(हैरी एम पिल्लई)
तिरुवनंतपुरम, 15 जुलाई (भाषा) केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदु ने मंगलवार को राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर पर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के कार्यक्रमों में आमतौर पर दिखाई देने वाले ‘भारत माता’ के चित्र को ‘मान्यता’ दिलाने के लिए अपने संवैधानिक पद का दुरुपयोग करने और राज्य में ‘जानबूझकर गैर-जरूरी विवाद’ पैदा करने का आरोप लगाया।
बिंदु ने केरल विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) मोहनन कुन्नुममल पर भी निशाना साधा, जिन्हें आर्लेकर ने राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इस पद (कुलपति) पर नियुक्त किया था। उन्होंने कुन्नुममल पर ‘मनमाने और निरंकुश’ फैसले लेने और विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार लाने में कोई दिलचस्पी न रखने का आरोप लगाया।
‘पीटीआई-भाषा’ के साथ साक्षात्कार में बिंदु ने कहा कि राजभवन में ‘भारत माता’ के चित्र वाला भगवा झंडा लगाना ‘राज्यपाल का गलत निर्णय’ है।
राज्यपाल की ओर से इस्तेमाल किए जाने वाले ‘भारत माता’ के उक्त चित्र को लेकर केरल की वामपंथी सरकार और राजभवन आमने-सामने हैं।
बिंदु ने कहा कि ‘परिपक्व व्यक्तियों’ को ऐसी स्थितियों से बचने की कोशिश करनी चाहिए, जो ‘गैर-जरूरी विवाद’ पैदा कर सकती हैं।
उन्होंने दावा किया, ‘‘संवैधानिक पद पर काबिज राज्यपाल का राजभवन में उक्त चित्र लगाना, उसे मान्यता दिलाने की कोशिश करने जैसा है। यह अपने आप में गलत है। फिर इसे एक विश्वविद्यालय में लाने की कोशिश भी सही नहीं थी।’’
मंत्री ने कहा, ‘‘क्या यह बेहतर नहीं होगा कि राज्यपाल की उपस्थिति वाले कार्यक्रमों में ऐसे प्रतीक चिह्नों या चित्रों के इस्तेमाल से बचा जाए, क्योंकि वह एक संवैधानिक पद पर हैं? एक तरह से कहें तो यह अनावश्यक विवाद पैदा करने के लिए जानबूझकर उठाया गया कदम था। परिपक्व व्यक्तियों को ऐसी स्थिति पैदा करने से बचना चाहिए।’’
वह केरल विश्वविद्यालय सीनेट हॉल में एक धार्मिक संगठन की ओर से आयोजित निजी कार्यक्रम का जिक्र कर रही थीं, जिसमें राज्यपाल ने भी हिस्सा लिया था। इस कार्यक्रम में भगवा झंडा थामे ‘भारत माता’ का चित्र प्रदर्शित किया गया था।
बिंदु ने कहा कि रजिस्ट्रार केएस अनिल कुमार ने इस चिंता के चलते कार्यक्रम रद्द करने का आदेश दिया था कि उक्त चित्र के प्रदर्शन से विश्वविद्यालय परिसर में गैर-जरूरी विवाद या आंदोलन हो सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘हालांकि, उन्हें (रजिस्ट्रार को) उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना ही निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ कार्रवाई करने से पहले न तो उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किया गया और न ही उनसे स्पष्टीकरण मांगा गया।’’
बिंदु ने दावा किया, ‘‘कुलपति को उन्हें (रजिस्ट्रार को) निलंबित करने का कोई अधिकार नहीं है, क्योंकि विश्वविद्यालय अधिनियम और नियमों के अनुसार, सिंडिकेट ही रजिस्ट्रार की नियुक्ति करने के लिए जिम्मेदार प्राधिकारी है।’’
उन्होंने कहा कि कुलपति विश्वविद्यालयों में ‘‘भगवाकरण एजेंडा’’ को लागू करने के कथित प्रयासों के तहत संभवतः राज्यपाल के निर्देश पर काम कर रहे हैं।
मंत्री ने कहा कि विश्वविद्यालय परिसर में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ), स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) और डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया (डीवाईएफआई) जैसे वामपंथी छात्र एवं युवा संगठनों का विरोध-प्रदर्शन रजिस्ट्रार को निलंबित करने के कुलपति के ‘‘मनमाने’’ फैसले का नतीजा था।
