नयी दिल्ली, 11 जुलाई (भाषा)राष्ट्रीय राजधानी में शुक्रवार को आयोजित एक सम्मेलन में वैज्ञानिकों, जलविज्ञानियों, शिक्षकों और नीति निर्माताओं ने यमुना नदी के पुनरुद्धार के लिए ‘झील नदी’ मॉडल सहित दीर्घकालिक रणनीतियों पर चर्चा की।
यमुना मंथन 2025 नामक इस सम्मेलन का आयोजन एमएएस जल एवं नदी परिषद (एमसीडब्ल्यूआर) द्वारा किया गया था। चर्चा के दौरान पेश प्रस्तावों में एक प्रस्ताव यमुना को एक ‘झील नदी’ के रूप में देखने को लेकर था। सरल शब्दों में कहें तो, यमुना के कुछ हिस्सों को जल-संग्रही जलाशयों के रूप में माना जाए, जिसका उद्देश्य मानसूनी जल भंडारण, भूजल पुनर्भरण और पारिस्थितिक प्रवाह को बनाए रखना है।
एमसीडब्ल्यूआर के संस्थापक और निदेशक मनीष प्रसाद ने कहा, ‘‘यमुना के जलस्तर, बाढ़ के मैदान, भंडारण और जल निकासी तंत्र कम से कम पिछले 150 वर्षों से प्रभावित रहे हैं। इसके खंडित प्रवाह पथ, जल बंटवारे के चैनल और उसके परिणामस्वरूप होने वाले मोड़ ने बदलावों को प्रभावित किया है।’’
उन्होंने यह भी कहा कि नदी की स्थिति में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर इंजीनियरिंग हस्तक्षेप, जल निकाय को उसके पुराने स्वरूप में बहाल करना पर्याप्त नहीं हो सकता है।
प्रसाद ने कहा, ‘‘इसलिए झील का स्वरूप जल संचयन और संरक्षण तथा जलधाराओं के पुनरुद्धार के लिए महत्वपूर्ण है। वैकल्पिक उपयोग के लिए गाद निकासी कर उसका पुन: उपयोग किया जाना चाहिए।’’
एमसीडब्ल्यूआर ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि यह मॉडल पारंपरिक प्रवाह-आधारित नदी प्रबंधन से एक अधिक एकीकृत दृष्टिकोण की ओर बदलाव का प्रतीक है, जो नदी के स्वास्थ्य को शहरी जल स्थिरता के साथ जोड़ता है।
दिल्ली के डॉ. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र में आयोजित इस सम्मेलन में भारत में जल नीति में बी.आर. आंबेडकर के योगदान पर एक प्रकाशन का विमोचन भी किया गया, जिसमें समान जल वितरण और बड़े पैमाने पर नदी विकास परियोजनाओं को बढ़ावा देने में उनकी भूमिका भी शामिल है।
वक्ताओं ने रेखांकित किया कि यमुना नदी अपनी कुल लंबाई का केवल दो प्रतिशत ही दिल्ली से होकर गुजरती है, जबकि नदी के प्रदूषण में लगभग 80 प्रतिशत योगदान दिल्ली का है।
आईफॉरेस्ट के अध्यक्ष और सीईओ डॉ. चंद्र भूषण ने कहा, ‘‘चाहे हम यह सुनना चाहें या नहीं, हम एक स्व-केंद्रित प्रजाति हैं। हमें ऐसे तरीके खोजने होंगे जो हमारी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा भी करें।’’
उन्होंने कहा, ‘‘’शहर में जल और अपशिष्ट का उचित ऑडिट नहीं किया गया है, और साथ ही, सरकार को यमुना के लिए अपनी योजनाओं में विशिष्ट उद्देश्य और लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए तथा उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए समय-सीमा तय करनी चाहिए।’’
दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शशांक शेखर ने कहा, ‘‘यमुना के प्राकृतिक बाढ़ क्षेत्र को बहाल करना महत्वपूर्ण है। यदि नदी का भौतिक स्थान नष्ट हो जाए तो वह जीवित नहीं रह सकती।’’
शेखर ने कहा कि नदी को ‘जीवित’ रहने के लिए जगह की ज़रूरत होती है। उन्होंने आगे कहा कि यमुना का गाजीपुर से लाल किले तक एक बाढ़ क्षेत्र हुआ करता था, लेकिन अब उस पर अतिक्रमण हो गया है।
भाषा धीरज माधव
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