प्रयागराज, नौ जुलाई (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि उच्च न्यायालय अपने असाधारण न्याय क्षेत्र के तहत यह निर्धारित नहीं कर सकता कि फिजियोथैरेपी में डिग्री एमबीबीएस की डिग्री के समक्ष है या नहीं, यह तय करना राज्य सरकार का काम है।
संध्या यादव नामक एक महिला की याचिका खारिज करते हुए न्यायमूर्ति अजित कुमार ने कहा, “फिजियोथैरेपी में ऐसी डिग्री एमबीबीएस की डिग्री के समक्ष है या नहीं, यह तय करना राज्य सरकार का काम है।”
उच्च न्यायालय ने चार जुलाई के अपने आदेश में कहा, “जब तक राज्य सरकार या नियुक्ति अधिकारी ऐसी डिग्री को सेवा नियमों के तहत अकादमिक योग्यता के तौर पर आवश्यक नहीं मानता, तबतक यह अदालत उस अधिकारी को इस डिग्री को योग्यता के तौर पर एमबीबीएस की डिग्री के समान विचार करने के लिए निर्देश नहीं देगा।”
इस मामले में उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग ने 14 जुलाई, 2024 को एक विज्ञापन निकाला जिसमें खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन आमंत्रित किया जिसके लिए कुछ योग्यता निर्धारित की गई।
याचिकाकर्चा आयोग की लिखित परीक्षा में शामिल हुई और परीक्षा उत्तीर्ण की और उसे साक्षात्कार के लिए ‘कॉल लेटर’ जारी किया गया।
हालांकि, जब याचिकाकर्ता साक्षात्कार के लिए आयोग पहुंची तो उसे साक्षात्कार में शामिल नहीं होने दिया गया । अंतिम परिणाम 29 जनवरी, 2025 को घोषित कर दिया गया और याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज कर दी गई जिसके बाद उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि केंद्र सरकार ने नियमों के तहत उल्लिखित योग्यता के समकक्ष किसी अन्य योग्यता को अधिसूचित नहीं किया है और नियुक्ति अधिकारी से प्राप्त सूचना के आधार पर आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि फिजियोथैरेपी में स्नातक की डिग्री को ‘मेडिसिन’ में डिग्री नहीं माना जाएगा जो खाद्य सुरक्षा अधिकारी के पद के लिए आवश्यक योग्यता है।
भाषा राजेंद्र
राजकुमार
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