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Saturday, June 21, 2025

एससीएओआरए के सीजेआई को पत्र लिखने के बाद ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता को भेजा समन वापस लिया

Newsएससीएओआरए के सीजेआई को पत्र लिखने के बाद ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता को भेजा समन वापस लिया

नयी दिल्ली, 20 जून (भाषा) प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने एक मामले में कथित तौर पर कानूनी सलाह देने के लिए एक वरिष्ठ अधिवक्ता को जारी अपना समन शुक्रवार को वापस ले लिया।

सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) ने भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) को पत्र लिखकर ईडी की कार्रवाई की जानकारी दी थी।

ईडी ने वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप वेणुगोपाल को पत्र लिखकर सूचित किया कि उन्हें जारी किए गए समन “तत्काल प्रभाव” से वापस ले लिये गए हैं।

इससे पहले, एससीएओआरए के अध्यक्ष विपिन नायर ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा था कि यह “बेहद परेशान करने वाला घटनाक्रम है, जिसका कानूनी पेशे की स्वतंत्रता और वकील-ग्राहक गोपनीयता के मूलभूत सिद्धांत पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।”

यह पत्र ईडी द्वारा वरिष्ठ वकील प्रताप वेणुगोपाल को तलब किए जाने के बाद लिखा गया।

पत्र में बताया गया है, ‘‘वरिष्ठ अधिवक्ता प्रताप वेणुगोपाल को 19 जून को प्रवर्तन निदेशालय ने समन भेजा है। यह समन एक जांच के सिलसिले में है, जो केयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दी गई कर्मचारी स्टॉक विकल्प योजना (ईएसओपी) से जुड़ी है। इस जांच में उस कानूनी राय का भी जिक्र है जो वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने दी थी। प्रताप वेणुगोपाल उस समय एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड थे और यह राय रेलिगेयर कंपनी की पूर्व अध्यक्ष रश्मि सलूजा को स्टॉक विकल्प देने के समर्थन में थी।’’

एमएलए की धारा 50 “समन, दस्तावेज प्रस्तुत करने और साक्ष्य देने आदि के संबंध में प्राधिकारियों की शक्तियों” से संबंधित है।

पत्र में कहा गया है कि वेणुगोपाल को 24 जून को ईडी के समक्ष पेश होने का निर्देश दिया गया था।

इसमें कहा गया है, “यह उल्लेख करना आवश्यक होगा कि इसी तरह का नोटिस पहले भी ईडी द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार को जारी किया गया था, हालांकि बाद में इसे वापस ले लिया गया था।”

कानूनी बिरादरी में वेणुगोपाल की गिनती बेहद सम्मानित हस्तियों में होती थी। उनकी ईमानदारी और पेशेवर निष्ठा को “बेजोड़” बताया गया है।

पत्र में कहा गया, “हमारा मानना ​​है कि प्रवर्तन निदेशालय की ये कार्रवाई वकील-ग्राहक के पवित्र विशेषाधिकार का अनुचित उल्लंघन है, तथा वकीलों की स्वायत्तता और निर्भीकता से काम करने के लिए गंभीर खतरा पैदा करती हैं।”

भाषा प्रशांत सुरेश

सुरेश

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