नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) ‘जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ’ के शोधकर्ताओं ने उन प्रमुख क्षेत्रों की पहचान की है, जहां भारत की स्वास्थ्य प्रणाली आग में झुलसे मरीजों की देखभाल के लिए सहायता में सुधार कर सकती है।
चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के अध्ययन में मरीजों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सहायता, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के लिए अधिक प्रशिक्षण एवं परामर्श तथा स्वास्थ्य संस्थानों में भेदभाव-विरोधी नीतियां समेत कई सिफारिशें की गईं।
उत्तर प्रदेश में किए गए अध्ययन में यह पता लगाया गया कि किस प्रकार आग की घटनाओं से बचे लोगों को स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्थाओं में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, तथा इन कमियों को दूर करने के लिए नीति और अभ्यास संबंधी सिफारिशें प्रस्तावित की गईं।
इसे विश्व स्तर पर अपनी तरह का पहला अध्ययन होने का दावा किया गया है, जिसका उद्देश्य विशेष रूप से झुलसे रोगियों के समक्ष अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में आने वाली परेशानियों का आकलन करना था।
यह अनुसंधान रॉयल सोसाइटी ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन एंड हाइजीन (आरएसटीएमएच) के प्रारंभिक कैरियर अनुदान कार्यक्रम के तहत किया गया, जिसे ब्रिटेन के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ एंड केयर रिसर्च (एनआईएचआर) ने सहयोग दिया।
बेहतर चिकित्सा देखभाल के कारण जीवित रहने की दर में वृद्धि हुई है, लेकिन अध्ययन से पता चलता है कि संस्थागत उपेक्षा, अपर्याप्त संसाधन वाले अस्पताल, अत्यधिक कार्यभार वाले कर्मचारी और प्रणालीगत विफलताएं, कुछ ऐसे कारण हैं, जिनकी वजह से झुलसे हुए रोगियों को भेदभावपूर्ण और निम्न-गुणवत्ता वाली देखभाल सुविधा मिल रही है।
अधिकारियों के अनुसार, झुलसने से भावनात्मक, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक क्षति हो सकती है, विशेष रूप से दिव्यांग रोगियों और वंचित पृष्ठभूमि से आने वाले रोगियों के लिए।
दुनिया भर में हर साल झुलसने के कारण लगभग 180,000 मौतें होती हैं, जिनमें सबसे ज्यादा बोझ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होता है। भारत में हर साल आग से झुलसने के लगभग 21 लाख मामले आते हैं, 25,000 मौतें होती हैं।
जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की प्रतिष्ठा सिंह ने कहा, ‘झुलसे हुए मरीजों, खासतौर पर महिलाओं और गरीब लोगों को दोषी ठहराया जाता है और उन्हें अस्पतालों में अलग-थलग कर दिया जाता है तथा उन्हें उपेक्षा का सामना करना पड़ता है।’’
यह अध्ययन भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में किया गया, जिसकी आबादी 20 करोड़ से ज़्यादा है। इनमें से 77.7 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। सीमित चिकित्सा बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य संकेतकों के साथ, यह क्षेत्र इस तरह के अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान था, जिसने पूरे भारत में रोगी देखभाल में व्यवस्थागत बेहतरी की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।
भाषा आशीष सुरेश
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