नयी दिल्ली, 27 जून (भाषा) प्रतिष्ठित शोध संस्थान एनसीएईआर ने 2030 तक श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार बढ़ाने के लिए कार्यबल के कौशल विकास में निवेश की वकालत की है।
नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लॉयड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) ने ‘भारत में रोजगार का परिदृश्य: नौकरियों के रास्ते’ शीर्षक वाले शोध पत्र में कहा कि अंतर-क्षेत्रीय संबंधों का समग्र अर्थव्यवस्था में रोजगार पर गुणात्मक प्रभाव हो सकता है। इससे मौजूदा परिदृश्य की तुलना में रोजगार में 200 प्रतिशत तक की वृद्धि हो सकती है।
इसमें कहा गया, ”औपचारिक कौशल विकास में निवेश के जरिये कुशल कार्यबल की हिस्सेदारी में 12 प्रतिशत की वृद्धि से 2030 तक श्रम प्रधान क्षेत्रों में रोजगार में 13 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हो सकती है।”
शोध पत्र में कहा गया कि श्रम प्रधान विनिर्माण क्षेत्र कुल विनिर्माण रोजगार का औसतन 44.1 प्रतिशत है, जबकि श्रम प्रधान सेवाएं कुल सेवा रोजगार का 54.2 प्रतिशत है।
इसके मुताबिक विशेष रूप से श्रम प्रधान उद्योगों पर ध्यान केंद्रित करके हम विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों के आकार को बढ़ाकर रोजगार अंतर को काफी हद तक पाट सकते हैं।
शोध पत्र की लेखिका फरजाना अफरीदी ने कहा कि श्रम गहन विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए बहुआयामी नजरिये की जरूरत है, जिसमें उच्च सरकारी व्यय और करों को कम करके घरेलू मांग को प्रोत्साहित करना शामिल है।
उन्होंने मौजूदा श्रमिकों को प्रशिक्षित करने और उनका कौशल बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम गतिविधियों को अपनाने पर भी जोर दिया।
उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना का उल्लेख करते हुए, शोध पत्र में कहा गया कि यह मुख्य रूप से उच्च मूल्य वाले उत्पादों पर केंद्रित है, जिसके लिए उच्च-कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। इस योजना के तहत सबसे अधिक नौकरियां खाद्य प्रसंस्करण और दवा उद्योग में सृजित की गई हैं।
भाषा पाण्डेय रमण
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