नयी दिल्ली, 29 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में मई 2021 में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद एक महिला से छेड़छाड़ के कुछ आरोपियों को दी गई जमानत बृहस्पतिवार को रद्द कर दी और कहा कि यह जघन्य अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर ‘गंभीर हमले’ से कम नहीं है।
न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि चुनाव परिणाम के दिन शिकायतकर्ता के घर पर हमला केवल बदला लेने के उद्देश्य से किया गया था, क्योंकि उसने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का समर्थन किया था।
इसमें कहा गया, ‘‘यह एक गंभीर परिस्थिति है, जो हमें आश्वस्त करती है कि आरोपी व्यक्ति, जिसमें प्रतिवादी भी शामिल हैं, विपक्षी राजनीतिक दल के सदस्यों को आतंकित करने की कोशिश कर रहे थे…।’’
पीठ ने कहा, ‘‘ऊपर बताए गए तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, हमें लगता है कि वर्तमान मामला ऐसा है, जिसमें आरोपी प्रतिवादियों के खिलाफ आरोप इतने गंभीर हैं कि वे अदालत की अंतरात्मा को झकझोर देते हैं।’’
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिस निंदनीय तरीके से घटना को अंजाम दिया गया, उससे आरोपियों के प्रतिशोधी रवैये और विपक्षी पार्टी के समर्थकों को किसी भी तरह से अपने अधीन करने के उनके घोषित उद्देश्य का पता चलता है।
पीठ ने कहा, ‘‘यह नृशंस अपराध लोकतंत्र की जड़ों पर गंभीर हमले से कम नहीं है।’’
शीर्ष अदालत ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की दो अपील पर अपना फैसला सुनाया, जिसमें मामले में कुछ आरोपियों को जमानत देने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के अलग-अलग आदेशों को चुनौती दी गई थी।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि शिकायतकर्ता की पत्नी के साथ छेड़छाड़ की गई और खुद को बचाने के लिए उसने उस पर मिट्टी का तेल डाला और धमकी दी कि वह खुद को आग लगा लेगी, जिसके बाद बदमाश मौके से चले गए।
इसमें दावा किया गया है कि शिकायतकर्ता ने अगले दिन शिकायत दर्ज कराने के लिए पुलिस थाने का रुख किया, लेकिन प्रभारी अधिकारी ने उसे और उसके परिवार की जान बचाने के लिए गांव छोड़ने की सलाह दी।
पीठ ने कहा कि उसे अवगत कराया गया था कि पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणामों के बाद इसी तरह के आरोपों वाली कई घटनाएं हुईं और एक आम शिकायत यह थी कि स्थानीय पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार कर दिया।
उच्च न्यायालय ने अगस्त 2021 में पारित अपने आदेश में सीबीआई को उन सभी मामलों की जांच करने का निर्देश दिया था, जहां आरोप हत्या या महिलाओं के खिलाफ बलात्कार या बलात्कार के प्रयास से संबंधित अपराध से जुड़े थे।
पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता के घर पर हुई घटना के संबंध में बलात्कार सहित कथित अपराधों के लिए दिसंबर 2021 में सीबीआई द्वारा एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
इसमें कहा गया कि आरोपियों को तीन नवंबर, 2022 को गिरफ्तार किया गया था और जांच के बाद सीबीआई द्वारा कई लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया गया था।
पीठ ने कहा कि जाहिर तौर पर, प्राथमिकी दर्ज करने से इनकार करने का स्थानीय पुलिस का दृष्टिकोण शिकायतकर्ता की उस आशंका को बल देता है कि आरोपी का इलाके और यहां तक कि पुलिस पर भी प्रभाव है।
इसने सीबीआई के वकील की दलील पर गौर किया कि एजेंसी के अधिकारियों को भी स्थानीय पुलिस से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल रहा है।
पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया यह साबित करने के लिए सामग्री मौजूद है कि आरोपियों ने गैरकानूनी तरीके से भीड़ इकट्ठा की और शिकायतकर्ता के घर पर हमला किया, वहां तोड़फोड़ की और घर का सामान लूट लिया।
पीठ ने 2023 में उच्च न्यायालय द्वारा उन्हें दी गई जमानत को रद्द करते हुए कहा, ‘‘इस पृष्ठभूमि में, हमें लगता है कि अगर आरोपी प्रतिवादियों को जमानत पर रहने दिया जाता है, तो निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई होने की कोई संभावना नहीं है।’’
पीठ ने आरोपियों को दो सप्ताह के भीतर निचली अदालत के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया और कहा कि ऐसा न करने पर निचली अदालत को उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बलपूर्वक उपाय करने चाहिए।
पीठ ने निचली अदालत से कार्यवाही में तेजी लाने और छह महीने के भीतर मुकदमे को समाप्त करने का प्रयास करने को कहा।
भाषा सुरेश वैभव
वैभव