कोलकाता, 17 जुलाई (भाषा) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अल्पकालिक डेरिवेटिव कारोबार में बढ़ती सक्रियता पर बृहस्पतिवार को चिंता जताते हुए कहा कि इससे पूंजी बाजार की स्थिरता और संरचना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य अनंत नारायण ने यहां उद्योग मंडल भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की तरफ से आयोजित ‘11वें कैपिटल मार्केट्स कॉन्क्लेव’ में इन चिंताओं को जाहिर किया।
नारायण ने कहा, ‘‘बहुत छोटी अवधि के डेरिवेटिव, खासकर वायदा अनुबंध समाप्ति के दिन वाले सूचकांक विकल्पों की डेरिवेटिव कारोबार में व्यापक हिस्सेदारी है। यह असंतुलन साफ तौर पर अच्छा नहीं है और इसके प्रतिकूल परिणाम हो सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि बाजार की गुणवत्ता बेहतर करने के लिए सेबी नकद शेयर बाजार को व्यापक बनाने के साथ डेरिवेटिव उत्पादों की अवधि और परिपक्वता बढ़ाने के उपायों पर भी विचार कर रहा है।
नारायण ने सेबी के अपने ही शोध का हवाला देते हुए कहा कि वित्त वर्ष 2024-25 में वायदा और विकल्प (एफएंडओ) सौदों में कारोबार करने वाले 91 प्रतिशत खुदरा निवेशकों को नुकसान हुआ और उन्होंने कुल एक लाख करोड़ रुपये गंवा दिए।
उन्होंने इस प्रवृत्ति को जिम्मेदार निवेश और पूंजी निर्माण की राह में एक बाधा बताया।
उन्होंने कहा कि भारत का डेरिवेटिव बाजार इस मामले में अनूठा है कि कई बार वायदा अनुबंध सौदों की समाप्ति के दिन विकल्प कारोबार नकद बाजार से 350 गुना अधिक हो जाता है।
नारायण ने कहा, ‘‘लंबी अवधि वाले डेरिवेटिव उत्पादों के उलट ऐसे उत्पाद पूंजी निर्माण में योगदान नहीं करते, असल में अस्थिरता बढ़ा सकते हैं।’’
हालांकि, उन्होंने यह माना कि शेयर बाजार, ब्रोकर एवं अन्य मध्यस्थ ऐसे सौदों से राजस्व कमाते हैं, लेकिन इसके टिकाऊ होने को लेकर उन्होंने सवाल भी उठाए।
उन्होंने कहा कि सेबी ने अक्टूबर, 2024 और मई, 2025 में डेरिवेटिव सौदों के मामले में कुछ नियामकीय कदम उठाए हैं, जिनके कुछ शुरुआती सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं।
नारायण ने उद्योग जगत से सहयोग का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘हमें अपने नकदी इक्विटी बाजारों को गहरा करने के तरीकों की तलाश करनी चाहिए। साथ ही लंबी अवधि के उत्पादों के माध्यम से डेरिवेटिव की गुणवत्ता भी सुधारनी चाहिए।’’
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प्रेम अजय
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