नयी दिल्ली, 16 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड द्वारा उत्पादित 18 प्रतिशत बिजली एक समझौते के तहत मुफ्त पाने के हिमाचल प्रदेश के अधिकार को बुधवार को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें राज्य एवं निजी कंपनी के बीच कार्यान्वयन समझौते को संशोधित किया गया था और मुफ्त बिजली आपूर्ति को 18 प्रतिशत के बजाय 13 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया था।
राज्य सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए पीठ ने इस बात की आलोचना की कि उच्च न्यायालय ने शुल्क निर्धारण के पहलू में हस्तक्षेप किया जो कि केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (सीईआरसी) के अंतर्गत आने वाला मामला है।
पीठ ने कहा, ‘‘विद्युत अधिनियम के तहत इस वैधानिक नियामक को शुल्क निर्धारण का कार्य सौंपा गया है, जिसमें इस उद्देश्य के लिए नियम बनाना और उसकी व्याख्या करना भी शामिल है।’’
न्यायमूर्ति नरसिम्हा द्वारा लिखे गए 54 पृष्ठीय फैसले में कहा गया, ‘‘संवैधानिक अदालतों को नियामक को इस क्षेत्र के सभी पहलुओं को व्यापक रूप से विनियमित करने में सक्षम बनाना चाहिए ताकि समाधान खंडित न हों और कुछ मुद्दे नियामक के अधिकार क्षेत्र से बाहर न रह जाएं।’’
फैसले में कहा गया कि नियामक के पास नियामक व्यवस्था के उद्देश्य को पूरा करने और कानूनी सिद्धांतों को व्यवस्थित तरीके से निर्धारित करने के लिए इस प्रकार की व्याख्यात्मक प्रक्रिया करने हेतु विशेषज्ञता और संस्थागत समझ है।
पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय को शुल्क निर्धारण से संबंधित इन विनियमों की व्याख्या के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए था क्योंकि यह सीईआरसी के विशेषाधिकार क्षेत्र में आता है।’’
पीठ ने कहा कि सीईआरसी विनियम, 2019 निजी कंपनी को राज्य को 13 प्रतिशत से अधिक मुफ्त बिजली की आपूर्ति करने से नहीं रोकते हैं और कार्यान्वयन समझौता इन विनियमों द्वारा रद्द नहीं किया जा सकता।
बिजली का उत्पादन करने वाली कंपनी ‘जेएसडब्ल्यू हाइड्रो एनर्जी लिमिटेड’ करछम वांगटू में 1,045 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना का संचालन करती है, जिसे मूल रूप से 1993 में एक समझौता ज्ञापन के माध्यम से जयप्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड को आवंटित किया गया था।
हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ बाद में हुए कार्यान्वयन समझौते के तहत जेएसडब्ल्यू (अपने पूर्ववर्ती के माध्यम से) वाणिज्यिक संचालन के पहले 12 साल के बाद राज्य को शुद्ध विद्युत उत्पादन का 18 प्रतिशत निःशुल्क प्रदान करने पर सहमत हुई।
बाद में, जब राज्य सरकार मुफ्त बिजली की सीमा 13 प्रतिशत तक सीमित करने पर सहमत नहीं हुई तो जेएसडब्ल्यू ने पहले सीईआरसी और फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उच्च न्यायालय ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया और राज्य को निर्देश दिया कि वह अपने कार्यान्वयन समझौते को सीईआरसी विनियमों के अनुरूप बनाए।
भाषा सिम्मी रंजन
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