(एना जोवान्सेविक, लिमरिक विश्वविद्यालय)
लिमरिक, छह जुलाई (द कन्वरसेशन) जब हम किसी दूसरे व्यक्ति को ईमेल या सोशल मीडिया पर कुछ लिखते हैं तो हम सीधे तौर पर कुछ नहीं कहते, लेकिन हमारे शब्द एक छिपे हुए अर्थ को व्यक्त कर सकते हैं। हम अक्सर यह भी उम्मीद करते हैं कि ये भावनाएं पाठकों तक पहुंच जायेंगी।
लेकिन क्या होगा यदि दूसरी तरफ कोई कृत्रिम मेधा (एआई) प्रणाली हो, न कि कोई व्यक्ति? क्या एआई हमारे मूलपाठ में छिपे अर्थ को समझ सकता है? और अगर ऐसा है, तो इसका हमारे लिए क्या मतलब है?
विषय-वस्तु विश्लेषण अध्ययन का एक क्षेत्र है जो पाठ में अंतर्निहित गहरे अर्थों और भावनाओं को उजागर करने से संबंधित है। उदाहरण के लिए, इस प्रकार का विश्लेषण हमें संचार में मौजूद राजनीतिक झुकाव को समझने में मदद कर सकता है जो शायद सभी के लिए स्पष्ट नहीं है।
यह समझना कि किसी की भावनाएं कितनी तीव्र हैं या वे व्यंग्यात्मक हैं, किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने, ग्राहक सेवा में सुधार लाने और यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण हो सकता है।
ये तो बस कुछ उदाहरण हैं। हम जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी इसके फायदों की कल्पना कर सकते हैं, जैसे सामाजिक विज्ञान अनुसंधान, नीति-निर्माण और व्यवसाय। यह देखते हुए कि ये कार्य कितने महत्वपूर्ण हैं – और संवादात्मक एआई कितनी तेजी से बेहतर हो रहा है – यह पता लगाना आवश्यक है कि ये प्रौद्योगिकियां इस संबंध में क्या कर सकती हैं (और क्या नहीं)।
इस मुद्दे पर काम अभी शुरू ही हुआ है। मौजूदा अध्ययन से पता चलता है कि चैटजीपीटी को समाचार वेबसाइटों पर राजनीतिक झुकाव का पता लगाने में सीमित सफलता मिली है।
चैटजीपीटी का उपयोग मुख्य रूप से प्राकृतिक भाषा को समझने और उत्पन्न करने के लिए किया जाता है।
‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ में प्रकाशित हमारे नये अध्ययन ने यह जांच-पड़ताल कि क्या संवादात्मक एआई, जिसमें जीपीटी-4 भी शामिल है – जो चैटजीपीटी का अपेक्षाकृत नया संस्करण है – मानव-लिखित पाठ की पंक्तियों के बीच पढ़ सकता है।
यह क्यों मायने रखता है? एक बात यह है कि जीपीटी-4 जैसी एआई बड़ी मात्रा में ऑनलाइन सामग्री का विश्लेषण करने में लगने वाले समय और लागत में नाटकीय रूप से कटौती कर सकती है।
सामाजिक वैज्ञानिक अक्सर रुझानों का पता लगाने के लिए उपयोगकर्ता द्वारा तैयार किए गए पाठ का विश्लेषण करने में महीनों बिताते हैं। दूसरी ओर, जीपीटी-4, तेज, अधिक प्रतिक्रियाशील शोध के द्वार खोलता है, विशेष रूप से संकट, चुनाव या सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान।
पत्रकारों और तथ्य-जांचकर्ताओं को भी इससे लाभ हो सकता है। जीपीटी-4 द्वारा संचालित उपकरण वास्तविक समय में भावनात्मक रूप से आवेशित या राजनीतिक रूप से झुकाव वाले पोस्ट को चिह्नित करने में मदद कर सकते हैं।
अभी भी चिंताएं बनी हुई हैं। एआई में पारदर्शिता, निष्पक्षता और राजनीतिक झुकाव अभी भी मुद्दे बने हुए हैं। हालांकि, इस तरह के अध्ययनों से पता चलता है कि जब भाषा समझने की बात आती है, तो मशीनें तेजी से हमसे आगे निकल रही हैं – और जल्द ही वे महज उपकरण के बजाय मूल्यवान टीम के सदस्य बन सकते हैं।
(द कन्वरसेशन)
देवेंद्र रंजन
रंजन