(कुणाल दत्त)
नयी दिल्ली, 12 जुलाई (भाषा) मराठा शासकों के किले और दुर्ग के समूह को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की चुनौतियों से निपटने में कई पन्नों के दस्तावेज, एक कॉफी-टेबल बुक और उत्साही अभियान ने अहम भूमिका निभाई।
शुक्रवार को विश्व धरोहर समिति (डब्ल्यूएचसी) ने पेरिस में आयोजित अपने 47वें सत्र में भारत के 12 किलों को प्रतिष्ठित सूची में शामिल किया, जो मराठा शासकों द्वारा परिकल्पित असाधारण किलेबंदी और सैन्य प्रणाली का प्रतिनिधित्व करते हैं।
हालांकि, नामांकन से लेकर धरोहर सूची में शामिल किये जाने तक का सफर भारत के लिए आसान नहीं था, लेकिन निरंतर प्रयास आखिरकार रंग लाये।
संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) में भारत के राजदूत और स्थायी प्रतिनिधि, विशाल वी. शर्मा ने विश्व धरोहर सूची में ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ को शामिल करने की घोषणा किये जाने बाद, नयी दिल्ली की ओर से वक्तव्य दिया।
उन्होंने कहा कि यह न केवल भारत के लिए, बल्कि विशेष रूप से दुनिया भर के मराठी लोगों के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। मराठों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मान्यता देकर सम्मानित किया है।
पेरिस स्थित यूनेस्को मुख्यालय में भाषण देने के तुरंत बाद ‘पीटीआई-भाषा’ के साथ एक टेलीफोन साक्षात्कार में, शर्मा ने भारत की सफलता की कहानी और यह प्रतिष्ठित दर्जा प्राप्त करने के लिए किये गए प्रयासों के बारे में बताया।
उन्होंने याद करते हुए कहा, ‘‘यह बेहतरीन टीम वर्क था, लेकिन मराठा किले और दुर्ग को अंकित करवाना आसान नहीं था।’’
शर्मा ने बताया, ‘‘मैं महाराष्ट्र सरकार, भारतीय संस्कृति मंत्रालय, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और विदेश मंत्रालय का शुक्रिया अदा करता हूं। हमें 20 अलग-अलग देशों के साथ समन्वय करना था और यह टीम वर्क का एक बेहतरीन उदाहरण है।’’
शर्मा ने बताया कि भारतीय नामांकन को सलाहकार संस्था, आईसीओएमओएस द्वारा ‘‘स्थगन अनुशंसा’’ प्राप्त हुई थी। स्थगन अनुशंसा का अर्थ है कि सलाहकार संस्था नहीं चाहती कि इसे सूची में शामिल किया जाए।
पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्थल परिषद (आईसीओएमओएस), यूनेस्को की प्रमुख सलाहकार संस्थाओं में से एक है, और इसके विशेषज्ञ नामांकित स्थलों का दौरा करते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने ‘‘सलाहकार संस्था की ओर से हुई गलतियों और तथ्यात्मक त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाया।’’
शर्मा ने कहा, ‘‘यह एक तकनीकी बहस है, जैसे आप अदालत में लड़ते हैं… इसलिए, 20 देशों के सदस्यों के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में, हमने उन्हें इसकी तकनीकी बातें समझाईं और बताया कि यह विश्व धरोहर सूची में शामिल होने का हकदार क्यों है। हमने अपना पक्ष रखा… और हम मामला जीत गए, इसलिए यह जीत और भी ज्यादा खुशी दे रही है।’’
संस्कृति मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान में कहा कि प्रस्ताव जनवरी 2024 में डब्ल्यूएचसी को भेजा गया था, और 18 महीने की लंबी प्रक्रिया के बाद यह सफलता मिली है। इस प्रक्रिया में, सलाहकार निकायों के साथ कई तकनीकी बैठकें और स्थलों की समीक्षा के लिए आईसीओएमओएस मिशन का दौरा शामिल था।
यूनेस्को दर्जा के लिए नामांकन 2024-25 सत्र के लिए किया गया था।
मराठा शासकों के 12 किले एवं दुर्ग को यह दर्जा दिया गया, जिनमें महाराष्ट्र में साल्हेर किला, शिवनेरी किला, लोहगढ़, खंडेरी किला, रायगढ़, राजगढ़, प्रतापगढ़, स्वर्णदुर्ग, पन्हाला किला, विजय दुर्ग और सिंधुदुर्ग और तमिलनाडु में जिंजी किला शामिल हैं।
विविध भौगोलिक क्षेत्रों में फैले ये धरोहर स्थल मराठा साम्राज्य की सामरिक शक्तियों को प्रदर्शित करते हैं।
मराठा शासकों के ये दुर्ग 17वीं और 19वीं शताब्दी के बीच के हैं।
मंत्रालय ने पहले बताया था कि महाराष्ट्र में 390 से अधिक किले हैं, जिनमें से केवल 12 किलों को भारत के ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ के तहत चुना गया था और इनमें से आठ किले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित हैं।
शर्मा ने बताया कि छत्रपति शिवाजी महाराज की शाही मुहर ‘राज मुद्रा’ को मराठों के दर्शन – जन कल्याण – को समझाने के लिए वितरित किया गया।
शर्मा ने बताया कि इसके अलावा, महाराष्ट्र सरकार ने ‘मराठा मिलिट्री लैंडस्केप्स’ नामक एक कॉफी टेबल बुक बनवाई थी, जो वितरित की गई थी।
नामांकन दस्तावेज के आकार के बारे में पूछे जाने पर, शर्मा ने इसे ‘‘विशाल’’ बताया और कहा,‘‘ऐसा कोई भी दस्तावेज 1,000-1,500 पृष्ठों का होता है, और हमारा दस्तावेज काफी बड़ा था, यह पीएचडी थीसिस जैसा है।’’
भाषा सुभाष पवनेश
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