नयी दिल्ली, आठ जुलाई (भाषा) संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी अंतरराष्ट्रीय कृषि विकास कोष (आईएफएडी) के अध्यक्ष अल्वारो लारियो ने कहा है कि ग्रामीण क्षेत्र में निवेश लाना संस्थान की प्राथमिकता है। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि में निवेश किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में गरीबी को कम करने में दो से तीन गुना अधिक प्रभावी है।
लारियो ने पीटीआई-भाषा के साथ बातचीत में कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में निजी पूंजी लाना जरूरी है। वैश्विक स्तर पर, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से निपटने लिए लगभग 75 अरब डालर के निवेश की जरूरत है।
वैश्विक खाद्य संकट के जवाब में 1977 में स्थापित, आईएफएडी एक विशेष संयुक्त राष्ट्र एजेंसी और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान है जो ग्रामीण समुदायों में भुखमरी और गरीबी की समस्या से निजात दिलाने के लिए काम करती है।
लारियो ने कहा, ‘‘आईएफएडी की प्राथमिकता विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों के लिए दीर्घकालिक वित्तपोषण जुटाना है। इसके जरिये विशेष रूप से उन लोगों के लिए दीर्घकालिक प्रभाव सुनिश्चित किया जाता है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे लिए, वित्त एक साधन है और हम जानते हैं कि कृषि में निवेश किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में गरीबी को कम करने में दो से तीन गुना अधिक प्रभावी है।’’
लारियो ने कहा कि आईएफएडी ने भारत के साथ लगभग 50 वर्षों से साझेदारी की है और भारत इसके संस्थापक सदस्यों में से एक है। साथ ही संस्थान के सबसे बड़े उधारकर्ताओं में से एक होने के साथ दानदाता भी है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के लिए, तीन बड़े सवाल हैं… हम किसानों के लिए कृषि को अधिक लाभदायक कैसे बना सकते हैं, हम जलवायु संबंधी चुनौतियों के बीच उत्पादकता को कैसे बढ़ा सकते हैं और हम खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा की ओर कैसे बढ़ सकते हैं।’’
आईएफएडी के अध्यक्ष ने कहा कि जलवायु परिवर्तन की समस्या वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक हैं। बढ़ते तापमान, बदलते वर्षा प्रतिरूप और अत्यधिक गर्मी, सर्दी और बारिश की घटनाओं ने पहले से ही पैदावार को कम करने के साथ ग्रामीण आजीविका को बाधित किया है।’’
लारियो ने कहा, ‘‘इसलिए हम जानते हैं कि छोटी जोत के किसानों को इनमें से कई जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से पार पाने के लिए कम-से-कम 75 अरब डॉलर की आवश्यकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के मामले में हम मौसमी जल की कमी, बढ़ते तापमान, लगातार सूखे को देख रहे हैं। इसलिए ऐसे कई निवेश हैं जो वास्तव में वैश्विक स्तर पर इन छोटी जोत के किसानों का समर्थन कर सकते हैं। वैश्विक जलवायु वित्त में, इन छोटे उत्पादकों, करोड़ों ग्रामीण लोगों को समग्र वैश्विक जलवायु वित्त का केवल एक प्रतिशत से भी कम प्राप्त हो रहा है।’’
उन्होंने कहा कि भारत में कृषि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 20 प्रतिशत है और यह लगभग 42 प्रतिशत कार्यबल को रोजगार देता है।
लारियो ने कहा, ‘‘इसलिए भले ही बहुत प्रगति हुई है, लेकिन हमारा मानना है कि गरीब-समर्थक समावेशी मूल्य श्रृंखला में निवेश जारी रखना और छोटे उत्पादकों को बाजारों से जोड़ना महत्वपूर्ण बना हुआ है।’’
उन्होंने क्षेत्र में निजी पूंजी लाने की जरूरत भी बतायी।
लारियो ने कहा कि आईएफएडी का दृष्टिकोण भारत में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर समाधान तैयार करने का है। साथ ही यह सुनिश्चित करना कि निजी क्षेत्र को लाया जाए और छोटे भूमिधारक, आदिवासी समुदाय, ग्रामीण युवा और महिलाएं इनमें से कई निवेश के केंद्र में हों।
भाषा रमण अजय
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