पाकिस्तान ने राष्ट्रपति ट्रंप की रणनीतिक प्राथमिकताओं के साथ तालमेल बिठाना शुरू कर दिया है. पिछले कुछ वर्षों से उसके अमेरिका के साथ संबंधों को फिर से स्थापित करने के प्रयास शुरू हुए हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह है इस्लामाबाद की आर्थिक कमजोरी और सुरक्षा सहायता. क्योंकि भारत के खिलाफ लगातार प्रोक्सी वॉर छेड़ने वाला पाकिस्तान कई बार मुंह की खा चुका है. ऐसे में अब वह वाशिंगटन को अपने खेमे में करना चाहता है.
अमेरिका पाकिस्तान के साथ संभावित रूप से 29 प्रतिशत टैरिफ को कम करने के लिए बातचीत कर रहा था. इस्लामाबाद ने अप्रैल में एक खनिज निवेश मंच की मेजबानी की. इस दौरान अमेरिकी फर्मों को अपने अनुमानित 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के अप्रयुक्त खनिज भंडार में निवेश करने के अवसरों को बढ़ावा दिया और वो भी अनुकूल रियायतें और आकर्षक मार्जिन की पेशकश के साथ. मकसद साफ है- अमेरिकी फर्मों के लिए बाजार पहुंच का विस्तार करना और व्यापार घाटे को कम करना.
पाकिस्तान ने वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल (WLF) के साथ एक हाई-प्रोफाइल क्रिप्टोकरेंसी साझेदारी की है. यह ट्रम्प परिवार से जुड़ी एक फर्म है और इसका लक्ष्य क्रिप्टोकरेंसी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में ग्लोबल लीडर बनना है. पाकिस्तान ने WLF के सह-संस्थापक ज़ाचरी विटकॉफ की मेजबानी भी की, जो मिडिल ईस्ट में अमेरिकी विशेष दूत स्टीव विटकॉफ के बेटे भी हैं. फील्ड मार्शल असीम मुनीर समेत कई पाकिस्तानी अधिकारी विटकॉफ के बेटे के साथ बैठकें कर चुके हैं. अब पाक क्रिप्टो काउंसिल ने पाकिस्तान के 17,000 करोड़ रुपए के क्रिप्टो बिजनेस का करार वर्ल्ड लिबर्टी फाइनेंशियल से कर लिया है. दूसरी ओर, पाकिस्तान सरकार ने क्रिप्टो बिजनेस के अनुकूल नीतियों में बदलाव भी शुरू कर दिए हैं.
इन सबसे पाकिस्तान क्या फायदा चाह रहा है?
अमेरिकी कंपनियों के प्रवेश से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में बहुत जरूरी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आएगा। दूसरा, अमेरिकी फर्मों की भौतिक उपस्थिति का भी असर पड़ेगा. क्योंकि खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान जैसे क्षेत्र, जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध हैं, लेकिन वहां पाकिस्तान के लिए सुरक्षा की दृष्टि से हालात ठीक नहीं है. ऐसे में अमेरिका का दखल पाकिस्तान को बूस्टर दे सकता है.
चीन नाराज नहीं होगा?
पाकिस्तान में निवेश करना अमेरिकी कंपनियों के लिए एक सोचा-समझा जुआ है. पाकिस्तान के बाजार से पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए, अमेरिकी कंपनियों को चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के तहत परियोजनाओं में शामिल होने की आवश्यकता हो सकती है. लेकिन यह गलियारा चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) का हिस्सा है. ऐसे में अमेरिका यहां कैसे शामिल हो, यह बड़ी चुनौती है.
दूसरी ओर, चीन के करीब आ चुका पाकिस्तान अमेरिका को छोड़ना भी नहीं चाहता है. लंबे समय से वाशिंगटन को यह भरोसा दिलाने के उद्देश्य से एक कहानी गढ़ने की कोशिश कर रहा है कि बीजिंग के साथ रहने के बावजूद वह अमेरिकी हितों को कमजोर नहीं करेगा और न ही क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव से प्रभावित होगा