( जेनी कौवेन, नॉटिंघम ट्रेन्ट यूनिवर्सिटी )
मेलबर्न, 15 जुलाई (द कन्वरसेशन) इंग्लैंड के नॉटिंघम शहर में स्थित एक प्रसिद्ध सार्वजनिक पार्क ‘आर्बोरेटम’ से मई 2025 में 180 से अधिक पौधे चोरी हो गए। यह घटना उस समय सामने आई जब स्वयंसेवकों ने मार्च में हुई चोरी के बाद पार्क में फूलों और झाड़ियों को फिर से लगाया था।
सिर्फ यही नहीं, अप्रैल 2025 में नज़दीकी फॉरेस्ट रिक्रिएशन ग्राउंड के सामुदायिक उद्यान को भी निशाना बनाया गया, जहां स्वयंसेवकों द्वारा लगाए गए गुलाब और खाद्य फसलें चोरी कर ली गईं। यहां तक कि एक छोटा तालाब भी गायब पाया गया।
हाल के शोधों के अनुसार, पर्यावरण संबंधी अपराधों की वार्षिक वृद्धि दर 5 से 7 प्रतिशत तक दर्ज की गई है, जो इसे दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आपराधिक क्षेत्र बनाता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि पौधों की अवैध तस्करी, वन्यजीवों का अवैध शिकार, और जैव विविधता से जुड़ी चोरी जैसे अपराध न केवल परिवेशी तंत्र को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि कानून प्रवर्तन की प्राथमिकताओं में इनकी अनदेखी से अपराधियों के हौसले भी बढ़ते हैं।
बागवानी प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए यह एक चौंकाने वाली सच्चाई है कि दुर्लभ और कीमती पौधों की चोरी दुनिया भर में तेजी से बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस समस्या को गंभीर अपराध के रूप में नहीं देखा जाता, जिसके कारण चोरों के हौसले बुलंद हैं और पौधों की चोरी की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं।
पौधों की चोरी जैसी घटनाएं देखने में मामूली लग सकती हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह बढ़ते पर्यावरण और वन्यजीव अपराधों का हिस्सा हैं, जिन्हें अक्सर गंभीरता से नहीं लिया जाता। यही एक प्रमुख कारण है कि इस प्रकार के अपराधों में लगातार वृद्धि हो रही है।
हाल के वर्षों में कई देशों में राष्ट्रीय उद्यानों, वन क्षेत्रों और यहां तक कि विश्वविद्यालयों के शोध केंद्रों से पौधे चोरी किए गए हैं। इनमें ऑर्किड, बोनसाई, दुर्लभ रसीले पौधे और औषधीय महत्व वाले पौधे शामिल हैं, जिन्हें अवैध रूप से घरेलू बागवानी बाजार या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचा जाता है।
*** अनदेखी बनी बड़ी वजह
विशेषज्ञों का कहना है कि पौधों की चोरी को आमतौर पर गंभीर अपराध नहीं माना जाता। जानवरों की तस्करी या पेड़ों की अवैध कटाई की तुलना में पौधों की चोरी को लेकर न तो कानून प्रवर्तन एजेंसियों में सजगता है और न ही व्यापक जनजागरूकता।
पर्यावरण संरक्षण से जुड़े अध्ययनों में पाया गया है कि जैव विविधता पर इसका दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां एक प्रजाति विशिष्ट पारिस्थितिकी भूमिका निभाती है या स्थानिक (एंडेमिक) होती है।
*** आसान पहुंच और ऊंची मांग
विशेषज्ञों के अनुसार, दुर्लभ पौधों की ऑनलाइन मांग तेजी से बढ़ी है। कुछ प्रजातियों की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजारों में हजारों डॉलर तक पहुंच चुकी हैं। सोशल मीडिया और ऑनलाइन मार्केटप्लेस ने इस अवैध व्यापार को और अधिक आसान बना दिया है।
चोर अक्सर संरक्षित क्षेत्रों से पौधे उखाड़ लेते हैं, जिनकी निगरानी सीमित संसाधनों के चलते प्रभावी नहीं हो पाती। वहीं, दुर्लभ पौधों के प्रति लोगों का बढ़ता आकर्षण इस मांग को और बढ़ावा दे रहा है।
*** संरक्षण की आवश्यकता
वृक्षारोपण और पौधों के संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं का मानना है कि पौधों की चोरी को गंभीर पर्यावरणीय अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। इसके लिए सख्त कानून, निगरानी व्यवस्था और सार्वजनिक स्तर पर जागरूकता अभियान की जरूरत है।
यदि इस प्रवृत्ति पर समय रहते लगाम नहीं लगाई गई, तो इससे कई दुर्लभ प्रजातियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा सकता है और पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है।
(द कन्वरसेशन) मनीषा संतोष
संतोष