नयी दिल्ली, छह जुलाई (भाषा) दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत धन शोधन रोधक अधिनियम (पीएमएलए) को नजरअंदाज नही किया जा सकता है। राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) ने अपने आदेश में यह बात कही है।
अपीलीय न्यायाधिकरण ने यह भी कहा कि कर्ज में डूबी किसी फर्म की संपत्ति प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा कुर्क करने और सक्षम प्राधिकारी द्वारा इसकी पुष्टि करने के बाद उसे समाधान योजना के लिए जारी नहीं किया जा सकता है।
राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण ने कहा कि दिवाला और ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) की धारा 14 के तहत, समाधान के लिए ऐसी संपत्तियों पर रोक अवधि लागू है। हालांकि, अगर संपत्ति को अपराध की आय माना जाता है और पहले से ही दंडात्मक कानून के तहत सक्षम प्राधिकारी उस पर फैसला कर रहे हैं, तो ऐसी संपत्ति को स्वतंत्र रूप से उपलब्ध समाधान संपत्ति का हिस्सा नहीं माना जा सकता है।
अपीलीय न्यायाधिकरण ने माना कि यदि प्रवर्तन निदेशालय पीएमएलए के तहत किसी संपत्ति को कुर्क करता है, और ऐसा वैध रूप से किया गया है, तो इसे आईबीसी के तहत समाधान के लिए नहीं लाया जा सकता।
एनसीएलएटी ने कहा कि पीएमएलए और आईबीसी अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं और दोनों के बीच कोई ‘अपूरणीय असंगति’ मौजूद नहीं है।
एनसीएलएटी ने कहा कि ईडी एक लेनदार के रूप में नहीं, बल्कि एक सार्वजनिक प्रवर्तन एजेंसी के रूप में कार्य करता है। इस संबंध में अपीलीय न्यायाधिकरण ने राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) के एक आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि जब्त की गई संपत्तियां लेनदारों को संतुष्ट करने के लिए नहीं हैं, बल्कि एफएटीएफ और संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों के तहत दंडात्मक उद्देश्यों और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को बनाए रखने के लिए हैं।
भाषा पाण्डेय अजय
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