मुंबई, 30 जून (भाषा) महाराष्ट्र सरकार ने बंबई उच्च न्यायालय में सोमवार को कहा कि वह प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी मूर्तियों के विसर्जन पर अपनी नीति तीन सप्ताह में तैयार कर लेगी। अदालत ने सरकार से आगामी त्योहारों के मद्देनजर इस प्रक्रिया में और देरी नहीं करने को कहा।
इस महीने की शुरुआत में, उच्च न्यायालय ने पीओपी मूर्तियों के निर्माण और बिक्री की अनुमति दी थी, लेकिन कहा था कि उन्हें बिना अनुमति के जलाशयों में विसर्जित नहीं किया जा सकता।
इसके बाद अदालत ने राज्य सरकार को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के आधार पर ऐसी मूर्तियों के विसर्जन के संबंध में नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश दिया।
महाधिवक्ता बीरेंद्र सराफ ने सोमवार को मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ को बताया कि सरकार ने बैठकें की हैं तथा एक नीति तैयार करने के लिए उसे तीन और सप्ताह की आवश्यकता होगी।
इस पर पीठ ने कहा कि उसे समय देने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सरकार को आगामी त्योहारों को ध्यान में रखना चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘अगस्त से त्योहार शुरू होने वाले हैं। हमें (अदालत को) नीति पर विचार करने के लिए भी समय चाहिए। इसलिए, नीतिगत निर्णय 23 जुलाई को या उससे पहले अदालत के समक्ष रखा जाना चाहिए।’
अदालत ने सीपीसीबी के स्पष्टीकरण के बाद पीओपी मूर्तियों के निर्माण और बिक्री की अनुमति दी थी कि उसके संशोधित दिशानिर्देश केवल ऐसी मूर्तियों के विसर्जन से संबंधित हैं।
अदालत गणेश मूर्ति निर्माताओं के संघों की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें पीओपी से बनी मूर्तियों के इस्तेमाल और उनके विसर्जन पर प्रतिबंध लगाने वाले सीपीसीबी के दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई और आरोप लगाया गया था कि यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
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