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Wednesday, June 25, 2025

एनआईवी के प्रीक्लिनिकल अध्ययनों में ‘फेविपिराविर’ का ‘चांदीपुरा विषाणु’ के खिलाफ आशाजनक परिणाम

Newsएनआईवी के प्रीक्लिनिकल अध्ययनों में ‘फेविपिराविर’ का ‘चांदीपुरा विषाणु’ के खिलाफ आशाजनक परिणाम

(पायल बनर्जी)

नयी दिल्ली, 24 जून (भाषा) पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (एनआईवी) द्वारा किए गए प्रीक्लिनिकल अध्ययनों में पाया गया है कि ‘एंटी-वायरल’ दवा ‘फेविपिराविर’ में ‘चांदीपुरा विषाणु’ के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता है।

‘चांदीपुरा वायरस’ (सीएचपीवी) का प्रभाव मध्य भारत में नजर आता है तथा इसके लक्षणों में तेज बुखार और दौरे शामिल हैं। यह संक्रमण ‘इंसेफेलाइटिस’ भी पैदा करता है।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) से संबद्ध संस्थान एनआईवी के निदेशक डॉ. नवीन कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि चूहों पर किए गए अध्ययनों से पता चला है कि ‘फेविपिराविर’, संक्रमित जानवरों में ‘वायरल लोड (विषाणु की संख्या/मात्रा)’ को कम कर सकता है और जीवित रहने की दर में सुधार कर सकता है।

इस विषाणु की पहचान 1965 में महाराष्ट्र में बुखार के मामलों के नैदानिक ​​नमूनों से की गई थी।

पहला उल्लेखनीय प्रकोप 2003 में तेलंगाना में देखा गया था, जो उस समय आंध्र प्रदेश का हिस्सा था। इससे 300 से ज़्यादा बच्चे संक्रमित हो गये थे और 50 प्रतिशत से ज़्यादा मौतें हुईं।

वर्ष 2003 और 2007 के बीच महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र, तेलंगाना और गुजरात से भी मामले सामने आए। वर्ष 2007 के बाद भी स्थानिक क्षेत्रों से छिटपुट मामले सामने आए।

वर्ष 2024 में गुजरात और महाराष्ट्र में आसपास के क्षेत्रों से एक बड़ा प्रकोप सामने आया, जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले 20 वर्षों में सबसे बड़ा प्रकोप बताया था।

एनआईवी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. विजय बोंद्रे ने कहा कि गुजरात (61 मामले) और आसपास के क्षेत्रों से संक्रमण के 64 मामलों की पुष्टि के साथ यह बाल चिकित्सा आबादी के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है।

डॉ. कुमार ने बताया, ‘‘एनआईवी सीएचपीवी के खिलाफ संभावित एंटी-वायरल की पहचान करने की दिशा में काम कर रहा है। कई एंटी-वायरल का परीक्षण करने के बाद, फेविपिराविर को ‘चांदीपुरा विषाणु’ संक्रमण के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा देने के लिए पहचाना गया है और यह बात प्रयोगशाला में प्रीक्लिनिकल परीक्षणों से भी स्थापित हो चुकी है।’’

उन्होंने कहा कि अब तक के निष्कर्षों से पता चलता है कि ‘फेविपिराविर’ इन संक्रमणों के लिए एक संभावित चिकित्सीय विकल्प हो सकता है।

भाषा

राजकुमार सुरेश

सुरेश

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