प्रयागराज, 18 जुलाई (भाषा) परीक्षा में अपने स्थान पर ‘सॉल्वर’ बैठाने के आरोपी एक व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि परीक्षा में नकल से उन मेधावी विद्यार्थियों का करियर बुरी तरह प्रभावित होता है जो कड़ी मेहनत और ईमानदारी में विश्वास करते हैं।
न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने कहा, ‘‘परीक्षा में नकल से उन मेधावी विद्यार्थियों का करियर बुरी तरह प्रभावित होता है जो कड़ी मेहनत और ईमानदारी में विश्वास करते हैं। नकल से हेराफेरी की छाया में योग्यता छिप जाती है। नकल की वजह से कुछ समय में ईमानदार विद्यार्थियों का शिक्षा व्यवस्था में विश्वास खत्म हो सकता है।”
यह जमानत याचिका संदीप सिंह पटेल द्वारा दायर की गई थी जिसके खिलाफ केंद्रीय अध्यापक पात्रता परीक्षा (सीटीईटी) में अपनी जगह सॉल्वर बैठाने का आरोप है।
मामले के तथ्यों के मुताबिक, 15 दिसंबर 2024 को जब यह परीक्षा जारी थी, परीक्षा केंद्र के अधिकारियों ने लोकेंद्र शुक्ला नाम के कथित सॉल्वर को पकड़ा जो वास्तविक अभ्यर्थी संदीप सिंह पटेल के स्थान पर परीक्षा दे रहा था।
आरोप है कि एक फर्जी प्रवेश पत्र का उपयोग कर सॉल्वर को बैठाया गया और उसका बायोमीट्रिक सत्यापन भी विफल रहा। बाद में दोनों के खिलाफ बीएनएस और उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों का निषेध) अधिनियम, 2024 की सुसंगत धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।
इसके बाद, संदीप सिंह पटेल ने उच्च न्यायालय में इस आधार पर जमानत याचिका दायर की कि वह 14 से 17 दिसंबर तक अस्पताल में भर्ती था और उसे परीक्षा में सॉल्वर बैठाए जाने की कोई जानकारी नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि पटेल का उस सॉल्वर और उसके साथियों से कोई संबंध नहीं था और उनके बीच पैसे का कोई लेनदेन नहीं हुआ। साथ ही याचिकाकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, इसलिए जमानत मिलने पर उसके भागने का कोई जोखिम नहीं है। सह आरोपियों को पहले ही जमानत मिल चुकी है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार के वकील ने जमानत याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं।
अदालत ने आठ जुलाई को दिए अपने निर्णय में याचिकाकर्ता की दलीलें खारिज करते हुए कॉल रिकॉर्ड को संज्ञान में लिया और पाया कि याचिकाकर्ता वास्तव में अन्य सह आरोपियों के संपर्क में था जिन्होंने लोकेंद्र शुक्ला को परीक्षा में याचिकाकर्ता के स्थान पर बैठने को कहा था इसलिए वह मुख्य लाभार्थी था।
अदालत ने कहा कि ऐसे में यह नहीं माना जा सकता कि याचिकाकर्ता इस अपराध में शामिल नहीं था।
भाषा राजेंद्र शफीक
शफीक