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Friday, June 20, 2025

“पति की हत्या के मामलों में महिलाएं सुर्खियों में, समाज के दोहरे रवैये पर उठे सवाल”

Fast News"पति की हत्या के मामलों में महिलाएं सुर्खियों में, समाज के दोहरे रवैये पर उठे सवाल"

(मनीष सैन और मानिक गुप्ता)

नयी दिल्ली, 19 जून (भाषा) महिला और पति की कथित ‘हत्यारिन’ की दोहरी पहचान के कारण सोनम, मुस्कान, शिवानी, रवीना, राधिका… पिछले कुछ महीनों में न केवल सुर्खियों में रहीं और बदनामी पायी बल्कि उन्होंने स्त्रीत्व और अपराध के बारे में पारंपरिक धारणाओं को भी चुनौती दी है।

देश के विभिन्न हिस्सों में रह रहीं ये युवतियां रोजमर्रा की अपनी साधारण जिंदगी जी रही थीं लेकिन अपने पतियों की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद वे रातोंरात सुर्खियों में आ गयीं। छोटे शहरों की इन औरतों ने सबसे क्रूर तरीके से महिलाओं के लिए समाज में सदियों से गढ़ी धारणाओं को तोड़ा, जिसके बाद सोशल मीडिया पर स्त्रीद्वेषी ‘मीम्स’ और चुटकलों का दौर चल पड़ा।

सवाल कई हैं – महिलाएं अपराध क्यों करती हैं, उनके साथ पुरुष अपराधियों से अलग व्यवहार क्यों किया जाता है, क्या वे सशक्तीकरण का प्रदर्शन कर रही हैं या फिर यह संकेत दे रही हैं कि वास्तव में वे अबला नारी हैं।

विद्वानों का मानना है कि यह सामाजिक कलंक, कठोर लैंगिक भूमिकाओं और महिलाओं के लिए अवास्तविक मानदंडों की मिलीजुली प्रतिक्रिया है।

ब्रिटिश अपराध विज्ञानी फ्रांसिस हीडेनसॉन ने इस कड़ी सामाजिक प्रतिक्रिया को ‘डबल डेविएंस थ्योरी’ बताया यानी कि ऐसे अपराध की स्थिति में महिलाओं के साथ पुरुषों की तुलना में ज्यादा कठोर बर्ताव किया जाता है और समाज उन्हें दोहरे चश्मे से देखता है क्योंकि महिलाओं के लिए मान लिया गया है कि उन्हें किस तरह से व्यवहार करना चाहिए और उनके लिए कुछ स्वीकार्य सामाजिक नियम गढ़े गए हैं।

दिल्ली में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति एवं अपराध विज्ञान के प्रोफेसर जी एस बाजपेई ने कहा कि एक महिला का किसी अपराध को अंजाम देना ‘‘न केवल किसी कानूनी नियम का उल्लंघन होता है बल्कि यह लैंगिक नियम का भी उल्लंघन माना जाता है।’’

बाजपेई ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे देखभाल करने वाली और आज्ञाकारी हों। इसलिए जो महिला अपराध करती है उसे पथभ्रष्ट, असामान्य और असाधारण माना जाता है। लेकिन पुरुषों के लिए ऐसा नहीं माना जाता है। इसलिए कुछ विद्वानों ने उन्हें ‘डबल डेविएंट’ बताया है और अत: उन्हें ‘दोगुनी सजा मिलनी चाहिए।’ ऐसे मामले में समाज के लिए अपराध की प्रतिक्रिया में उसका महिला होना ज्यादा बड़ी बात हो जाती है। वह केवल अपराध नहीं है बल्कि महिला अपराधी है।’’

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2022 में महिलाओं के खिलाफ 4.45 लाख से अधिक अपराधों की सूचना दी। हालांकि, रिकॉर्ड में महिलाओं द्वारा किए गए अपराधों के लिए अलग श्रेणी नहीं है क्योंकि उनकी संख्या कम है। फिर भी महिलाओं द्वारा किए गए गंभीर अपराध, चाहे उनकी संख्या कितनी भी कम क्यों न हो, अपना अलग प्रभाव डालते हैं।

