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Monday, July 7, 2025

मदरसा आधुनिकीकरण संबंधी समिति की सिफारिशों के लिए इंतजार और लंबा हो सकता है

Newsमदरसा आधुनिकीकरण संबंधी समिति की सिफारिशों के लिए इंतजार और लंबा हो सकता है

(मुहम्मद मजहर सलीम)

लखनऊ, छह जुलाई (भाषा) उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की मदरसा सुधार एवं आधुनिकीकरण परियोजना को अमली जामा पहनाए जाने का इंतजार और लंबा हो सकता है क्योंकि सिफारिशों का मसौदा तैयार करने वाली समिति ने अपने कार्यकाल में तीन महीने का विस्तार करने का अनुरोध किया है।

सरकार ने मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम और मदरसों के संचालन संबंधी नियमावली में संशोधन तथा इन संस्थाओं से जुड़े कई अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर विचार कर सिफारिशें देने के लिए विगत 30 मई को एक समिति का गठन करके एक महीने के अंदर रिपोर्ट सौंपने को कहा था, लेकिन समिति तय समय सीमा के अंदर रिपोर्ट नहीं दे सकी।

उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार आर. पी. सिंह ने रविवार को ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि मदरसा शिक्षा में सुधार और आधुनिकीकरण के लिए इसी साल 30 मई को गठित की गई समिति का कार्यकाल कम से कम तीन महीने और बढ़ाने के लिए सरकार से आग्रह किया गया है।

उन्होंने बताया कि हालांकि समिति को 30 जून तक अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी लेकिन समिति को सौंपा गया काम बेहद व्यापक है और उसे बहुत से पहलुओं पर विचार-विमर्श करके अपनी सिफारिशें देनी होंगी।

मदरसा शिक्षा अधिनियम और नियमावली में संशोधन भी इसी समिति की सिफारिशों के आधार पर किए जाएंगे। लिहाजा समिति के कार्यकाल को कम से कम तीन महीने और बढ़ाने के लिए सरकार से गुजारिश की गई है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी साल 30 मई को अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के निदेशक की अध्यक्षता में छह सदस्यीय एक समिति गठित की थी। इसमें अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ विभाग, बेसिक शिक्षा विभाग, माध्यमिक शिक्षा विभाग, वित्त विभाग और न्याय विभाग के विशेष सचिवों को सदस्य बनाया गया है।

इस समिति की सिफारिशों पर मदरसा शिक्षा परिषद अधिनियम 2004 और उत्तर प्रदेश अशासकीय अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता प्रशासन और सेवा विनियमावली 2016 में जरूरी संशोधन किए जाने हैं।

यह समिति मदरसों में नौ से 12 तक की कक्षाओं के लिए विषयों और पाठ्यक्रम के पुनर्निर्धारण से संबंधित सिफारिशें देगी। इसके अलावा मदरसों में छात्रों की संख्या के अनुरूप शिक्षकों की व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए नए शिक्षकों की चयन प्रक्रिया और उनके तबादले के लिए नीति निर्धारण तथा छात्र-शिक्षक अनुपात के आधार पर विषयवार शिक्षकों का समायोजन करने, मदरसे में कार्यरत शिक्षकों को कक्षा एक से पांच अथवा छह से कक्षा आठ में उपयोग करने की व्यवस्था को लेकर भी समिति अपनी सिफारिशें देगी।

समिति शिक्षकों की विषयवर योग्यता को चिह्नित कर उनका प्रशिक्षण और ब्रिज कोर्स कराकर उन्हें आधुनिक विषयों से जोड़ने, मदरसों की मान्यता की शर्तों का फिर से निर्धारण करने, मदरसों के सुचारु संचालन और शिक्षकों की सेवा सुरक्षा तथा विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक सुधार को लेकर भी सिफारिशें पेश करेगी।

प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि इस समिति के गठन का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम समाज के बच्चों को तेजी से बदलती दुनिया के अनुरूप ढालने और मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को उस हिसाब से उन्नत करना है।

