(अभिषेक शुक्ला)
नयी दिल्ली, 17 जुलाई (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने पिछले पांच वर्ष में विदेश से 134 भगोड़ों की वापसी कराने में सफलता हासिल की है, जो 2010 से 2019 के बीच एक पूरे दशक में स्वदेश भेजे गए लोगों की संख्या से लगभग दोगुनी है। अधिकारियों ने यह जानकारी दी।
इंटरपोल के साथ-साथ राज्य और केंद्रीय प्रवर्तन एजेंसियों के साथ घनिष्ठ समन्वय स्थापित करते हुए, सीबीआई 2020 से इन 134 भगोड़ों का प्रत्यर्पण या निर्वासन कराने में सफल रही है। इनमें से 23 को अकेले इसी वर्ष वापस लाया गया।
इसके विपरीत, 2010 से 2019 के बीच केवल 74 भगोड़ों को वापस लाया गया था।
अधिकारियों ने कहा कि सफलता दर में वृद्धि का श्रेय सरकार द्वारा बढ़ाए गए राजनयिक संपर्कों, वीवीआईपी यात्राओं के माध्यम से भारत की पहुंच, द्विपक्षीय संबंधों, तकनीकी प्रगति और इंटरपोल के साथ बेहतर समन्वय को दिया जा सकता है।
प्रत्यर्पण की प्रक्रिया के तीन चरण होते हैं-इंटरपोल द्वारा रेड नोटिस जारी करना, भगोड़े की भौगोलिक स्थिति का पता लगाना, और तीसरा, कानूनी और कूटनीतिक प्रयासों के बाद प्रत्यर्पण। इन सभी प्रक्रियाओं में समय लगता है।
इंटरपोल द्वारा रेड नोटिस जारी करने में लगने वाले समय को कम करने के लिए सीबीआई ने जनवरी में अपना डिजिटल पोर्टल ‘भारतपोल’ शुरू किया था। रेड नोटिस किसी देश में वांछित भगोड़े के बारे में सभी 195 देशों को सचेत करता है।
एजेंसी द्वारा आंतरिक रूप से विकसित यह प्लेटफॉर्म, भारतीय पुलिस एजेंसियों को सीबीआई के माध्यम से इंटरपोल से जोड़ता है, जिससे जांच और प्रत्यर्पण प्रक्रिया में तेजी आती है और इस तरह रेड नोटिस जारी करने का औसत समय छह महीने से घटकर तीन महीने रह जाता है।
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘पोर्टल ने बेहतर दस्तावेजीकरण किया है, जिसमें समय लगता था क्योंकि कई बार इंटरपोल के मामलों से निपटने वाले अधिकारी उस प्रारूप से अच्छी तरह वाकिफ नहीं होते थे जिसमें सीबीआई के माध्यम से इंटरपोल को भगोड़ों के प्रत्यर्पण के लिए आवेदन प्रस्तुत किया जाता है। सीबीआई और अन्य एजेंसियों के बीच होने वाला संवाद अब काफी कम हो गया है, जिससे समय भी कम लगता है।’’
इसके अतिरिक्त, प्रत्यर्पण और निर्वासन सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण कारक सरकारों के बीच आपसी समझ है, जिसमें भारत की बढ़ी हुई राजनयिक गतिविधियों के कारण हाल के वर्षों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है।
विदेश मंत्रालय, विशेष रूप से राजदूतों और उच्चायुक्तों की भूमिका, भगोड़ों के प्रत्यर्पण में महत्वपूर्ण कारक है।
सीबीआई ने ‘ग्लोबल ऑपरेशन्स सेंटर’ वैश्विक संचालन केंद्र की स्थापना के माध्यम से अपने अंतरराष्ट्रीय समन्वय को भी बढ़ाया है।
अधिकारियों ने कहा कि यह केंद्र भारत के प्रत्यर्पण प्रयासों में तेजी लाने के लिए विदेशी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को शामिल करके महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस समन्वित प्रयास की एक उल्लेखनीय सफलता हाल में अमेरिका में नेहल मोदी की गिरफ्तारी थी। नेहल, नीरव मोदी का भाई है। नीरव वर्तमान में ब्रिटेन में जेल में है और भारत प्रत्यर्पण का इंतजार कर रहा है। नीरव मोदी ने अपने मामा मेहुल चोकसी के साथ मिलकर कथित तौर पर फर्जी सहमति पत्र के जरिए पंजाब नेशनल बैंक से 13,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की।
नेहल अब वह प्रत्यर्पण की कार्यवाही का सामना कर रहा है, जो बृहस्पतिवार से शुरू हो रही है।
इस बीच, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी क्रमशः लंदन और एंटवर्प में हिरासत में हैं, जहां की अदालतों ने उनकी कई जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं। सीबीआई उचित कानूनी माध्यमों से उनके प्रत्यर्पण की कोशिश जारी रखे हुए है।
पिछले सप्ताह, सीबीआई ने 1999 में अमेरिका से एक आर्थिक अपराधी का सफलतापूर्वक प्रत्यर्पण करवाया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, भारत को 9 जुलाई को मोनिका कपूर का प्रत्यर्पण कराने में सफलता मिली।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2024 तक अमेरिका द्वारा 65 भारतीय प्रत्यर्पण अनुरोधों पर विचार किया जा रहा है।
संसद में हाल में सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार भारत ने अब तक 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए हैं और 12 अन्य के साथ औपचारिक प्रत्यर्पण साझेदारी की है।
भारत में 2022 की इंटरपोल की महासभा और यहां आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन ने भी इस प्रगति को और अधिक गति प्रदान की है।
सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भगोड़ों के प्रत्यर्पण में देरी पर ध्यान देने की अपील की थी।
उन्होंने कहा था, ‘‘भ्रष्टाचारियों, आतंकवादियों, मादक पदार्थ तस्करों, अवैध शिकार गिरोहों या संगठित अपराध के लिए कोई सुरक्षित पनाहगाह नहीं हो सकती। एक ही जगह पर लोगों के खिलाफ इस तरह के अपराध सभी के खिलाफ अपराध हैं, मानवता के खिलाफ अपराध हैं।’’
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी इसी तरह सभी सदस्य देशों की आतंकवाद-रोधी एजेंसियों के बीच वास्तविक समय पर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक स्थायी इंटरपोल तंत्र की स्थापना की वकालत की थी।
भाषा वैभव मनीषा
मनीषा