(सुमीर कौल)
नयी दिल्ली, 29 जून (भाषा) करगिल युद्ध के नायक कैप्टन सौरभ कालिया की पाकिस्तानी सेना द्वारा क्रूरतापूर्वक हत्या किये जाने के 26 वर्ष बाद भी उनके पिता पाकिस्तान को ‘जिनेवा कन्वेंशन’ के उल्लंघन के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में घसीटने के अपने प्रयास में जुटे हैं।
कैप्टन सौरभ के 78 वर्षीय पिता डॉ. एनएन कालिया पाकिस्तान की हिरासत में उनके बेटे के साथ की गई उस दरिंदगी के खिलाफ आज भी न्याय दिलाने की लड़ाई लड़ रहे हैं।
अगर आज कैप्टन सौरभ कालिया जिंदा होते तो अपना 49वां जन्मदिन मना रहे होते।
‘हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी संस्थान’ (आईएचबीटी) के सेवानिवृत्त वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. कालिया का कहना है कि उन्हें देश के राजनीतिक नेतृत्व व न्यायिक प्रणाली पर पूरा भरोसा है और उन्हें उम्मीद है कि इस जघन्य अपराध के लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
डा. कालिया ने उन दिनों को याद करते हुए कहा, “उसकी शहादत का कोई सानी नहीं है और इसका नतीजा ये हुआ कि एक पूरा राष्ट्र उठ खड़ा हुआ, देश में देशभक्ति की ज्वाला भड़क उठी और सशस्त्र बलों की हुंकार से देश पर मर मिटने के लिए देशवासियों का खून खौलने लगा।’’
‘4-जाट रेजिमेंट’ से जुड़े लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया साल 1999 में मई महीने के तीसरे सप्ताह में करगिल के काकसर में एक टोही मिशन के लिए पांच सैनिकों के साथ गए थे।
पूरी टीम लापता हो गई और उनके लापता होने की पहली खबर पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में असकारदु रेडियो पर प्रसारित की गई।
लेफ्टिनेंट सौरभ और उनकी टीम में शामिल सिपाही अर्जुन राम, बनवार लाल, भीकाराम, मूला राम और नरेश सिंह के पार्थिव शरीर नौ जून को भारत को सौंप दिए गए। अगले दिन यानी 10 जून को ‘पीटीआई-भाषा’ ने पाकिस्तान की बर्बरता की कहानी को उजागर किया।
लेफ्टिनेंट सौरभ को मरणोपरांत कैप्टन का दर्जा दिया गया था।
जवानों के पार्थिव शरीर जब लौटाये गये तो उनके महत्वपूर्ण अंग गायब थे, आंखें निकाल ली गई थीं, नाक, कान और जननांग काट दिए गए थे।
दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष के इतिहास में इस तरह की निर्दयता पहले कभी नहीं देखी गई थी और भारत ने अपने सैन्य कर्मियों के साथ की गयी इस बर्बरता पर भारी आक्रोश व्यक्त किया था और इसे ‘अंतरराष्ट्रीय समझौतों का उल्लंघन’ करार दिया था।
समय बीतने के बावजूद परिवार ने कभी अकेलापन महसूस नहीं किया।
डॉ. एनएन कालिया ने कहा, “लोगों ने हमें बहुत प्यार और सम्मान दिया है।”
उन्होंने भारत भर से और यहां तक कि विदेशों से भी मिले भारी समर्थन के लिए आभार जताया।
कैप्टन सौरभ के पिता बताते हैं कि परिवार को आगंतुकों से पत्र व फोन आते हैं, जो करगिल शहीद के बारे में अधिक जानना चाहते हैं।
उन्होंने पालमपुर स्थित अपने घर में कैप्टन कालिया की स्मृति में एक संग्रहालय स्थापित किया है। और संग्रहालय को देखने के लिए हर साल लगभग 600-800 आगंतुक आते हैं जिनमें ऐसे पर्यटक भी होते हैं जिन्होंने कैप्टन कालिया की कहानी सुनी होती है।