उन्होंने कहा कि भविष्य में मदरसों का कार्य संचालन किस तरह से होगा, उसमें इस समिति की सिफारिशों का महत्वपूर्ण योगदान होगा। पूरी उम्मीद है कि इस समिति की सिफारिशें मदरसों के आधुनिकीकरण और उन्नयन के लिहाज से बेहद अहम साबित होंगी।

जमीयत उलमा-ए-हिंद (एएम) के कानूनी सलाहकार मौलाना काब रशीदी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि इस समिति की सिफारिशें सार्थक होंगी।

हालांकि, उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार ने पिछली 30 मई को जो समिति गठित की है उसकी सिफारिशों के आधार पर मदरसा शिक्षा अधिनियम और नियमावली में संशोधन किया जाना है, लेकिन अफसोस की बात है कि इस समिति में मदरसों का ही कोई प्रतिनिधित्व नहीं है। बेहतर होता अगर इसमें मदरसों की भी नुमाइंदगी होती। ऐसे में मदरसों से जुड़ी तमाम कई महत्वपूर्ण बातें और मसले समिति के सामने आ ही नहीं पाएंगे।

रशीदी ने एक अलग पहलू जाहिर करते हुए कहा कि शायद सरकार यह सोच रही है कि मदरसों में सिर्फ दीनी तालीम ही दी जाती है लेकिन यह उसकी गलतफहमी है। जमीयत के लोगों और कई अन्य संगठनों द्वारा तथा व्यक्तिगत रूप से भी संचालित किए जा रहे अनेक मदरसों में काफी पहले से आधुनिक शिक्षा दी जा रही है और उनमें पढ़ने वाले बच्चे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) तक के लिए चयनित हो रहे हैं।

मदरसा शिक्षकों के संगठन ‘टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया उत्तर प्रदेश’ के महासचिव दीवान साहब ज़मां खां ने कहा कि उम्मीद है कि सरकार द्वारा गठित समिति मदरसों में दी जाने वाली दीनी तालीम से छेड़छाड़ किए बिना पाठ्यक्रम में यथासंभव सुधार की सिफारिश करेगी।

हालांकि समिति को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि वह शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए बच्चों पर अतिरिक्त विषयों के रूप में इतना बोझ ना डाल दे कि वे उसे उठा ना सकें।

उन्होंने कहा कि सरकार ने जो समिति गठित की है उसमें सभी सदस्य भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी हैं, लेकिन इसमें मदरसा शिक्षा का कोई भी विशेषज्ञ शामिल नहीं है। वह भी तब जब मदरसा शिक्षा अधिनियम और नियमावली में संशोधन के बड़े-बड़े फैसले इसी समिति की सिफारिश पर निर्भर करेंगे। उन्होंने कहा कि यह जरूरी था कि मदरसा शिक्षा से जुड़े लोगों को भी समिति में शामिल किया जाता।

समिति के कार्यकाल को तीन महीने तक बढ़ाने की मांग के बारे में खां ने कहा कि समिति का काम बहुत बड़ा है और इसके लिए छह महीने भी कम होंगे।

खां ने यह भी सवाल उठाया कि उच्चतम न्यायालय द्वारा कामिल और फाजिल डिग्रियों को अवैध घोषित किए जाने के बाद मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए अब इस स्तर की उच्च शिक्षा के दरवाजे पूरी तरह बंद हो चुके हैं, मगर सरकार इस पर खामोश है और उसकी नीयत स्पष्ट नहीं है।

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार वर्ष 2017 से ही मदरसों के संचालन को पारदर्शी बनाने और उनमें दी जाने वाली शिक्षा के आधुनिकीकरण के लिए अनेक कदम उठा चुकी है। इनमें मदरसों के पंजीकरण के लिए पोर्टल बनाने से लेकर प्रदेश के सभी मदरसों में दी जा रही तालीम और सुविधाओं के आकलन के लिए व्यापक सर्वे कराया जाना भी शामिल है। अब यह समिति गठित किया जाना इस दिशा में ताजातरीन कदम है।

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में करीब 25000 मदरसे हैं जिनमें से लगभग 13000 मदरसा शिक्षा परिषद से मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इनमें से 561 को सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। बाकी मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं।

भाषा सलीम संतोष

संतोष

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