नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) भारत के जनसांख्यिकीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 के मुताबिक देश में 13 प्रतिशत बच्चों का जन्म समयपूर्व हो रहा है जबकि जबकि 17 प्रतिशत बच्चों का जन्म के समय वजन मानक से कम होता है। इसके मुताबिक वायु प्रदूषण भी जन्म से जुड़े प्रतिकूल प्रभावों का कारण बन रहा है।
दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान,मुंबई स्थित अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान तथा ब्रिटेन और आयरलैंड के संस्थानों के शोधकर्ताओं ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 और दूर संवेदी डेटा का अध्ययन करके गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से प्रसव परिणामों पर प्रभावों का विश्लेषण किया।
टीम ने पाया कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 (सूक्ष्म कण प्रदूषण) के अधिक संपर्क (में रहने) से जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे पैदा होने की आशंका 40 प्रतिशत तथा समय से पहले प्रसव की आशंका 70 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
जलवायु परिस्थितियों जैसे वर्षा और तापमान, का प्रतिकूल जन्म परिणामों से अधिक गहरा संबंध पाया गया।
स्वास्थ्य पत्रिका ‘पीएलओएस ग्लोबल पब्लिक हेल्थ’ में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक भारत के उत्तरी जिलों में रहने वाले बच्चे परिवेशीय वायु प्रदूषण के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं।
वातावरण में मौजूद 2.5 माइक्रोन से भी छोटे व्यास वाले सूक्ष्म कण पदार्थ को पीएम 2.5 कहा जाता है और इन्हें सबसे हानिकारक वायु प्रदूषक माना जाता है। वातावरण में इनकी मौजूदी के लिए जीवाश्म ईंधन और बायोमास के दहन को प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है।
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक ऊपरी गंगा क्षेत्र में पीएम 2.5 प्रदूषकों का स्तर अधिक है, जिसमें उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्य शामिल हैं, तथा देश के दक्षिणी और उत्तर-पूर्वी क्षेत्रों में इसका स्तर कम है।
अध्ययन के मुताबिक समय से पहले जन्म के अधिक मामले उत्तरी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश (39 प्रतिशत), उत्तराखंड (27 प्रतिशत), राजस्थान (18 प्रतिशत) और दिल्ली (17 प्रतिशत) में आए।
मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा में समय पूर्व बच्चों के जन्म के सबसे कम मामले सामने आए हैं।
पंजाब में जन्म के समय मानक से कम वजनी बच्चें पैदा होने की दर सबसे अधिक 22 प्रतिशत पाई गई। इसके बाद दिल्ली, दादरा और नगर हवेली, मध्य प्रदेश, हरियाणा और उत्तर प्रदेश का स्थान आता है।
अनुसंधानपत्र लेखकों ने कहा कि इस मानदंड पर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों का प्रदर्शन कहीं बेहतर है।
अनुसंधानपत्र लेखकों ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण और कंप्यूटर आधारित भौगोलिक आकलन से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग कर अध्ययन किया गया। साथ ही गर्भ में वायु प्रदूषण के संपर्क और जन्म परिणामों के बीच संबंध को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न सांख्यिकीय विश्लेषण और स्थानिक मॉडलों का उपयोग किया गया है।’’
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक,‘‘यह पाया कि लगभग 13 प्रतिशत बच्चे समय से पहले पैदा हुए और 17 प्रतिशत बच्चे कम वजन के साथ पैदा हुए।’’ इसके अलावा पीएम 2.5 के स्तर में प्रत्येक 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से कम वजन वाले बच्चों के जन्म पैदा होने की आशंका पांच प्रतिशत और समय से पहले जन्म की आशंका 12 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 की पांच वर्ष की अवधि में पैदा हुए 18 प्रतिशत बच्चों का वजन जन्म के समय कम था।
अनुसंधानकर्ताओं ने देश में विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को तेज करने की मांग की है।
2019 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम भारत में वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए पीएम प्रदूषकों के स्तरों को नियंत्रित करने पर केंद्रित है।
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश