नयी दिल्ली, 28 जून (भाषा) भारत में कुल जनसंख्या में शून्य खुराक वाले बच्चों का प्रतिशत 2023 में 0.11 प्रतिशत से घटकर 2024 में 0.06 प्रतिशत रह गया है, जो देश को बच्चों के स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैश्विक उदाहरण के रूप में स्थापित करता है।
बाल मृत्यु दर अनुमान के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह की 2024 की रिपोर्ट में यह जानकारी सामने आई है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, शून्य खुराक वाले बच्चों को ऐसे बच्चों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिनके माता-पिता की नियमित टीकाकरण सेवाओं तक पहुंच नहीं होती है या फिर जिन्हें कभी भी टीकाकरण सेवाएं नहीं मिल पाती।
इन बच्चों को डीटीपी (डिप्थीरिया-टेटनस-पर्टुसिस) की पहली खुराक तक नहीं मिलती है।
मंत्रालय ने ऐसे बच्चों की संख्या में आई गिरावट का श्रेय सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) के माध्यम से टीकाकरण के प्रति भारत की अटूट प्रतिबद्धता को दिया।
सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में सालाना 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.6 करोड़ शिशुओं (0-1 वर्ष) को निशुल्क टीकाकरण सेवाएं दी जाती हैं।
मंत्रालय ने साथ ही जोर देकर कहा कि जिन देशों में शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या बहुत अधिक है, उनसे भारत की तुलना करते समय, हमारी विशाल आबादी और उच्च टीकाकरण दर को ध्यान में रखना होगा।
मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि टीकाकरण वर्तमान में सबसे शक्तिशाली और लागत प्रभावी सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों में से एक है।
मंत्रालय ने बताया कि सरकार ने वंचित आबादी तक पहुंचने के लिए एक सक्रिय और समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है।
बयान के मुताबिक, “हमारे स्वास्थ्य सेवा कर्मी आशा और एएनएम देशभर में 1.3 करोड़ से अधिक टीकाकरण सत्र आयोजित करते हैं।”
बयान में बताया गया, “देशभर में टीकाकरण अभियान के निरंतर प्रयासों और गहन कार्यान्वयन के नतीजतन, कुल जनसंख्या में शून्य खुराक वाले बच्चों का प्रतिशत 2023 में 0.11 फीसदी से घटकर 2024 में 0.06 फीसदी हो गया है।”
बयान के मुताबिक, देश में शून्य खुराक वाले बच्चों की संख्या को और कम करने के लिए चालू वर्ष में प्रगतिशील और निरंतर प्रयास किए जा रहे हैं।
बयान में बताया गया कि संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी बाल मृत्यु दर आकलन समूह (यूएन आईजीएमई) की 2024 की रिपोर्ट में दर्शाई गई इन उपलब्धियों ने भारत को बाल स्वास्थ्य के मामले में वैश्विक आदर्श के रूप में स्थापित किया है।
स्वास्थ्य मंत्रालय ने बताया कि अतिसार, निमोनिया, मेनिन्जाइटिस और एन्सेफलाइटिस के कारण बच्चों में मृत्यु दर और रोगों की संख्या को कम करने में जीवन रक्षक टीकों की बढ़ी हुई संख्या का असर भी साफ देखा जा सकता है।
नवीनतम एसआरएस (2020-22) के अनुसार, भारत में बच्चों को जन्म देते समय महिलाओं का मृत्यु अनुपात (एमएमआर) 2014-16 में प्रति लाख महिलाओं पर 130 था, जो घटकर 2020-22 में प्रति लाख पर 88 हो गया।
संयुक्त राष्ट्र मातृ मृत्यु अनुमान अंतर-एजेंसी समूह (यूएन-एमएमईआईजी 2000-2023) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में मातृ मृत्यु दर प्रति लाख महिलाओं पर 80 है, जो 1990 के बाद से 48 फीसदी की वैश्विक कमी के मुकाबले 86 फीसदी की गिरावट को दर्शाता है।
बाल मृत्यु दर अनुमान के लिए संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह (यूएनआईजीएमई 2024 रिपोर्ट) के अनुसार, भारत ने पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में 78 फीसदी की गिरावट दर्ज की है, जो वैश्विक कमी 61 फीसदी को पार कर गई है और नवजात मृत्यु दर में 70 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि 1990-2023 के दौरान वैश्विक स्तर पर यह 54 प्रतिशत रही थी।
टीकाकरण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित टीकों की एक व्यापक श्रृंखला शामिल है।
वर्ष 2013 तक कार्यक्रम में केवल छह टीके ही उपलब्ध थे।
वर्तमान में, भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम में 12 वैक्सीन-रोकथाम योग्य बीमारियां शामिल हैं और इसमें महत्वपूर्ण विस्तार हुआ है।
भारत ने टीकाकरण कार्यक्रम में सुधार पर लगातार ध्यान देते हुए वंचित आबादी तक पहुंचने के लिए एक सक्रिय और समावेशी नजरिया अपनाया है।
भारत सरकार ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के परामर्श से, खासतौर पर शहरी झुग्गियों, अर्ध-शहरी क्षेत्रों, प्रवासी आबादी, दुर्गम क्षेत्रों और टीकाकरण को लेकर हिचकिचाहट रखने वाले प्रभावित समुदायों में शून्य खुराक वाले बच्चों के बीच चुनौतियों का समाधान करने के लिए लक्षित अभियान शुरू किए हैं।
ये प्रयास खसरा और रूबेला को खत्म करने के राष्ट्रीय लक्ष्य के साथ भी जुड़े हुए हैं।
भाषा जितेंद्र देवेंद्र
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