अपने कारनामों से आज घर-घर में पहचान बना चुकी सोनम रघुवंशी को मंगलवार को मेघालय ले जाया गया जहां उसके पति राजा रघुवंशी की हत्या की कड़ियों को जोड़ने के लिए अपराध का नाट्य रूपांतरण किया गया। इंदौर का यह नवविवाहित जोड़ा हनीमून मनाने मेघालय गया था जहां दुल्हन ने कथित तौर पर अपने पूर्व प्रेमी और तीन अन्य लोगों के साथ मिलकर पति की हत्या कर दी।

मेरठ में इस वर्ष मार्च में मुस्कान रस्तोगी ने अपने प्रेमी साहिल शुक्ला के साथ मिलकर अपने पति सौरभ राजपूत की कथित तौर पर चाकू घोंपकर हत्या कर दी थी और उसके शव के टुकड़े कर दिए तथा उन्हें सीमेंट से भरे एक ड्रम में भर दिया था।

अप्रैल में बिजनौर की शिवानी ने दावा किया कि उसके पति की दिल का दौरा पड़ने से मौत हुई है। पुलिस ने बाद में खुलासा किया कि शिवानी ने दीपक की गला घोंटकर हत्या की थी। अप्रैल में ही भिवानी की यूट्यूबर रवीना ने अपने एक पुरुष मित्र की मदद से अपने पति की कथित तौर पर इसलिए हत्या कर दी थी कि उसने दोनों के बीच ‘‘करीबी’’ और उसकी सोशल मीडिया गतिविधियों पर आपत्ति जतायी थी।

जून में सांगली की रहने वाली राधिका ने शादी के महज 15 दिन बाद ही अपने पति अनिल की कथित तौर पर हत्या कर दी थी।

राधिका (32) के अलावा सभी आरोपी महिलाओं की उम्र 20 वर्ष के आसपास है।

पत्नियों द्वारा अपने पतियों की कथित तौर पर हत्या कराने की हाल की इन घटनाओं से सोशल मीडिया पर बहुत आक्रोश उमड़ा तथा मीडिया ने लंबे समय तक ऐसी खबरें छापी, जिसमें प्रायः महिलाओं को शातिर अपराधी के रूप में और पुरुषों को पत्नियों द्वारा सताए गए असहाय पीड़ितों के रूप में दर्शाया गया।

महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा कि जनता का ध्यान गलत दिशा में है।

भयाना ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यह दिखाता है कि जब महिलाएं उन्हें सौंपी गयी भूमिकाओं को तोड़ती हैं तो उनके प्रति हम कितने असहज हो जाते हैं। इस तरह का सामाजिक दमन अंतत: आक्रोश को जन्म देगा। मीडिया इसे ‘सोनम ने ऐसा किया’ बताकर सनसनीखेज रूप दे रहा है जैसे कि उसने अकेले ही ऐसा किया जबकि इसमें पुरुष भी शामिल थे।’’

सोनम रघुवंशी के मामले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उसके लिए यह इजहार करने से ज्यादा आसान एक हत्या की साजिश रचना था कि उसे किसी और से प्यार है।

भयाना ने कहा, ‘‘हमारे समाज में महिलाओं को इसी तरह की मनोवैज्ञानिक जद्दोजहद का सामना करना पड़ता है। उसके अपराध का बचाव नहीं किया जा रहा है, लेकिन हमें मामले की जड़ तक जाने की जरूरत है कि कैसे हमारी संस्कृति महिलाओं को एक रूढ़िवादी तरीके से व्यवहार करने के लिए तैयार करती है।’’

बाजपेई ने कहा, ‘‘एक समाज जो महिलाओं को देखभाल करने वाली और सम्मान की कसौटी के रूप में देखता है, निस्संदेह तब परेशान होता है जब ये महिलाएं आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होती हैं।’’

उन्होंने तर्क दिया कि अंतरंग साथी द्वारा हिंसा ‘‘न तो नयी बात है और न ही असामान्य’’ है, क्योंकि वैश्विक और राष्ट्रीय रुझानों से पता चलता है कि ‘‘पत्नियों द्वारा अपने पतियों की हत्या करने की घटनाओं की तुलना में पतियों द्वारा अपनी पत्नियों की हत्या करने की घटनाएं कहीं अधिक हैं।’’

भाषा गोला नरेश

नरेश

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