शाहजहांपुर (उप्र), दो जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश पुलिस ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारी बनकर शाहजहांपुर निवासी एक व्यक्ति को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करने और फर्जी ऑनलाइन अदालती कार्यवाही के जरिये एक करोड़ रुपये से अधिक की ठगी के मामले में बुधवार को सात लोगों को गिरफ्तार किया। यह जानकारी एक अधिकारी ने दी।
पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 60 वर्षीय शरद चंद को ‘डिजिटल अरेस्ट’ करके उनसे एक करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम ठगने वाले गिरोह के सात सदस्यों सचिन, प्रशांत, गौतम सिंह, संदीप कुमार, सैयद सैफ, आर्यन शर्मा और पवन यादव को गिरफ्तार किया गया है। अधिकारी ने बताया कि गिरफ्तार आरोपियों की उम्र 20 से 28 साल के बीच है।
उन्होंने बताया कि जालसाजों के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 (धोखाधड़ी), 319 (प्रतिरूपण द्वारा धोखाधड़ी), 204 (सरकारी अधिकारी का रूप धारण करना) और आईटी अधिनियम की धारा 66 (सी) और 66 (डी) के तहत मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि सभी को जेल भेज दिया गया है।
पुलिस अधीक्षक राजेश द्विवेदी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि आरोपियों ने चंद को धमकाया था कि उनके खिलाफ 2.8 करोड़ रुपये के अवैध लेनदेन की जांच की जा रही है। द्विवेदी ने बताया कि जालसाजों ने सबसे पहले छह मई को ईडी और सीबीआई अधिकारी बनकर चंद से फोन पर संपर्क किया और कहा कि 2.8 करोड़ रुपये के अवैध लेनदेन की जांच जारी रहने तक उन्हें डिजिटल अरेस्ट में रखा गया है। उन्होंने बताया कि उसके बाद फर्जी तरीके से मामले की ‘आनलाइन अदालत’ में सुनवाई भी की गयी।
द्विवेदी ने बताया कि मामले की डिजिटल ‘सुनवाई’ के दौरान नकली वकीलों और न्यायाधीशों ने शरद चंद को धमकाया और अंततः उन्हें नौ कथित ‘वकीलों’ के 40 बैंक खातों में एक करोड़ 40 हजार रुपये स्थानांतरित करने के लिए मजबूर किया। द्विवेदी ने बताया कि पीड़ित ने तथाकथित ‘डिजिटल अरेस्ट’ के समय किसी को सूचित नहीं किया। उन्होंने बताया कि बाद में धोखाधड़ी का एहसास होने पर चंद ने पुलिस को मामले की सूचना दी।
उन्होंने बताया कि मामले की जांच के दौरान पुलिस को मामले से जुड़े एक बैंक खाते में नौ करोड़ रुपये के संदिग्ध लेनदेन का पता चला है। उन्होंने कहा कि उक्त खाता भी जांच के दायरे में है।
‘डिजिटल अरेस्ट’ साइबर धोखाधड़ी में इस्तेमाल किया जाने वाला एक हथकंडा है। इसमें शिकार बनाये गये लोगों को बताया जाता है कि वे डिजिटल माध्यमों से निगरानी या कानूनी हिरासत में हैं। ऐसी घटनाओं में ठग अक्सर अधिकारियों के रूप में लगातार वीडियो या कॉल निगरानी के माध्यम से पीड़ित को धमकाते हैं और किसी को बताये बगैर निर्देशों का पालन करने के लिए मजबूर करते हैं। इससे अक्सर जबरन वसूली या धोखाधड़ी होती है।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने नागरिकों को ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसी साइबर धोखाधड़ी के बारे में आगाह किया है और उनसे कहा है कि वे अपने साथ ऐसी किसी भी घटना की सूचना अपने नजदीकी पुलिस थाने या हेल्पलाइन नंबर पर दें।
भाषा सं. सलीम अमित
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