नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) दूरसंचार और इलेक्ट्रिक वाहन सहित अन्य क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले दुर्लभ खनिजों और चुंबक के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए दिशानिर्देशों का मसौदा तैया करने के लिए विचार-विमर्श की प्रक्रिया चल रही है। इस कदम का उद्देश्य दुर्लभ खनिजों के लिए चीन पर निर्भरता को कम करना है। सूत्रों ने यह जानकारी दी।
उन्होंने बताया कि भारी उद्योग और खान मंत्रालय दुर्लभ मृदा चुंबक और खनिजों के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक योजना पर काम कर रहे हैं।
यह योजना निजी क्षेत्र के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के लिए भी लागू होगी।
इस वर्ष अप्रैल में, दुनिया में दुर्लभ मृदा खनिजों के प्रमुख निर्यातक चीन ने सात दुर्लभ मृदा तत्वों और तैयार चुंबक के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया और निर्यात लाइसेंस अनिवार्य कर दिया।
संशोधित ढांचे में विस्तृत अंतिम-उपयोग खुलासा और ग्राहक घोषणाओं की मांग की गई है। इसमें यह पुष्टि भी शामिल है कि उत्पादों का उपयोग रक्षा क्षेत्र में नहीं किया जाएगा या उन्हें अमेरिका को पुनः निर्यात नहीं किया जाएगा।
पिछले वित्त वर्ष (2024-25) में अपने 540 टन चुंबक आयात का 80 प्रतिशत से अधिक चीन से प्राप्त करने वाला भारत अब इसका प्रभाव महसूस करने लगा है।
चीन चुंबक की वैश्विक प्रसंस्करण क्षमता के 90 प्रतिशत से अधिक को नियंत्रित करता है।
दुर्लभ खनिजों में समैरियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम और ल्यूटेटियम शामिल हैं, जो इलेक्ट्रिक मोटर, ब्रेकिंग प्रणाली, स्मार्टफोन और मिसाइल प्रौद्योगिकी में महत्वपूर्ण हैं।
भाषा अनुराग अजय
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