी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में इस्पात उद्योग की हिस्सेदारी करीब सात प्रतिशत है। इस्पात के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक भारत के पास, वृद्धि को बनाए रखते हुए उत्सर्जन को कम करने में अग्रणी भूमिका निभाने की जिम्मेदारी एवं अवसर दोनों हैं।
मंत्री ने इस मौके पर उत्पादन प्रक्रिया के दौरान उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के आधार पर उत्पादों को ‘स्टार रेटिंग’ देने के लिए हरित इस्पात का वर्गीकरण खाका भी जारी किया।
उन्होंने कहा कि नया खाका इस्पात उत्पादन को कार्बन मुक्त करने के प्रयासों को राह दिखाएगा और मूल्य श्रृंखला में हरित प्रथाओं को प्रोत्साहित करेगा।
मंत्री ने कहा कि सरकार चुनौतियों का भी सीधे तौर पर समाधान कर रही है, चाहे वह लौह अयस्क और कोकिंग कोल जैसे कच्चे माल की सुरक्षा हो या उभरती वैश्विक प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटना हो।
उन्होंने कहा, ‘‘ मंत्रालय हमारे घरेलू उद्योग का संरक्षण करने एवं उसे बढ़ावा देने के लिए नीतियों व सुरक्षा उपायों की सक्रिय रूप से समीक्षा कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भारत न केवल प्रतिस्पर्धा करे बल्कि वैश्विक मंच पर अग्रणी भी रहे।’’
भाषा निहारिका मनीषा
मनीषा