मुंबई, आठ जुलाई (भाषा) प्रधान न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने मंगलवार को यहां कहा कि डॉ. बी आर आंबेडकर ने संविधान की सर्वोच्चता की बात की थी और उनका मानना था कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
वह शीर्ष न्यायिक पद पर पदोन्नत होने पर महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा अपना अभिनंदन किए जाने के बाद बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि संविधान देश में रक्तहीन क्रांति का हथियार रहा है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका ने पिछले 75 वर्षों में भारत में सामाजिक-आर्थिक समानता लाने के लिए मिलकर काम किया है। उन्होंने कहा कि जैसे-जैसे संविधान अपनी शताब्दी की ओर बढ़ रहा है, उन्हें खुशी है कि वह न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा रहे हैं।
महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों द्वारा उनके सम्मान में सर्वसम्मति से बधाई प्रस्ताव पारित किए जाने के बाद न्यायमूर्ति गवई ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. आंबेडकर ने कहा था, ‘‘हम सभी संविधान की सर्वोच्चता में विश्वास करते हैं, जो शांति और युद्ध के दौरान देश को एकजुट रखेगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान तीनों अंगों – कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका को अधिकार देता है तथा आंबेडकर के अनुसार न्यायपालिका को नागरिकों के अधिकारों की प्रहरी और संरक्षक के रूप में काम करना है।
उन्होंने कहा कि आंबेडकर ने यह भी कहा था कि न्यायपालिका को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से मुक्त होना चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश ने आंबेडकर के इस कथन को भी उद्धृत किया कि संविधान स्थिर नहीं रह सकता, इसे जीवंत होना चाहिए तथा निरंतर विकसित होते रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि अगली पीढ़ी को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, उनका अनुमान वर्तमान पीढ़ी नहीं लगा सकती, इसलिए संशोधनों की अनुमति दी गई।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि संविधान के कारण ही महिलाएं और पिछड़े समुदाय राष्ट्रीय मुख्यधारा में आए हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे पास एक महिला प्रधानमंत्री, दो महिला राष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति के रूप में पिछड़े समुदाय से आने वाले के. आर. नारायणन और रामनाथ कोविंद, लोकसभा अध्यक्ष के रूप में जी एम सी बालयोगी और मीरा कुमार तथा विभिन्न राज्यों में मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशकों के रूप में पिछड़े वर्ग के कई सदस्य हैं।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘आंबेडकर का मानना था कि बिना उपायों के मौलिक अधिकार बेकार हैं। संघवाद लचीला हो, कठोर नहीं। संविधान ने तीनों अंगों – विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका की शक्तियों को अलग-अलग किया। यह न्यायपालिका की भूमिका है कि वह सुनिश्चित करे कि कानून संविधान के ढांचे के भीतर हों। लोकतंत्र के तीनों अंग संविधान की सर्वोच्चता में विश्वास करें।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह महाराष्ट्र विधानमंडल द्वारा दिए गए सम्मान से अभिभूत हैं, क्योंकि उनके पिता आर एस गवई 30 साल से अधिक समय तक राज्य विधान परिषद से जुड़े रहे।
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के नेता आर एस गवई ने महाराष्ट्र विधान परिषद के अध्यक्ष होने के अलावा बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के रूप में भी कार्य किया।
इससे पहले दिन में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने निचले सदन में गवई को बधाई देने के लिए प्रस्ताव पेश किया और कहा कि प्रधान न्यायाधीश के रूप में उनकी पदोन्नति महाराष्ट्र के लिए गर्व की बात है। प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया।
बाद में, राज्य विधान परिषद में अध्यक्ष राम शिंदे द्वारा इसी प्रकार का बधाई प्रस्ताव पेश किया गया और उसे सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया।
मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने केन्द्रीय कक्ष में आयोजित एक समारोह में विधानमंडल की ओर से न्यायमूर्ति गवई का अभिनंदन किया।
महाराष्ट्र के अमरावती में 24 नवंबर 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति गवई 14 नवंबर 2003 को बंबई उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश बने। उन्होंने 14 मई को न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का स्थान लेते हुए भारत के 52वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में शपथ ली।
भाषा
नेत्रपाल पवनेश
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