उन्होंने कहा, “बहुत से अनजान लोग आकर कहते हैं कि उन्होंने कैप्टन कालिया के बारे में बहुत कुछ सुना है। अब जब हम यहां आए हैं तो हमें अच्छा लग रहा है।”
कैप्टन कालिया के छोटे भाई और पालमपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान के संकाय सदस्य वैभव कालिया ने एक कार्यक्रम में बच्चों के बीच उत्साह को देखते हुए कहा कि लोग अपने शहीदों को भूले नहीं हैं।
वैभव कालिया का अपना परिवार कैप्टन कालिया की विरासत को आगे बढ़ा रहा है।
वैभव का बड़ा बेटा कृषि में बीएससी कर रहा है और एनसीसी में भी शामिल है जबकि उनके छोटे बेटे व्योमेश की सशस्त्र बलों में शामिल होने में गहरी दिलचस्पी है तथा वह एनडीए परीक्षा देने की योजना बना रहा है।
उन्होंने कहा, “मुझे बहुत खुशी होगी अगर मेरे दोनों बच्चे सेना में भर्ती होने की कम से कम ईमानदारी से कोशिश करें।”
वैभव बताते हैं कि उनकी मां ‘बहुत बहादुर’ हैं और अपने बेटे पर बहुत गर्व करती हैं।
उन्होंने बताया कि कैप्टन सौरभ कालिया ने ड्यूटी पर जाने से पहले फोन पर अपनी मां को कहा था,‘‘ ‘मां तुम देखना एक दिन ऐसा काम कर जाऊंगा कि सारी दुनिया में मेरा नाम होगा।’’
कैप्टन सौरभ के अंतिम अल्फाज उनके बलिदान के साथ हमेशा-हमेशा के लिए सत्य हो गये।
हालांकि पाकिस्तानी हिरासत में कैप्टन सौरभ के साथ हुए व्यवहार के लिए न्याय की आस अब भी एक जटिल कूटनीतिक मुद्दा बना हुआ है लेकिन उनके परिवार को जनता के अटूट प्यार और प्रशंसा से बहुत राहत मिलती है क्योंकि कैप्टन सौरभ की बहादुरी और राष्ट्रवाद की कहानी नई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है, जिसमें उनके भतीजे भी शामिल हैं जो सशस्त्र बलों का सदस्य बनने का सपना देखते हैं।
कैप्टन सौरभ कालिया के पिता ने 2012 में संविधान के अनुच्छेद 32 (संवैधानिक उपचारों का अधिकार, विशेष रूप से मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उच्चतम न्यायालय में जाने का अधिकार) के तहत एक याचिका दायर की थी।
उन्होंने सरकार को ‘जिनेवा कन्वेंशन’ के जघन्य उल्लंघन के लिए पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाने सहित उचित कानूनी उपाय करने के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था।
‘जिनेवा कन्वेंशन’ युद्धबंदियों के अधिकारों और सुरक्षा के तहत उनके साथ व्यवहार करने की बात करता है, जिसमें मानवीय व्यवहार, हिरासत की शर्तें व भोजन, कपड़े व चिकित्सा देखभाल प्रदान करना शामिल है।
‘जिनेवा कन्वेंशन’ यातना, हिंसा और अन्य प्रकार के दुर्व्यवहार पर भी रोक लगाता है।
याचिका में यह भी चिन्हित किया गया कि कैप्टन कालिया और उनके साथियों के पार्थिव शरीर नौ जून, 1999 को सौंपे जाने से पहले दो सप्ताह से अधिक समय तक भारत के जवानों को क्रूर यातनाएं सहनी पड़ीं थी। 11 जून, 1999 की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह बात प्रमाणित होती है कि यह बर्बरता थी।
अकल्पनीय पीड़ा के बावजूद, कैप्टन सौरभ कालिया और उनके साथी नहीं टूटे। उन्होंने देशभक्ति, शक्ति, साहस और दृढ़ता का परिचय दिया, जिस पर आज भी पूरा देश गर्व करता है।
भाषा जितेंद्र नरेश
नरेश