मुंबई, 10 जुलाई (भाषा) अब अधिक कंपनियां अपने कार्यबल में महिलाओं को शामिल कर रही हैं और इससे उन्हें अपनी लाभप्रदता बढ़ाने में भी मदद मिल रही है। एक अध्ययन से पता चला है कि सबसे अधिक विविधतापूर्ण कंपनियों ने कम समावेशी कंपनियों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक शुद्ध लाभ दर्ज किया है।
मानव संसाधन सलाहकार फर्म मार्चिंग शीप के ‘मार्चिंग शीप इंक्लूजन इंडेक्स 2025’ अध्ययन से ऐसे निष्कर्ष निकले हैं।
अध्ययन में शामिल 10 में से लगभग आठ उद्योगों ने महिलाओं की उपस्थिति और शुद्ध लाभ के बीच सकारात्मक संबंध दिखाया है। अधिकांश विविधतापूर्ण कंपनियों ने कम विविध कंपनियों की तुलना में 50 प्रतिशत अधिक शुद्ध लाभ प्रदान किया।
इस अध्ययन में विनिर्माण, इस्पात, बैंकिंग एवं वित्तीय, दवा, एफएमसीजी, बुनियादी ढांचा और आईटी सहित 30 उद्योगों की 840 सूचीबद्ध कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
इसके मुताबिक, वैधानिक प्रावधानों के कारण कंपनियों के निदेशक मंडल में भले ही महिलाओं की हिस्सेदारी हो गई है लेकिन प्रमुख प्रबंधकीय पदों पर उनकी संख्या अब भी काफी कम है।
अध्ययन में पता चला है कि 63.45 प्रतिशत से ज्यादा कंपनियों में प्रमुख प्रबंधकीय पदों पर एक भी महिला नहीं है।
इसके अलावा, भारतीय उद्योग जगत में केवल 22 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं, जबकि आवधिक शहरी श्रमबल सर्वेक्षण 2023-24 में यह संख्या 28 प्रतिशत बताई गई है। यह दर्शाता है कि छह प्रतिशत अंक का बड़ा फासला है।
मार्चिंग शीप की संस्थापक और प्रबंध साझेदार सोनिका एरन ने कहा, ‘‘हमें कंपनी में अधिक महिलाओं की ज़रूरत नहीं है, बातचीत की मेज पर भी निर्णयों को प्रभावित करने और रणनीति बनाने के स्तर पर उनकी मौजूदगी चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि वास्तविक समावेशन सिर्फ संख्या न होकर, शक्ति के पुनर्वितरण के बारे में है। लेकिन अभी तक यह बदलाव नहीं हो पाया है।
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