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Thursday, June 26, 2025

ठाणे अदालत ने 2018 हत्या मामले में महिला को संदेह के आधार पर किया बरी

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ठाणे, 26 जून (भाषा) ठाणे की एक अदालत ने वर्ष 2018 के हत्या के एक मामले में 36 वर्षीय महिला को बरी करते हुए कहा कि आरोपी पर संदेह तो था लेकिन अभियोजन पक्ष उसके अपराध को साबित करने में विफल रहा।

प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश एसबी अग्रवाल ने सोमवार को एक आदेश में कहा, “शक चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता।”

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत परिस्थितिजन्य साक्ष्य यह साबित करने के लिए अपर्याप्त थे कि आरोपी रूमा बेगम अनवर हुसैन लश्कर हत्या के लिए जिम्मेदार थी।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, महिला ने कबीर अहमद लश्कर की कपड़े से गला घोंटकर, उसके गुप्तांगों पर धारदार हथियार से वार कर और ईंट से हमला कर कथित तौर पर हत्या कर दी थी।

महाराष्ट्र के ठाणे शहर के घोड़बंदर रोड पर साईनगर में एक बंद घर के अंदर 19 मार्च, 2018 को मकान मालिक ने चादर में लिपटा हुआ एक क्षत विक्षत शव देखा था।

घटना के बाद महिला को बेंगलुरु में ढूंढ लिया गया था।

अनवर हुसैन पूर्व में बेंगलुरु में एक साइकिल स्टोर पर महिला के साथ काम करता था और बाद में वह ठाणे के कासरवडावली इलाके में एक साइकिल की दुकान पर काम करने लगा।

अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि दोनों 2016 और 2018 के बीच रिश्ते में थे, जो अंततः शादी को लेकर विवादों के कारण खराब हो गया।

यह मामला पूरी तरह से परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था, जिसमें मोबाइल कॉल डेटा रिकॉर्ड (सीडीआर) और मकान मालिक व उसकी पत्नी के बयानों पर काफी हद तक भरोसा किया गया था।

अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपी महिला बेंगलुरु से ठाणे आई और उसे अनवर हुसैन के साथ देखा गया था।

अदालत ने घटना के पीछे मकसद, प्रत्यक्षदर्शियों और विश्वसनीय पहचान प्रक्रियाओं जैसे पुष्टि करने वाले सबूतों की कमी पर गौर किया।

न्यायाधीश ने कहा कि किसी से भी आरोपी महिला की पहचान नहीं कराई गई थी और लगभग छह वर्ष बाद पहली बार मकान मालिक ने अदालत के सामने आरोपी महिला की पहचान की।

अदालत ने यह भी कहा कि फोरेंसिक विश्लेषण में चाकू, अंगवस्त्र, ईंट और बिस्तर की चादर जैसी वस्तुओं पर मानव रक्त पाया गया, लेकिन इनमें से कोई भी सीधे तौर पर आरोपी से जुड़ा नहीं था।

न्यायाधीश ने कहा, “शक चाहे कितना भी मजबूत क्यों न हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता।”

अदालत ने कहा कि इसलिए आरोपी को तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या) के तहत दंडनीय अपराध के आरोप से बरी किया जाता है।

भाषा जितेंद्र नरेश

नरेश

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