नयी दिल्ली, 13 जुलाई (भाषा) गृह मंत्रालय ने जेलों में कट्टरपंथ को एक गंभीर चुनौती बताया है तथा सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के वास्ते त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया है।
सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को भेजे गए एक पत्र में गृह मंत्रालय ने कैदियों की जांच-पड़ताल, समय-समय पर जोखिम का आकलन और अधिक जोखिम वाले व्यक्तियों को अधिक निगरानी के साथ अलग रखने समेत विभिन्न उपायों की सूची देते हुए दिशानिर्देश जारी किए हैं और ऐसे कैदियों को कट्टरपंथ से बाहर निकालने की प्रक्रिया को शुरू करने के महत्व को भी रेखांकित किया गया है।
इसमें कहा गया है कि जेलों में कट्टरपंथ आमतौर पर खतरनाक हो सकता है, क्योंकि जेल बंद जगहें होती हैं जहां सामाजिक अलगाव, समूहों का प्रभाव और निगरानी की कमी जैसे कारण चरमपंथी विचारों को बढ़ावा दे सकते हैं।
इसमें कहा गया है कि कैदी अक्सर अलगाव की भावना, हिंसक व्यवहार की प्रवृत्ति या समाज-विरोधी सोच के कारण कट्टरपंथी विचारों के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं और कुछ मामलों में, ऐसे कट्टरपंथी कैदी हिंसक घटनाओं में शामिल हो सकते हैं या जेल कर्मचारियों, अन्य कैदियों या बाहर के लोगों पर हमले की साजिश बना सकते हैं।
गृह मंत्रालय ने कहा, ‘‘जेलों में संवेदनशील व्यक्तियों में फैलते कट्टरपंथ को रोकने और कदम उठाने की सख्त जरूरत है। साथ ही, ऐसे व्यक्तियों को कट्टरपंथ से बाहर लाने की प्रक्रिया शुरू करना भी जरूरी है, क्योंकि इसे सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने और आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है।’’
इसने कहा कि जेलों में कट्टरपंथ के मुद्दे को सुलझाना इसलिए जरूरी है ताकि हिंसक उग्रवाद के खतरे को कम किया जा सके, कैदियों का पुनर्वास बेहतर ढंग से हो सके, राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और वे समाज की मुख्यधारा में सफलतापूर्वक फिर से जुड़ सकें।
भाषा खारी देवेंद्र
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