नयी दिल्ली, सात जुलाई (भाषा) दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (एफवाईयूपी) के कार्यान्वयन को ‘‘असफलता का नुस्खा’’ बताते हुए सोमवार को राष्ट्रपति को एक याचिका सौंपी, जिसमें शैक्षणिक, ढांचागत और नीतिगत कमी पर गंभीर चिंता जताई गई।
लगभग 2,000 संकाय सदस्यों ने याचिका का समर्थन किया है।
डूटा के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर ए के भागी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘वर्तमान में हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत चौथा वर्ष संभव नहीं है। हमें छात्रों की बढ़ती संख्या को समायोजित करने के लिए बुनियादी ढांचे के विस्तार के लिए श्रम बल और धन की आवश्यकता है, लेकिन हमारे पास दोनों की कमी है।’
डूटा ने वेतन समीक्षा समिति (पीआरसी) की रिपोर्ट के अभाव में यूजीसी (विश्वविद्यालय अनुदान आयोग) विनियमन, 2025 के मसौदे को वापस लेने का आग्रह किया है और लंबे समय से सेवा-संबंधी चिंताओं के तत्काल निवारण की मांग की है। यह याचिका शिक्षा मंत्रालय के माध्यम से राष्ट्रपति को सौंपी गई, जो विश्वविद्यालय की विजिटर भी हैं।
प्रोफेसर भागी ने आगाह किया कि पर्याप्त संकाय, बुनियादी ढांचे और कक्षा स्थान के बिना, एफवाईयूपी का कार्यान्वयन छात्रों के भविष्य को खतरे में डाल देगा।
उन्होंने सुविधाओं को उन्नत करने के लिए कॉलेजों को तत्काल विशेष सहायता दिये जाने की मांग करते हुए कहा, ‘यह विफलता का नुस्खा है। शैक्षणिक स्वतंत्रता की कीमत पर वित्तीय सहायता बर्दाश्त नहीं की जाएगी।’’
डूटा सचिव डॉ. अनिल कुमार ने दोहराया कि यूजीसी नियमों के मसौदे को उनके वर्तमान स्वरूप में लागू नहीं किया जाना चाहिए और शैक्षणिक हितधारकों के साथ व्यापक विचार-विमर्श के बाद इसे आगामी 8वें वेतन आयोग के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए।
भाषा आशीष दिलीप
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