नयी दिल्ली, 16 जुलाई (भाषा) दिल्ली सरकार ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय को सूचित किया कि 1997 के उपहार अग्निकांड के पीड़ितों की याद में राष्ट्रीय राजधानी के द्वारका इलाके में ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के लिए अंसल बंधुओं की ओर से दी गई 60 करोड़ रुपये की राशि का पहले ही इस्तेमाल किया जा चुका है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जयमाल्या बागची की पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अर्चना पाठक दवे से तीन हफ्ते में वस्तुस्थिति रिपोर्ट दाखिल करने को कहा।
दवे ने इससे पहले कहा था, ‘धन का इस्तेमाल पहले ही किया जा चुका है।’
साल 1997 के उपहार अग्निकांड में अपने दो बच्चों को गंवाने वाली एवीयूटी पदाधिकारी नीलम कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘यह सुनना कष्टदायक है कि दिल्ली सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दावा किया है कि 60 करोड़ रुपये का इस्तेमाल पहले ही किया जा चुका है, जबकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिया था कि इस निधि का उपयोग केवल उपहार पीड़ितों की स्मृति में द्वारका में एक उपयुक्त स्थल पर ट्रॉमा सेंटर बनाने के लिए किया जाना है।’
कृष्णमूर्ति ने कहा, ‘निधि के इस्तेमाल का विवरण मांगने वाली मेरी आरटीआई पर दिल्ली सरकार से कोई जवाब नहीं मिलना जख्म पर नमक छिड़कने जैसा है। इससे पारदर्शिता, जवाबदेही और अदालत के आदेशों एवं पीड़ितों की स्मृति के प्रति सम्मान पर गंभीर सवाल उठते हैं।’
सात मई को शीर्ष अदालत ने उपहार त्रासदी पीड़ित संघ (एवीयूटी) की ओर से दायर याचिका पर दिल्ली सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
एवीयूटी की याचिका में कहा गया है, ‘(अंसल बंधुओं की ओर से) नौ नवंबर 2015 को दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के कार्यालय में निर्धारित जुर्माना राशि को जमा कराए जाने को लगभग 10 साल बीत चुके हैं, लेकिन इस अदालत के निर्देशों में परिकल्पित ट्रॉमा सेंटर का काम अभी तक अधूरा है और इसके निर्माण की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।’
शीर्ष अदालत ने 22 सितंबर 2015 को निर्देश दिया था कि राष्ट्रीय राजधानी के द्वारका इलाके में उपहार अग्निकांड के पीड़ितों की याद में ट्रॉमा सेंटर का निर्माण दो वर्षों के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।
एवीयूटी ने आरोप लगाया कि दिल्ली सरकार ने शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन किया है।
सितंबर 2015 में सर्वोच्च न्यायालय ने अंसल बंधुओं-गोपाल और सुशील अंसल-को 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने की घटना में लापरवाही के कारण हुई मौत का दोषी ठहराया था। इस घटना में 59 लोग मारे गए थे।
शीर्ष अदालत ने दोनों भाइयों को एक साल की जेल की सजा सुनाई थी और उन पर 60 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया था।
एवीयूटी की याचिका संगठन की लंबित अपील के संदर्भ में दायर की गई थी, जिसमें उसने दिसंबर 2008 के दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसके तहत अंसल बंधुओं को निचली अदालत की ओर से सुनाई गई दो साल की जेल की सजा को घटाकर एक वर्ष कर दिया गया था।
अंसल बंधुओं को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304ए (लापरवाही के कारण मौत), 337 (जीवन को खतरे में डालना) और 338 (गंभीर चोट पहुंचाना) सहित अन्य प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया गया था।
शुरुआत में अपील पर सुनवाई करने वाली शीर्ष अदालत की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने पांच मार्च 2014 को एक खंडित फैसला सुनाया था।
इसके बाद मामले की सुनवाई तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने की, जिसने 100 करोड़ रुपये के जुर्माने को घटाकर 60 करोड़ रुपये कर दिया, जिसे आरोपियों की ओर से समान रूप से साझा किया जाना था।
इसके बाद एवीयूटी ने एक पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसे फरवरी 2017 में शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि 60 करोड़ रुपये के जुर्माने की राशि दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को दी जाएगी और इसका इस्तेमाल पीड़ितों की याद में समर्पित एक ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के लिए किया जाएगा।
भाषा पारुल माधव
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