(जस्टिन एम चॉकर, फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय)
एडिलेड, 29 जून (द कन्वरसेशन) वर्ष 2022 में मनुष्य अनुमानित 6.2 करोड़ टन ई-कचरे की वजह बना और ये अपशिष्ट 15 लाख से अधिक कचरा ट्रकों के लिए पर्याप्त है। यह आंकड़ा वर्ष 2010 से 82 प्रतिशत अधिक था और 2030 में इसके बढ़कर 8.2 करोड़ टन होने की उम्मीद है।
इस ई-कचरे में पुराने लैपटॉप और फोन शामिल हैं, जिनमें सोने जैसी कीमती चीजें होती हैं। इनका एक चौथाई से भी कम हिस्सा ठीक से एकत्र कर पुनर्चक्रित किया जाता है। लेकिन मेरे और मेरे सहकर्मियों ने ई-कचरे से सोना निकालने के लिए एक नयी तकनीक विकसित की है, जो इस ई-कचरे को निकालने की पूरी प्रक्रिया को बदलने में मदद कर सकती है।
इस नयी तकनीक का वर्णन हमने आज ‘नेचर सस्टेनेबिलिटी’ में प्रकाशित एक नए पत्र में किया है।
सोने की बढ़ती वैश्विक मांग
लंबे अरसे से सोना मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। यह सदियों से मुद्रा का एक रूप और कला और फैशन का माध्यम रहा है। इलेक्ट्रॉनिक्स, रासायनिक निर्माण और एयरोस्पेस क्षेत्रों समेत आधुनिक उद्योगों में भी सोना आवश्यक है। दुनियाभर में सोने की बढ़ती मांग के मद्देनजर इसका खनन पर्यावरण के लिए हानिकारक है।
वनों की कटाई और जहरीले रसायनों का उपयोग ऐसी दो समस्याएं हैं। बड़े पैमाने पर खनन में अयस्क से सोना निकालने के लिए अत्यधिक जहरीले साइनाइड का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
वहीं छोटे पैमाने और खनन के दौरान सोना निकालने के लिए पारे का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है। इस तरीके से सोना पारे के साथ प्रतिक्रिया कर एक सघन मिश्रण बनाता है, जिसे आसानी से अलग किया जा सकता है। फिर पारे को वाष्पीकृत करने के लिए मिश्रण को गर्म करके सोना निकाला जाता है।
छोटे पैमाने ओर खनन पृथ्वी पर पारा प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है और पारा उत्सर्जन खनिकों के लिए खतरनाक और पर्यावरण को प्रदूषित करने का काम करता है।
सोने के खनन के प्रभावों को कम करने के लिए नए तरीकों की आवश्यकता है।
सुरक्षित विकल्प
वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की हमारी अंतःविषय टीम ने अयस्क और ई-कचरे से सोना निकालने की एक नयी तकनीक विकसित की है, जिसका उद्देश्य पारा और साइनाइड का एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करना तथा सोने के खनन से होने वाले स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभावों को कम करना था।
अयस्क या ई-कचरे से सोना निकालने के लिए पहले भी कई तकनीकें सामने लाई जा चुकी है, जिसमें पारा और साइनाइड-मुक्त विधियां शामिल हैं। हालांकि, इनमें से कई विधियां पैमाने और लागत के संबंध में सीमित रही हैं।
अक्सर ये विधियां सोने को पूरे तरीके से निकालने के संबंध में होती हैं और इनमें पुनर्चक्रण और अपशिष्ट प्रबंधन को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इसके विपरीत, हमारे दृष्टिकोण ने सोने को निकालने और शोधन की पूरी प्रक्रिया में स्थिरता पर विचार किया। हमारी नयी तकनीक में आमतौर पर ‘ट्राइक्लोरोइसोसायन्यूरिक एसिड’ का उपयोग किया जाता है।
व्यापक रूप से उपलब्ध और कम लागत वाला ये रसायन नमक के पानी के साथ सक्रिय होता है और सोने के साथ प्रतिक्रिया कर इसे पानी में घुलनशील रूप में परिवर्तित कर सकता है। घोल से सोना निकालने के लिए, हमने सल्फर युक्त ‘पॉलिमर सॉर्बेंट’ का आविष्कार किया।
‘पॉलिमर सॉर्बेंट’ एक निश्चित पदार्थ को तरल या गैस से अलग करता है।
हमारा ‘पॉलीमर’ घोल में मौजूद अन्य धातुओं से सोने को अलग कर सकता है।
आगे लंबी और जटिल राह
भविष्य में हम छोटे पैमाने पर खनन कार्यों में अपनी विधि का परीक्षण करने के लिए उद्योग, सरकार और गैर-लाभकारी समूहों के साथ सहयोग करने की योजना बना रहे हैं।
हमारा दीर्घकालिक लक्ष्य सोना निकालने के लिए एक मजबूत और सुरक्षित विधि प्रदान करना है, जिससे साइनाइड और पारा जैसे अत्यधिक विषैले रसायनों की आवश्यकता समाप्त हो जाए।
(द कन्वरसेशन) जितेंद्र देवेंद्र
देवेंद्र