(अभिषेक शुक्ला)
नयी दिल्ली, 20 जुलाई (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) के अनुरोध पर जारी किए गए इंटरपोल के रेड नोटिस की वार्षिक संख्या वर्ष 2023 के बाद से दोगुने से भी ज्यादा हो गई है। यह इंटरपोल महासभा और जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के दौरान हुए विचार-विमर्श के आधार पर और परिष्कृत तकनीक को अपनाकर भगोड़ों की तलाश की दिशा में देश में आए क्रांतिकारी बदलाव को दर्शाता है।
ल्योन स्थित अंतरराष्ट्रीय आपराधिक पुलिस संगठन (इंटरपोल) ने 2020 में 25, 2021 में 47 और 2022 में 40 रेड नोटिस जारी किए थे।
‘पीटीआई-भाषा’ को नवीनतम आंकड़ों से पता चला है कि 2023 से, भारत के अनुरोध पर जारी किए गए रेड नोटिस की संख्या में उल्लेखनीय गति से वृद्धि हुई है। इसकी संख्या 2023 में 100, 2024 में 107 थी, जबकि 2025 के पहले छह महीनों में 56 नोटिस जारी किए गए।
इंटरपोल पारंपरिक रूप से 195 सदस्य देशों को विभिन्न उद्देश्यों के लिए आठ रंग के नोटिस जारी करता है, जो किसी देश के अनुरोध पर उन्हें सचेत करते हैं।
इसने इस वर्ष पायलट आधार पर नौवां नोटिस ‘सिल्वर नोटिस’ जोड़ा है, ताकि विदेशों में जमा अवैध संपत्तियों पर नजर रखी जा सके। सिल्वर नोटिस में भारत भी भागीदार है।
रेड नोटिस (आरसीएन), किसी भगोड़े पर नजर रखने के लिए सबसे अहम है। रेड नोटिस (आरसीएन) के तहत इंटरपोल द्वारा दुनिया भर की कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्रत्यर्पण, आत्मसमर्पण या इसी तरह की कानूनी कार्रवाई लंबित रहने तक किसी व्यक्ति का पता लगाने और उसे अस्थायी रूप से गिरफ्तार करने का अनुरोध किया जाता है।
कानून से बचने के लिए किसी दूसरे देश में भाग गए किसी भगोड़े के प्रत्यर्पण की दिशा में यह पहला महत्वपूर्ण कदम है।
सभी राज्य और केंद्रीय एजेंसियां इंटरपोल नोटिस के लिए अपना अनुरोध सीबीआई को प्रस्तुत करती हैं, जो सभी इंटरपोल मामलों के लिए भारत की नोडल एजेंसी है।
इसके बाद सीबीआई इंटरपोल से नोटिस जारी करने के लिए अनुरोध करती है और अनुवर्ती कार्रवाई में अंतर-सरकारी संगठन के साथ समन्वय करती है।
इस प्रक्रिया से अवगत एक अधिकारी ने कहा, ‘‘आरसीएन जारी होने के बाद ही किसी भगोड़े का विदेश में पता लगाया जा सकता है। एक बार कथित अपराधी का पता चल जाने के बाद, कूटनीति और कानून प्रवर्तन मिलकर प्रत्यर्पण या निर्वासन सुनिश्चित करने के लिए काम करते हैं।’’
यह वृद्धि न केवल भारत के अनुरोध पर जारी किए गए रेड नोटिस के संदर्भ में, बल्कि अन्य रंग वाले कोड युक्त नोटिसों में भी दिखाई दे रही है।
ब्लू नोटिस की संख्या, जिसके माध्यम से कोई देश किसी व्यक्ति के बारे में जानकारी मांगता है, 2020 में 47 से बढ़कर 2024 में 68 और 2025 में अब तक 86 हो गई है।
अपहरण, गुमशुदगी या पहचान संबंधी मुद्दों का विवरण प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले येलो नोटिस की संख्या 2020 में एक से बढ़कर 2024 में 27 और 2025 में (अब तक) चार हो गई है।
वर्ष 2025 में अब तक कुल 145 इंटरपोल नोटिस जारी किए गए हैं, जबकि 2020 में 73 नोटिस जारी किए गए थे। आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले साल इंटरपोल द्वारा 208 नोटिस जारी किए गए थे।
अधिकारियों ने बताया कि भारत के अनुरोध पर इंटरपोल द्वारा नोटिसों की संख्या में वृद्धि का श्रेय कुशल कूटनीति, संस्थागत दृढ़ता और तकनीकी आधुनिकीकरण के साथ-साथ नवंबर 2022 में सावधानीपूर्वक आयोजित इंटरपोल महासभा और उसके बाद 2023 में जी20 शिखर सम्मेलन को दिया जा सकता है।
भारत के विशेष अनुरोध पर 1997 में यहां दुनियाभर के पुलिस प्रमुखों के वैश्विक सम्मेलन के 25 वर्ष बाद, भारत की स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में 2022 में इंटरपोल महासभा का आयोजन यहां किया गया था।
आम तौर पर, 195 सदस्य देशों में से प्रत्येक को बारी-बारी से वार्षिक आयोजन करने का अवसर मिलता है।
उन्होंने कहा कि यह सभा एक प्रतीक और उत्प्रेरक दोनों के रूप में कार्य करती है, जिससे ल्योन स्थित इंटरपोल के महासचिवालय के साथ एजेंसी का परिचालन संबंध और गहरा होता है।
एजेंसी ने एक आंतरिक पोर्टल ‘भारतपोल’ जनवरी में चालू किया जिससे आरसीएन की प्रक्रिया को (जो ऐतिहासिक रूप से कागजी कार्रवाई और प्रक्रियात्मक सुस्ती में फंसी रहती थी) को आसान बना दिया और समय को औसतन छह महीने से घटाकर तीन महीने कर दिया।
प्रत्यर्पण के लिहाज से परिणाम सामने आए हैं और सीबीआई ने इंटरपोल के साथ-साथ राज्य और केंद्रीय प्रवर्तन एजेंसियों के साथ मिलकर 2020 से 134 भगोड़ों के प्रत्यर्पण या निर्वासन को सुरक्षित करने के लिए समन्वय किया। इनमें से 23 को अकेले इसी वर्ष वापस लाया गया।
इसके विपरीत, 2010 से 2019 के बीच के दशक के दौरान केवल 74 भगोड़ों को वापस लाया गया था। परिणाम उत्साहजनक हैं, लेकिन एजेंसी अब भी अपने निर्धारित लक्ष्यों से बहुत दूर है।
एक अधिकारी ने कहा,‘‘बड़े देशों के अनुरोध पर इंटरपोल के हज़ारों अनुरोध जारी किए जा रहे हैं, जबकि हमारे अनुरोध सैकड़ों में हैं। हम आगे बढ़ रहे हैं और हमें अपनी प्रक्रियाओं में और सुधार करना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि भगोड़ों को कहीं भी सुरक्षित पनाहगाह न मिले।’’
भाषा संतोष नरेश
नरेश