नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) अध्यक्ष के पद पर परमार रवि मनुभाई की नियुक्ति को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका शुक्रवार को यह कहते हुए खारिज कर दी कि उनके खिलाफ प्राथमिकी बंद हो चुकी है।
हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने इस जनहित याचिका की आलोचना की और याचिकाकर्ता से कहा कि वह इस प्रकार की तथ्यों से रहित याचिकाएं दाखिल नहीं करे।
न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और अतुल एस चंदूरकर की पीठ ने कहा, ‘‘अगर आप जनहित याचिका दाखिल कर रहे हैं, तो आपको उसके लिए अपना सब कुछ झोंकना पड़ता है। कृपया इस प्रचार-प्रसार के चक्कर में न पड़ें, यह आपको बर्बाद कर देगा… आपको पहले तथ्यों को ठीक से पढ़ना चाहिए था।’’
जब मनुभाई के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी की जानकारी दी गई, तो पीठ ने पूछा, ‘उस प्राथमिकी का क्या हुआ?’’ वकील ने जवाब दिया, ‘वह बंद कर दी गई है।’
पीठ ने शुरू में याचिकाकर्ता ब्रजेश सिंह पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया था। हालांकि, याचिकाकर्ता के माफीनामे पर विचार करते हुए बाद में आदेश से जुर्माने का हिस्सा हटा दिया गया।
शीर्ष अदालत ने तीन फरवरी को बिहार सरकार और मनुभाई से याचिका पर जवाब मांगा था। पीठ ने इस मामले में अधिवक्ता वंशजा शुक्ला को न्यायमित्र नियुक्त किया था।
याचिका में 15 मार्च, 2024 को की गई नियुक्ति को चुनौती देते हुए कहा गया था कि यह केवल एक ‘बेदाग चरित्र’ वाले लोगों को लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्त करने के संवैधानिक अधिदेश के खिलाफ है।
जनहित याचिका में कहा गया था कि परमार बिहार सतर्कता ब्यूरो द्वारा दर्ज कथित भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी हैं और मामला पटना के एक विशेष न्यायाधीश के समक्ष लंबित है।
याचिका में कहा गया था, ‘‘इस प्रकार, प्रतिवादी संख्या दो (परमार) पर भ्रष्टाचार और जालसाजी के गंभीर आरोप हैं और इस प्रकार उनकी ईमानदारी संदिग्ध है, इसलिए उन्हें बीपीएससी का अध्यक्ष नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए था।’’
याचिका में दावा किया गया था कि बीपीएससी अध्यक्ष के संवैधानिक पद पर नियुक्ति के लिए परमार बुनियादी पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं, क्योंकि वे एक बेदाग चरित्र वाले व्यक्ति नहीं हैं।
भाषा अमित संतोष
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