(तस्वीरों के साथ)
कोच्चि, सात जुलाई (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सोमवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नयी दिल्ली में एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले की आपराधिक जांच शुरू की जाएगी।
धनखड़ ने इस घटना की तुलना शेक्सपीयर के नाटक जूलियस सीजर के एक संदर्भ ‘‘इडस ऑफ मार्च’’ से की, जिसे आने वाले संकट का प्रतीक माना जाता है।
रोमन कलैंडर में इडस का अर्थ होता है, किसी महीने की बीच की तारीख। मार्च, मई, जुलाई और अक्टूबर में इडस 15 तारीख को पड़ता है।
उपराष्ट्रपति ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि अब मुद्दा यह है कि यदि नकदी बरामद हुई थी तो शासन व्यवस्था को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी और पहली प्रक्रिया यह होनी चाहिए थी कि इससे आपराधिक कृत्य के रूप में निपटा जाता, दोषी लोगों का पता लगाया जाता और उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाता।
उन्होंने नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एडवांस्ड लीगल स्ट्डीज (एनयूएएलएस) में छात्रों और संकाय सदस्यों से बातचीत करते हुए उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने की तुलना ‘‘आइडस ऑफ मार्च’’ से की।
उल्लेखनीय है कि रोम के सम्राट जूलियस सीजर की हत्या 44 ईसा पूर्व में 15 मार्च को हुई थी।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि 14-15 मार्च की रात को न्यायपालिका को अपने खुदे के ‘‘इडस ऑफ मार्च’’ का सामना करना पड़ा, जब बड़ी मात्रा में नकदी मिलने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की गयी थी, लेकिन अब तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी।
धनखड़ ने कहा कि इस मामले से शुरुआत से ही एक आपराधिक मामले के तौर पर निपटा जाना चाहिए था, लेकिन उच्चतम न्यायालय के 90 के दशक के एक फैसले के कारण केंद्र सरकार के हाथ बंधे हुए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गयी। केंद्र सरकार इस मामले में उच्चतम न्यायालय के 90 के शुरुआती दशक के एक फैसले के कारण कार्रवाई करने में असमर्थ है, जिसकी वजह से प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकी।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया भारत को एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में देखती है, जहां कानून का शासन होना चाहिए और कानून के समक्ष समानता होनी चाहिए, जिसका मतलब है कि हर अपराध की जांच होनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर इतना अधिक मात्रा में पैसा है, तो हमें पता लगाना होगा: क्या यह दागी पैसा है? इस पैसे का स्रोत क्या है? यह एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास में यह कैसे पहुंचा? यह किसका था? इस प्रक्रिया में कई दंड प्रावधानों का उल्लंघन किया गया है। मुझे उम्मीद है कि प्राथमिकी दर्ज की जाएगी।’’
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें मामले की जड़ तक जाना चाहिए। हमारी न्यायपालिका (जिसमें लोगों का अटूट विश्वास है) की नींव हिल गई है। इस घटना के कारण गढ़ डगमगा रहा है।’’
उनका यह बयान उन खबरों के बीच आया है कि न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने के बाद वहां बड़ी मात्रा में अघोषित नकदी बरामद होने के बाद संसद में उनके खिलाफ महाभियोग लाने की प्रक्रिया चल रही है।
न्यायाधीश वर्मा ने सभी आरोपों से इनकार किया है और कहा कि वह दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति को जवाब सौंप चुके हैं।
इसके बावजूद उनसे न्यायिक कार्य वापस ले लिये गए हैं और बाद में उनका तबादला इलाहाबाद उच्च न्यायालय कर दिया गया, जहां उच्चतम न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश को उन्हें कुछ समय के लिए कोई न्यायिक दायित्व न सौंपने का निर्देश दिया है।
इस मामले की जांच कर रही समिति ने दिल्ली पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा और दिल्ली दमकल सेवा प्रमुख अतुल गर्ग समेत 50 से अधिक लोगों के बयान दर्ज किए हैं।
धनखड़ ने यह भी कहा कि देश की न्यायपालिका पर लोगों का बहुत भरोसा और वे इसका सम्मान करते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘लोगों का न्यायपालिका पर जितना भरोसा है उतना किसी और संस्था पर नहीं है। अगर संस्था पर उनका भरोसा खत्म हो गया तो हम एक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे। एक अरब 40 करोड़ लोगों का देश इससे पीड़ित होगा।’’
धनखड़ ने कहा कि वह इस बात से हैरान हैं कि सीबीआई निदेशक जैसे कार्यपालिका के पदाधिकारी की नियुक्ति भारत के प्रधान न्यायाधीश की भागीदारी से की जाती है।
उन्होंने पूछा, ‘‘क्या दुनिया में कहीं और भी ऐसा हो रहा है? क्या यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था के तहत हो सकता है? कार्यपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका के अलावा किसी और द्वारा क्यों की जानी चाहिए?’’
उन्होंने कहा कि यदि कोई एक संस्था (न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका) दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है, तो इससे पूरी व्यवस्था बिगड़ सकती है।
भाषा संतोष सुरेश
सुरेश