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Tuesday, July 8, 2025

चैटजीपीटी का इस्तेमाल मस्तिष्क को ठप कर सकता है, सच थोड़ा जटिल : एमआईटी शोधकर्ताओं का दावा

Newsचैटजीपीटी का इस्तेमाल मस्तिष्क को ठप कर सकता है, सच थोड़ा जटिल : एमआईटी शोधकर्ताओं का दावा

(विटोमिर कोवानोविक और रेबेका मार्रोन, यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ ऑस्ट्रेलिया)

एडीलेड (ऑस्ट्रेलिया), आठ जुलाई (द कन्वरसेशन) चैटजीपीटी के लगभग तीन साल पहले आने के बाद से, सीखने पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) तकनीकों के प्रभाव पर व्यापक रूप से बहस हुई है। क्या वे व्यक्तिगत शिक्षा के लिए उपयोगी उपकरण हैं, या अकादमिक बेईमानी के प्रवेश द्वार हैं?

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बात की चिंता है कि एआई के इस्तेमाल से व्यापक रूप से “मूर्खता” पैदा होगी, या आलोचनात्मक ढंग से सोचने की क्षमता में गिरावट आएगी। तर्क यह है कि अगर छात्र बहुत जल्दी एआई टूल का इस्तेमाल करते हैं, तो उनमें आलोचनात्मक सोच और समस्या-समाधान के लिए बुनियादी कौशल विकसित नहीं हो सकते।

क्या वाकई ऐसा है? एमआईटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि निबंध लिखने में मदद के लिए चैटजीपीटी का उपयोग करने से संज्ञानात्मक समझ और ‘‘सीखने के कौशल में संभावित कमी’’ हो सकती है।

तो अध्ययन में क्या पाया गया?

एआई और अकेले मस्तिष्क के इस्तेमाल के बीच का अंतर

चार महीनों के दौरान, एमआईटी टीम ने 54 वयस्कों से एआई (चैटजीपीटी), एक खोज इंजन या अपने स्वयं के मस्तिष्क (केवल मस्तिष्क समूह) का उपयोग करके तीन निबंधों की एक श्रृंखला लिखने के लिए कहा। टीम ने मस्तिष्क में विद्युत गतिविधि की पड़ताल करके और निबंधों के भाषायी विश्लेषण के माध्यम से संज्ञानात्मक जुड़ाव को मापा।

एआई का इस्तेमाल करने वालों की संज्ञानात्मक सहभागिता अन्य दो समूहों की तुलना में काफी कम थी। इस समूह को अपने निबंधों से उद्धरण याद करने में भी कठिनाई हुई और उन पर स्वामित्व की भावना कम महसूस हुई।

लेखकों का दावा है कि यह दर्शाता है कि कैसे लंबे समय तक एआई के इस्तेमाल से प्रतिभागियों की संज्ञानात्मक समझ पर असर पड़ा। जब उन्हें आखिरकार अपने दिमाग का इस्तेमाल करने का मौका मिला, तो वे दूसरे दो समूहों की तरह जुड़ाव को दोहराने या उतना अच्छा प्रदर्शन करने में असमर्थ थे।

मूल्यांकन में एआई के निहितार्थ क्या हैं?

एआई की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए हम उस समय पर नजर डाल सकते हैं जब कैलकुलेटर पहली बार उपलब्ध हुए थे।

तब 1970 के दशक में, परीक्षाओं को और अधिक कठिन बनाकर उनके प्रभाव को नियंत्रित किया गया था। हाथ से गणना करने के बजाय, छात्रों से अपेक्षा की जाती थी कि वे कैलकुलेटर का उपयोग करें और अपने संज्ञानात्मक प्रयासों को अधिक जटिल कार्यों पर खर्च करें।

प्रभावी रूप से, मानक काफी ऊंचा कर दिया गया, जिससे छात्रों को कैलकुलेटर उपलब्ध होने से पहले की तुलना में उतनी ही मेहनत (यदि अधिक नहीं तो) करनी पड़ी।

एआई के साथ चुनौती यह है कि, अधिकांश चीजों के लिए, शिक्षकों ने इस तरह से मानक नहीं बढ़ाया है कि एआई प्रक्रिया का एक आवश्यक हिस्सा बन जाए। शिक्षक अब भी छात्रों से वही कार्य पूरा करने की अपेक्षा करते हैं और उसी मानक के काम की अपेक्षा करते हैं जो वे पांच साल पहले करते थे।

ऐसी स्थितियों में, एआई वास्तव में हानिकारक हो सकता है। छात्र अधिकांशतः सीखने के साथ महत्वपूर्ण जुड़ाव को एआई पर छोड़ देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ‘‘मेटाकॉग्निटिव आलस्य’’ होता है।

हालाँकि, कैलकुलेटर की तरह ही, एआई हमें उन कार्यों को पूरा करने में मदद कर सकता है जो पहले असंभव थे – और अब भी महत्वपूर्ण जुड़ाव की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, हम शिक्षण छात्रों को एक विस्तृत पाठ योजना बनाने के वास्ते एआई का उपयोग करने के लिए कह सकते हैं, जिसका मूल्यांकन मौखिक परीक्षा में गुणवत्ता और शैक्षणिक सुदृढ़ता के लिए किया जाएगा।

(द कन्वरसेशन)

नेत्रपाल मनीषा

मनीषा

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