उन्होंने कहा, ‘‘ये सारे विरोध-प्रदर्शन इसी का नतीजा हैं। इन सब से बचा जा सकता था।’’
बिंदु ने कहा कि जब सिंडिकेट ने रजिस्ट्रार का निलंबन रद्द कर दिया, तो कुलपति ने उसकी अनदेखी की और अनिल कुमार की जगह दूसरे रजिस्ट्रार की नियुक्ति कर दी।
उन्होंने कुलपति के कदम को ‘‘अवैध’’ बताते हुए कहा कि केरल विश्वविद्यालय अधिनियम 1974 के तहत केवल सिंडिकेट को ही रजिस्ट्रार की नियुक्ति का अधिकार है।
बिंदु ने आरोप लगाया, ‘‘कुलपति ही मनमाने और निरंकुश फैसले ले रहे हैं। वह बाहुबल का इस्तेमाल कर रहे हैं। सच्चाई यह है कि उन्हें विश्वविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता में सुधार लाने में कोई दिलचस्पी नहीं है।’’
मंत्री की यह टिप्पणी कुन्नुममल के इन आरोपों के संदर्भ में थीं कि वामपंथियों के दबदबे वाले सिंडिकेट और सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के छात्र एवं युवा संगठनों ने उन्हें विश्वविद्यालय परिसर में कदम रखने पर उन पर ‘‘हमला करने की धमकी’’ दी है।
कुन्नुममल ने यह भी आरोप लगाया था कि केरल विश्वविद्यालय में कानून-व्यवस्था की स्थिति चरमरा गई है और ‘‘गुंडे बाहुबल’’ का इस्तेमाल करके इसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं।
कुलपति के आरोपों को खारिज करते हुए बिंदु ने कहा कि पुलिस उनकी सुरक्षा के लिए मौजूद थी और परिसर में कानून-व्यवस्था की कोई समस्या नहीं थी।
उन्होंने तर्क दिया, ‘‘हम सभी को धमकियों का सामना करना पड़ता है। इसका मतलब यह नहीं कि हम अपना कर्तव्य निभाना बंद कर दें। पुलिस मौजूद है। विश्वविद्यालय परिसरों में विरोध-प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। अब यह कम हो गया है। जब हम छात्र थे, तब लगभग हर दिन विरोध-प्रदर्शन होते थे।’’
बिंदु ने कहा कि कुलपति की कार्रवाई के खिलाफ एक पत्र तैयार किया जा रहा है और इसे जल्द ही राज्यपाल को सौंपा जाएगा।
उन्होंने कुन्नुममल के इस दावे को भी खारिज कर दिया कि माकपा के राज्य सचिव एमवी गोविंदन ने विरोध-प्रदर्शनों का समर्थन किया था, जिससे आंदोलन ने ‘‘अराजक’’ रूप अख्तियार कर लिया।
मंत्री ने कहा कि वामपंथी छात्र संगठनों को राज्य में काफी समर्थन हासिल है और उन्हें विरोध-प्रदर्शन करने के लिए माकपा के राज्य सचिव के समर्थन की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसलिए उन्हें (गोविंदन) इस मुद्दे में घसीटने की कोई जरूरत नहीं है।’’
कुन्नुममल की ओर से रजिस्ट्रार को निलंबित किए जाने के बाद केरल विश्वविद्यालय में इस महीने की शुरुआत से ही वामपंथी छात्र और युवा संगठनों का अभूतपूर्व विरोध-प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।
बिंदु ने विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर नियुक्ति के लिए कुन्नुममल की योग्यता पर भी सवाल उठाया और कहा कि वह ‘‘एक डॉक्टर हैं और उनके पास विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले किसी भी विषय में पीएचडी या स्नातकोत्तर की डिग्री नहीं है।’’
उन्होंने कहा कि कुछ अन्य कुलपतियों की तरह उनकी नियुक्ति भी कुलाधिपति द्वारा सरकार से परामर्श किए बिना की गई थी, जो कि ‘‘अवैध’’ है।
केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश का हवाला देते हुए, जिसमें दो कुलपतियों की अस्थायी नियुक्तियों को ‘‘अनुचित’’ घोषित किया गया था, बिंदु ने कहा कि यह सरकार के इस रुख का समर्थन करता है कि ऐसी नियुक्तियां ‘‘विश्वविद्यालयों के लिए हानिकारक हैं और इन्हें अनुमति नहीं दी जा सकती।’’
भाषा पारुल मनीषा
मनीषा