(अरविंद मिश्रा)
पुरी, छह जुलाई (भाषा) भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को रथों पर ‘सुना भेषा’ अनुष्ठान के दौरान 208 किलोग्राम सोने के आभूषणों से सजाया जाएगा।
‘सुना भेषा’, पुरी में वार्षिक रथ यात्रा उत्सव का एक अभिन्न अंग है।
श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने बताया कि देवताओं का ‘सुना भेषा’ अनुष्ठान रविवार को होगा और भक्त शाम साढ़े छह बजे से रात 11 बजे तक अनुष्ठान देख सकते हैं।
मंदिर के सूत्रों के अनुसार, देवताओं को 30 अलग-अलग डिजाइन के आभूषण पहनाए गए हैं जिनमें सोना, हीरा, चांदी और अन्य कीमती धातुएं शामिल हैं।
श्री जगन्नाथ संस्कृति के लेखक और शोधकर्ता भास्कर मिश्रा ने बताया, “शुरुआत में, 1460 में राजा कपिलेंद्र देब के काल में लगभग 138 डिजाइन के आभूषण पहनाये जाते थे। आज भी इस अनुष्ठान में लगभग 208 किलोग्राम सोने के आभूषणों का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, वे पूरी तरह से सोने के नहीं होते। आभूषण सोने, चांदी, हीरे और अन्य धातुओं के मिश्रण से बनाए जाते हैं। आभूषणों में सिर्फ सोने के वजन का कोई अलग से अनुमान नहीं लगाया गया है।”
उन्होंने बताया कि ओडिशा में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान ‘सुना भेषा’ में सोने के आभूषणों के इस्तेमाल के रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, लेकिन अनुष्ठान में इस्तेमाल किए गए सोने के वजन का कोई उल्लेख नहीं है।
‘सुना भेषा’ अनुष्ठान से जुड़े पुजारियों ने दावा किया कि राजा कपिलेंद्र देब के समय पहनाये जाने वाले आभूषणों का डिजाइन आज भी चलन में है।
उन्होंने बताया हालांकि, तीर्थयात्रियों द्वारा दान किए गए सोने का उपयोग कर कभी-कभी उन्हें ठीक किया जाता है।
मिश्रा ने बताया, “हर वर्ष रथ यात्रा के दौरान रथों पर ‘सुना भेषा’ से पहले सोने के आभूषणों को ठीक कर नए जैसा बनाया जाता है।”
उन्होंने बताया कि कुछ आभूषणों को फिर से बनाने की मांग की जा रही है क्योंकि भगवान के खजाने में पिछले कुछ वर्षों में भक्तों से लगभग 50 किलोग्राम सोना आया है।
प्रोफेसर सुरेंद्रनाथ दास ने बताया कि मंदिर की शब्दावली में रथों पर ‘सुना भेषा’ को ‘बड़ा ताड़ौ भेषा’ भी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि पुरी के देवता वर्ष में पांच बार स्वर्ण पोशाक पहनते हैं हालांकि, ‘बड़ा ताड़ौ भेषा’ इसलिए लोकप्रिय है क्योंकि इसे रथों पर आयोजित किया जाता है तथा बड़ी संख्या में भक्तों को इसे देखने का अवसर मिलता है।
दास ने बताया कि यह ‘सुना भेषा’ आषाढ़ महीने के 11वें शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आयोजित किया जाता है।
ओडिया पंचांग के अनुसार, विजयादशमी (दशहरा), कार्तिक पूर्णिमा, डोला पूर्णिमा और पौष पूर्णिमा (पुष्यभिषेक) के अवसर पर मंदिर के अंदर चार अन्य ‘सुना भेषा’ आयोजित किए जाते हैं।
श्री जगन्नाथ संस्कृति शोधकर्ता असित मोहंती ने बताया कि पुरी मंदिर में ‘सुना भेषा’ अनुष्ठान 1460 में राजा कपिलेंद्र देब के शासनकाल के दौरान शुरू हुआ था और उस समय शासक दक्षिण भारत के शासकों से युद्ध जीतने के बाद ओडिशा में 16 गाड़ियों में सोने के आभूषण लेकर आए थे।
मोहंती ने बताया कि राजा ने भगवान जगन्नाथ को सोना व हीरा दान किया और मंदिर के पुजारियों को ‘सुना भेषा’ अनुष्ठान के लिए त्रिदेवों के आभूषण तैयार करने का निर्देश दिया।
उन्होंने बताया कि देवताओं को सोने के मुकुट, सोने से बने हाथ और पैर सहित विभिन्न प्रकार के सोने के आभूषणों से सजाया जाता है।
मोहंती ने बताया कि भगवान जगन्नाथ के दाहिने हाथ में सोने का चक्र व बाएं हाथ में चांदी का शंख है, भगवान बलभद्र के बाएं हाथ में सोने का हल व दाएं हाथ में सोने की गदा है और देवी सुभद्रा को भी अलग-अलग आभूषण पहनाये जाते हैं।
सोने की अच्छी मात्रा के अलावा, पुरी मंदिर की काफी जमीन-जायदाद भी है।
ओडिशा में मंदिर की जमीन 24 जिलों में लगभग 60,426 एकड़ होने का अनुमान है।
विधि विभाग के सूत्रों ने बताया कि इसके अलावा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार सहित अन्य राज्यों में भी लगभग मंदिर प्रशासन की 395 एकड़ जमीन है।
भाषा जितेंद्र आशीष
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