नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि मुवक्किलों को सलाह देने के लिए वकीलों को पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और ऐसा करना न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए ‘‘प्रत्यक्ष खतरा’’ है।
न्यायमूर्ति के वी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।
पीठ ने कहा, ‘‘जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकील या अधिवक्ताओं को सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए भी प्रत्यक्ष खतरा पैदा करेगा।’’
पीठ ने मामले में कुछ प्रश्न भी खड़े किये।
पीठ ने पूछा, ‘‘कुछ विचारणीय प्रश्नों में से एक यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्षकार को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा होता है, तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?’’
एक और प्रश्न पूछते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास ऐसा मामला है जिसमें व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी क्या उन्हें सीधे समन जारी करने की अनुमति दी जानी चाहिए या उन असाधारण परिस्थितियों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?’’
पीठ ने कहा कि चूंकि यह मामला सीधे न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है, इसलिए ‘‘किसी पेशेवर को…जब वह मामले में वकील है…प्रथम दृष्टया हिरासत में लेना उचित नहीं लगता, इस पर अदालत को आगे विचार करना होगा।’’
यह आदेश तब आया जब शीर्ष अदालत गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 12 जून को दिये उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी।
उच्च न्यायालय ने मार्च 2025 को वकील को उसके मुवक्किल के खिलाफ एक मामले में पुलिस द्वारा तलब करने संबंधी नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया था।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने राज्य को अगले आदेश तक संबंधित वकील को तलब न करने का निर्देश दिया और उसे जारी पुलिस के नोटिस के अमल पर रोक लगा दी।
पीठ ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
भाषा
शफीक माधव
माधव