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Wednesday, June 25, 2025

‘लोकतंत्र सेनानियों’ के जहन में आज भी चस्पां हैं आपातकाल की कड़वी यादें

News'लोकतंत्र सेनानियों' के जहन में आज भी चस्पां हैं आपातकाल की कड़वी यादें

(अरुणव सिन्हा)

लखनऊ, 25 जून (भाषा) जुलाई 1975 की बात है। इस वक्त 74 वर्षीय के.पी. सिंह तब बमुश्किल 24 साल के थे और लखनऊ विश्वविद्यालय (एलयू) में एलएलबी द्वितीय वर्ष की परीक्षा दे रहे थे तभी जुलाई 1975 में पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया।

लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व उपाध्यक्ष सिंह ने 50 साल पहले देश में लगाये गये आपातकाल को याद करते हुए कहा, ”मेरा एकमात्र दोष यह था कि मैं तत्कालीन कांग्रेस शासन का कट्टर विरोधी था और मैंने देश पर थोपे गये आपातकाल के खिलाफ जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में विरोध का झंडा उठाया था।’

भारत में आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा था। इस साल 25 जून को आपातकाल लागू होने के 50 साल पूरे हो रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के 4373 ‘लोकतंत्र सेनानियों’ में शामिल रहे सिंह ने कहा कि उन्हें अब भी याद है कि कैसे एलयू परीक्षा केंद्र को पुलिस ने घेर लिया था। उस वक्त वह वहां परीक्षा दे रहे थे।

अपनी गिरफ्तारी के लम्हों को याद करते हुए उन्होंने कहा, ”जब मुझे गिरफ्तार किया गया उस वक्त मैं एलएलबी द्वितीय वर्ष की परीक्षा दे रहा था। कम से कम वे मेरी परीक्षा समाप्त होने तक इंतजार तो कर सकते थे। मैं परीक्षा केंद्र से गिरफ्तार होने वाला एकमात्र व्यक्ति था और उस गिरफ्तारी की वजह से मेरा एक साल बर्बाद हो गया। मुझे लखनऊ जिला जेल में बंद किया गया था।”

सिंह ने कहा, ”मेरी गिरफ्तारी के बाद कोई भी मुझसे मिलने जेल में नहीं आया, क्योंकि उन्हें भी गिरफ्तार होने का डर था। उस समय कांग्रेस और उसके शासन के खिलाफ बोलने का मतलब था कि व्यक्ति को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।”

सिंह ने कहा कि उन्हें कांग्रेस में शामिल होने की शर्त पर रिहा किये जाने के प्रस्ताव कई बार मिले, मगर उन्होंने उन्हें ठुकरा दिया।

जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के वरिष्ठ नेता और संपूर्ण क्रांति राष्ट्रीय मंच के संरक्षक के.सी. त्यागी ने ‘पीटीआई—भाषा’ से फोन पर बातचीत में कहा, ”वर्ष 2014 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद हमने मांग की थी कि लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता सेनानियों जैसा दर्जा और सुविधाएं दी जाएं। मैंने इस संबंध में प्रधानमंत्री और केंद्रीय वित्त मंत्री को पत्र भी लिखा था। हमारी मांग को सरकार ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है।”

त्यागी ने कहा, ”देश में आपातकाल लागू हुए 50 साल हो चुके हैं। उस समय जेल गए लोगों की उम्र 25-30 साल थी और उनमें से अधिकांश अब जीवित नहीं हैं। इसलिए हम उन लोगों के लिए ‘ताम्रपत्र’ (स्मृति चिन्ह) मांग रहे हैं जो अब अपने जीवन के अंतिम वर्षों में हैं।”

आपातकाल लागू होने के बाद गणेश राय नामक विद्वान लगभग छह महीने तक भूमिगत रहे। आखिरकार 22 दिसंबर 1975 को उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय के विधि संकाय में अपनी गिरफ्तारी दी।

राय ने कहा, ”मुझे लखनऊ के हसनगंज थाने ले जाया गया। सुबह तो कोई यातना नहीं दी गई लेकिन रात में पुलिस ने गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को धमकाया। दिसंबर का महीना था और ठंड भी काफी थी। मैंने पूरी रात फटी हुई रजाई में बिताई। गिरफ्तारी के करीब 28 घंटे बाद मुझे एक कप चाय, एक समोसा और अमरूद मिला। रिश्तेदारों और परिचितों ने हमसे दूरी बना ली। लोग सरकार के कोप के डर से मेरे परिवार से मिलने से भी कतराते थे।”

उन्होंने कहा कि उनके परिवार को भी तीन दिन बाद उनकी गिरफ्तारी के बारे में जानकारी हुई।

फोटोग्राफी की दुकान चलाने वाले जगदीश रस्तोगी भी आपातकाल के दौरान 20 महीने जेल में रहे। वह उस दौर को याद करते हैं कि उस वक्त लखनऊ जेल में बहुत बड़ी संख्या में लोग रखे गये थे।

संत राम चौधरी भी लोकतंत्र सेनानियों हैं। उन्हें 24 अगस्त 1975 को बी.ए. अंतिम वर्ष की परीक्षा देते समय गिरफ्तार किया गया था। उन्होंने कहा, ”मैं एलआईयू की जांच के दायरे में था। मुझे बरेली सेंट्रल जेल में स्थानांतरित कर दिया गया और वहां मुझे अलग बैरक में रखा गया था।”

भाषा सलीम नरेश

नरेश

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