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Tuesday, July 8, 2025

एम्स की पूर्व निदेशक ने गोलियां लगने के बाद इंदिरा को अस्पताल लाये जाने का पुस्तक में किया जिक्र

Newsएम्स की पूर्व निदेशक ने गोलियां लगने के बाद इंदिरा को अस्पताल लाये जाने का पुस्तक में किया जिक्र

नयी दिल्ली, 31 मई (भाषा) दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की पहली महिला निदेशक रहीं स्नेह भार्गव ने अपनी किताब में 31 अक्टूबर 1984 का दिन याद किया है, जब वह शीर्ष चिकित्सा संस्थान में यह पद ग्रहण करने पहुंची थीं। लेकिन अपनी नियुक्ति की पुष्टि के लिए होने वाली औपचारिक बैठक से कुछ ही क्षण पहले, वह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की गोलियों से छलनी बेजान शरीर के सामने खड़ी थीं।

अपनी पुस्तक, ‘द वूमन हू रन एम्स’ में रेडियोलॉजिस्ट भार्गव ने एम्स में अपने लगभग 30 वर्षों के करियर को याद किया है, जहां उन्होंने देश के कुछ सबसे बड़े नेताओं का इलाज किया, जिनमें जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, नीलम संजीव रेड्डी और राजीव गांधी शामिल हैं।

निदेशक के रूप में अपने पहले दिन, भार्गव को शायद अपने करियर के सबसे संवेदनशील मामलों में से एक का सामना करना पड़ा।

उस सुबह, तत्कालीन प्रधानमंत्री को उनके दो सिख अंगरक्षकों ने ‘ऑपरेशन ब्लूस्टार’ के तहत सेना को स्वर्ण मंदिर में दाखिल होने का आदेश देने का बदला लेने के लिए गोलियों से छलनी कर दिया था।

उस समय भार्गव 54 साल की थीं और उन्हें याद है कि इंदिरा गांधी को ऑपरेशन थियेटर में ले जाने का निर्णय लिया गया था, जबकि उनकी नब्ज नहीं चल रही थी।

भार्गव ने पुस्तक में लिखा है, ‘‘उन्हें खून चढ़ाया जा रहा था, लेकिन यह एक हारी हुई लड़ाई थी। उनका बहुत ज्यादा खून बह चुका था। इंदिरा पर चलाई गई 33 गोलियों में से कुछ उनके शरीर के आर-पार हो गई थीं, जबकि कुछ अंदर ही रह गई थीं।’’

अब 95 की हो चुकी महिला चिकित्सक ने लिखा, ‘‘गोलियों ने उनके दाहिने फेफड़े और लीवर पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर दिये थे, जिसके चलते बहुत ज्यादा रक्तस्राव हुआ। जब सर्जनों ने रक्तस्राव को रोकने की कोशिश की, तो गोलियां बाहर निकलती रहीं और फर्श पर गिरती रहीं।’’

उन्होंने लिखा है कि एक चिकित्सा कर्मी ने उनकी गर्दन की नस के जरिये रक्त चढ़ाना जारी रखा, लेकिन शरीर से रक्त निकलना जारी रहा।

उन्होंने लिखा कि अगले कई घंटे दिल्ली के अस्पतालों में बी-नेगेटिव या ओ-नेगेटिव रक्त की तलाश करने में बीते और अनिवार्य रूप से ‘‘यह सब जारी रखा गया कि हम उनकी जान बचाने की कोशिश कर रहें।’’

भार्गव लिखती हैं, ‘‘…जबकि वास्तव में जब उन्हें एम्स लाया गया था, उनकी मृत्यु हो चुकी थी।’’

तत्कालीन प्रधानमंत्री की मृत्यु का असर एम्स के निदेशक के रूप में भार्गव की नियुक्ति पर भी पड़ा, जिसे इंदिरा गांधी ने मंजूरी दी थी।

भार्गव ने लिखा, ‘‘अब केवल एम्स के शासी निकाय को इसकी पुष्टि करनी थी। जिस बैठक में यह होना था, वह हत्या की सुबह होनी थी और स्वाभाविक रूप से इसे स्थगित कर दिया गया। इसके अलावा, 13 दिनों का राष्ट्रीय शोक रखा जाना था।’’

प्रधानमंत्री बनने के बाद राजीव गांधी ने सबसे पहले जो फाइल मंजूर की, वह भार्गव की नियुक्ति की थी।

भार्गव ने एम्स में वीआईपी संस्कृति पर कुछ व्यापक टिप्पणियां भी कीं।

एम्स की पूर्व निदेशक ने लिखा कि 1961 में रेडियोलॉजी विभाग में कार्यभार संभालने के एक वर्ष के अंदर ही 1962 में उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सीने का एक्स-रे करने का जिम्मा सौंपा गया था।

उन्होंने लिखा कि नेहरू की जांच के दौरान पाया गया कि उनकी मुख्य धमनी में फैलाव आ गया है जिसके कारण दो वर्ष बाद जटिलताएं उत्पन्न हुई और अंतत: उनका निधन हो गया।

एम्स में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अलग-अलग समय पर नेहरू, इंदिरा, राजीव और राहुल गांधी का इलाज किया।

भार्गव ने तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी के बाएं फेफड़े में एक सेंटीमीटर की गांठ का पता लगाया, जिसके परिणामस्वरूप समय पर कैंसर का निदान हो गया था। उनका बाद में न्यूयॉर्क के स्लोअन केटरिंग इंस्टीट्यूट में सफलतापूर्वक इलाज किया गया था।

पूर्व निदेशक ने उन दिनों को भी याद किया जब वीआईपी लोग प्राथमिकता वाले उपचार की मांग करते थे और ‘‘समस्याएं पैदा करते थे’’, जिसमें सांसदों से रिश्तेदारों के उपचार के लिए अनुरोध करना और प्रशासनिक निर्णयों में हस्तक्षेप करना शामिल था।

भाषा धीरज सुभाष

सुभाष

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