नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को विकास को समावेशी बनाने और समानता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे और क्रेडिट रेटिंग प्रणालियों में सुधार की जरूरत बतायी।
उन्होंने स्पेन के सेविले में विकास के लिए वित्तपोषण (एफएफडी) पर चौथे अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आधिकारिक विकास सहायता में गिरावट के रुख में बदलाव के आह्वान का भी समर्थन किया और विकसित देशों से जलवायु वित्त को बढ़ाने का आग्रह किया।
सीतारमण ने कहा कि खासकार नाजुक देशों में जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए भरोसेमंद, सरल पहुंच और रियायती वित्त की व्यवस्था होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत समावेशी विकास और समानता बढ़ाने के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय ढांचे में सुधारों का समर्थन करता है, जिसमें बहुपक्षीय विकास बैंकों (एकडीबी) में सुधार और निष्पक्ष क्रेडिट रेटिंग प्रणाली शामिल हैं। बहुपक्षीय विकास बैंक से दिये जाने वाले कर्ज को दीर्घकालीन विकास लक्ष्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए और मजबूत निगरानी ढांचे के जरिये इस पर नजर रखी जानी चाहिए ताकि कर्ज राशि का उपयोग उन्हीं मदों में किया जाए, जिसके लिए वे आये हैं।’’
सीतारमण ने कहा कि कई देशों के लिए समावेशी और सतत विकास के लिए कर्ज एक संरचनात्मक बाधा बन गया है। भारत की जी-20 अध्यक्षता के दौरान शुरू किए गए वैश्विक ‘सॉवरेन डेट’ गोलमेज सम्मेलन ने कर्ज के मामले में पारदर्शिता और ऋण पुनर्गठन को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि एहतियाती ऋण प्रबंधन के साथ-साथ जी-20 साझा रूपरेखा का प्रभावी कार्यान्वयन आवश्यक है।
भारत ने कर प्रणालियों के आधुनिकीकरण और अवैध वित्तीय प्रवाह को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी समर्थन किया।
वित्त मंत्री ने कहा कि भारत में व्यापक कर सुधारों और कर प्रशासन में डिजिटल बदलाव ने राजस्व में वृद्धि की है और अनुपालन लागत को कम किया है।
उन्होंने कहा कि भारत ने लगातार लोगों को अपनी विकास रणनीति के केंद्र में रखा है। हमने 25 करोड़ लोगों को बहुआयामी गरीबी से बाहर निकाला है और लक्षित नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से समावेशी डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा के माध्यम से समुदायों को सशक्त बनाया है।
हालांकि, मजबूत वैश्विक वृद्धि के लिए, राष्ट्रीय प्रयासों के साथ अंतरराष्ट्रीय परिवेश महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा कि कई सतत विकास लक्ष्य पटरी से उतर गए हैं और विकासशील देशों के लिए वित्तपोषण का अंतर सालाना 4,000 अरब डॉलर से अधिक है। इसलिए तत्काल और परिवर्तनकारी कदम उठाने की आवश्यकता है।
सीतारमण ने एक व्यापक, न्यायसंगत और विकासोन्मुख वैश्विक वित्तपोषण ढांचे की जरूरत बतायी, जो देश की परिस्थितियों का सम्मान करता हो, नीतिगत गुंजाइश बनाए रखता हो और सभी के लिए सतत विकास के वादे को पूरा करता हो।
भाषा अजय
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