(के जे एम वर्मा)
बीजिंग, 14 जुलाई (भाषा) आयुर्वेद में विशेषज्ञता रखने वाले केरल के एक चिकित्सक दंपति स्थानीय लोगों को प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति के लाभों का अनुभव कराने के लिए एक नया मंच प्रदान करके चीन में लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं।
डॉ. चांगमपल्ली किजक्किलाथ मोहम्मद शफीक और उनकी पत्नी, डॉ. डेन (36), अलग-अलग सांस्कृतिक और धार्मिक पृष्ठभूमि से आते हैं लेकिन उन्होंने आयुर्वेद उपचार पद्धति का एक साझा, महत्वाकांक्षी मार्ग चुना है।
उनका मानना है कि आयुर्वेद और पारंपरिक चीनी चिकित्सा (टीसीएम) में कई समानताएं हैं और इसकी वजह विशेष रूप से जड़ी बूटी वाले नुस्खों और समग्र उपचार पर इनका जोर होने के कारण है।
वे मिलकर चीन में भारत की प्राचीन स्वास्थ्य पद्धति को लोकप्रिय बनाने और आयुर्वेद तथा टीसीएम के बीच एक सांस्कृतिक सेतु बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. शफीक 600 साल पुराने ‘चांगमपल्ली गुरुक्कल’ नामक पारंपरिक आयुर्वेद परिवार से हैं। परिवार के सदस्य मूल रूप से तुलु ब्राह्मण थे, जो अतीत में शाही परिवारों के चिकित्सक के रूप में कार्यरत थे।
डॉ. शफीक कहते हैं कि उनके परिवार के कुछ सदस्यों ने इस्लाम धर्म अपना लिया है, जबकि अन्य हिंदू बने हुए हैं। वह आयुर्वेद में अपने कार्य को अपनी पैतृक जड़ों से जुड़े रहने के रूप में देखते हैं।
दूसरी ओर, डॉ. डेन एक ईसाई परिवार से हैं। उन्होंने तिरुवनंतपुरम स्थित केरल विश्वविद्यालय के आयुर्वेद महाविद्यालय में अध्ययन किया, जहां उनकी मुलाकात डॉ. शफीक से हुई।
डॉ. शफीक का चीन प्रवास 2016 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अपने शुरुआती करियर में पुडुचेरी में सेवाएं देते हुए आयुर्वेदिक उपचार चाहने वाले कई चीनी रोगियों का इलाज शुरू किया।
इसने उन्हें नए अवसरों की तलाश के लिए चीन के समृद्ध ग्वांगझोउ शहर का दौरा करने के लिए प्रेरित किया।
उन्होंने बताया कि ग्वांगझोउ स्थित भारतीय वाणिज्य दूतावास और चीनी चिकित्सा पद्धति से जुड़े संस्थानों की मदद से उन्होंने चीनी ग्राहकों के बीच विश्वास और लोकप्रियता हासिल की।
भाषा वैभव नरेश
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