नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को उत्तर प्रदेश के एक न्यायिक अधिकारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति को बरकरार रखने वाले आदेश के खिलाफ याचिका खारिज कर दी।
न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ अधिकारी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
न्यायिक अधिकारी को मार्च 2001 में मुंसिफ/सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के रूप में नियुक्त किया गया था। उनको नवंबर 2021 में राज्य सरकार द्वारा सेवा से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।
न्यायिक अधिकारी ने राज्य के फैसले को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने 22 अप्रैल को उनकी याचिका खारिज कर दी।
उच्च न्यायालय ने पाया कि न्यायिक अधिकारियों के सेवा रिकॉर्ड की जांच करने के लिए एक समीक्षा समिति गठित की गई थी, ताकि ‘‘अच्छा प्रदर्शन नहीं करने वाले अधिकारियों को हटाया जा सके’’ तथा समिति ने सेवा रिकॉर्ड के समग्र मूल्यांकन के बाद अधिकारी की अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश की थी।
उसने यह भी उल्लेख किया कि समिति की रिपोर्ट पूर्ण न्यायालय के समक्ष रखी गई थी, जो अधिकारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने की समिति की सिफारिश से सहमत थी।
शीर्ष अदालत ने उनके वकील से कहा, ‘‘कृपया पूर्ण न्यायालय की बुद्धिमत्ता पर कुछ भरोसा करें।’’
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अधिकारी का ट्रैक रिकॉर्ड अनुकरणीय है।
अधिकारी की पदोन्नति का जिक्र करते हुए वकील ने कहा, “मैं (याचिकाकर्ता) कोई खराब प्रदर्शन वाला व्यक्ति नहीं हूं।”
पीठ ने हालांकि कहा, ‘‘हम आक्षेपित फैसले और आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। इसलिए विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’’
भाषा प्रशांत शफीक
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