बेंगलुरु, पांच जुलाई (भाषा) कर्नाटक में हृदयाघात से हुई मौतों के हालिया मामलों की जांच करने वाली विशेषज्ञ समिति ने यह निष्कर्ष निकाला है कि किसी व्यक्ति में समय से पहले हुए हृदय रोग (प्रिमेच्योर कार्डियोवैस्कुलर डिजीज) का कोविड-19 संक्रमण या कोविड टीकाकरण के बीच कोई संबंध नहीं है।
पैनल द्वारा प्रस्तुत एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 टीकाकरण दीर्घकालिक रूप से हृदयाघात की घटनाओं के खिलाफ सुरक्षात्मक साबित हुआ है।
राज्य सरकार ने हसन जिले में हृदयाघात से हुई 20 से अधिक लोगों की मौत की जांच के लिए जयदेव हृदय विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. रविन्द्रनाथ की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति गठित की है।
सरकार को दो जुलाई को सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्तमान आंकड़ा इस बात का समर्थन नहीं करता है कि युवाओं के बीच अचानक हृदयाघात की घटनाओं में हुई वृद्धि के लिए लंबे समय तक हुआ कोविड जिम्मेदार है।
इसमें कहा गया, ‘‘बल्कि, हृदय रोग के सामान्य जोखिम कारकों (जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, धूम्रपान, और रक्त में वसा का असंतुलन) की बढ़ती संख्या ही अचानक हृदयाघात की घटनाओं में वृद्धि का उचित कारण हो सकता है।’’
रिपोर्ट में कहा गया, ‘‘जयदेव अस्पताल में किए गए अवलोकन अध्ययन में समय से पहले होने वाले हृदय रोग और कोविड-19 संक्रमण या कोविड टीकाकरण के पूर्व इतिहास के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया।”
इसमें कहा गया, ‘‘दुनिया के बाकी हिस्सों में प्रकाशित ज़्यादातर अध्ययनों/रिपोर्ट में भी कोविड टीकाकरण और अचानक होने वाली हृदयाघात की घटनाओं के बीच कोई संबंध नहीं पाया गया है, बल्कि कोविड टीकाकरण को लंबे समय में हृदय संबंधी बीमारियों से सुरक्षा देने वाला पाया गया है।”
हाल ही में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा था कि हासन जिले में हृदयाघात से हुई मौतें कोविड टीकाकरण से जुड़ी हो सकती हैं। उन्होंने यह भी दावा किया कि टीकों को ‘जल्दबाजी’ में मंजूरी दी गई थी।
पैनल की रिपोर्ट के अनुसार, अचानक हृदयाघात से मौत के मामलों में बढ़ोतरी के पीछे कोई एक कारण नहीं है। बल्कि इसके कई सारे कारण हो सकते हैं, जिसमें व्यावहारिक, आनुवंशिक और पर्यावरणीय जोखिम शामिल हैं।
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प्रीति सुरेश
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