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Sunday, July 27, 2025

आधुनिक युग का सबसे खतरनाक परजीवी है स्मार्टफोन

Newsआधुनिक युग का सबसे खतरनाक परजीवी है स्मार्टफोन

(राचेल एल ब्राउन, ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय और रॉब ब्रूक्स, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी)

कैनबरा/सिडनी, दो जून (द कन्वरसेशन) जूं, पिस्सू और टेपवर्म मानव के विकास क्रम में हमारे साथी रहे हैं। फिर भी, आधुनिक युग का सबसे बड़ा परजीवी खून चूसने वाला कोई अकशेरुकी प्राणी नहीं है। यह आकर्षक, कांच की स्क्रीन वाला और अपनी लत लगाने वाली वस्तु है। इसका मेजबान, पृथ्वी पर वाईफाई सिग्नल रखने वाला हर इंसान है।

स्मार्टफोन हमारे समय, हमारे ध्यान और हमारी व्यक्तिगत जानकारी पर परजीवी की तरह है तथा यह प्रौद्योगिकी कंपनियों और उनके विज्ञापनदाताओं के हित में है।

ऑस्ट्रेलियन जर्नल ऑफ फिलॉसफी में प्रकाशित एक नये लेख में हमने तर्क दिया है कि स्मार्टफोन समाज के लिए विशिष्ट प्रकार के जोखिम का कारण बनते हैं, जो परजीविता के दृष्टिकोण से देखने पर और भी स्पष्ट हो जाते हैं।

परजीवी क्या होता है?

विकासवादी जीवविज्ञानी परजीवी को वह जीव मानते हैं जो दूसरे जीव (जिसे मेजबान कहते हैं) पर आश्रित रहता है और इसका लाभ उठाता है, जबकि मेजबान को नुकसान होता है।

उदाहरण के लिए, बाल में जूं अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से मानव पर निर्भर है। वे केवल मानव का खून चूसते हैं, और यदि वे अपने मेजबान से अलग हो जाते हैं, तो केवल थोड़े समय तक जीवित रहते हैं। हमारे खून के बदले में, ये जूं हमें एक कुछ नहीं देते हैं।

स्मार्टफोन ने हमारे जीवन को काफी बदल दिया है। यह शहरों में मार्ग बताने से लेकर मधुमेह जैसी बीमारियों को नियंत्रण में रखने तक में मदद करते हैं, इसलिए हममें से ज्यादातर लोग इन्हें अपने साथ रखते हैं।

इनके फायदे होने के बावजूद, हम अपने स्मार्टफोन के गुलाम बन गए हैं। हम बार-बार स्क्रीन देखे बिना नहीं रह पाते और इससे दूर भी नहीं रह पाते। मोबाइल फोन उपयोग करने वाले इसकी कीमत अनिद्रा के रूप में चुकाते हैं, वास्तविक दुनिया में हमारे रिश्ते कमजोर हो जाते हैं और हमारे मिजाज पर भी इसका असर पड़ता है।

पारस्परिकता से परजीविता तक:

जीवों के बीच करीबी संबंध हमेशा परजीविता के नहीं होते, कई ऐसे जीव हैं जो हमारे शरीर में रहते हैं, लेकिन वे हमें फायदा भी पहुंचाते हैं।

उदाहरण के लिए, हमारे पाचन तंत्र में मौजूद जीवाणु। ये जीवाणु हमारे शरीर के अंदर ही रहते हैं और हमारे भोजन से मिलने वाले पोषक तत्वों पर आश्रित रहते हैं। लेकिन इसके बदले में ये जीवाणु हमें कुछ बहुत जरूरी फायदे भी देते हैं, जैसे हमारे भोजन को सही से पचाना और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाना।

शुरुआत में, मनुष्यों और स्मार्टफोन के बीच का रिश्ता भी ऐसा ही था। स्मार्टफोन ने हमें एक-दूसरे के संपर्क में रहने, मैप के जरिये रास्ता खोजने और उपयोगी जानकारी प्राप्त करने में मदद की।

दार्शनिकों ने तो इसे मानव मस्तिष्क के विस्तार के रूप में भी बताया, जैसे कि नोटबुक या नक्शे।

लेकिन समय के साथ, यह रिश्ता परजीवी संबंध में बदल गया है।

परजीवी के रूप में स्मार्टफोन:

जैसे-जैसे स्मार्टफोन अपरिहार्य होते गए, इनके ऐप (एप्लीकेशन) उपयोगकर्ताओं की अपेक्षा कंपनियों और विज्ञापनदाताओं के हितों के लिए अधिक काम करने लगे।

ये ऐप हमारे व्यवहार को इस तरह से प्रभावित करने के मकसद से डिजाइन किए गए हैं कि हम स्क्रॉल करते रहें, विज्ञापनों पर क्लिक करते रहें और निरंतर उनमें खोये रहें।

एक कठिन लड़ाई:

स्मार्टफोन के मामले में, हम आसानी से शोषण का पता नहीं लगा सकते। तकनीकी कंपनियां, जो आपको अपना फोन उठाते रहने के लिए विभिन्न सुविधाएं और एल्गोरिदम डिज़ाइन करती हैं, वे इस व्यवहार का विज्ञापन नहीं करती हैं।

सरकारों और कंपनियों ने मोबाइल ऐप के जरिए अपनी सेवाओं को ऑनलाइन करके हमारे स्मार्टफोन पर हमारी निर्भरता को और बढ़ा दिया है।

(द कन्वरसेशन) योगेश सुभाष

सुभाष

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