नयी दिल्ली, 21 जुलाई (भाषा) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा गठित एक तथ्यान्वेषी समिति ने पाया है कि भुवनेश्वर स्थित कलिंगा औद्योगिक प्रौद्योगिकी संस्थान (केआईआईटी) की अवैध गतिविधियों के कारण दो नेपाली छात्राओं ने आत्महत्या कर ली तथा प्रशासन की कार्रवाई आपराधिक दायित्व के समान है।
समिति ने कहा, ‘आत्महत्या को टाला जा सकता था।’
यूजीसी ने मई में इस समिति का गठन किया था, जब केआईआईटी की 20 वर्षीय नेपाली छात्रा अपने छात्रावास के कमरे में पंखे से लटकी हुई मिली थी। इससे पहले संस्थान की एक अन्य नेपाली छात्रा प्रकृति लामसाल ने 16 फरवरी को आत्महत्या कर ली थी।
रिपोर्ट कहती है, ‘विश्वविद्यालय की आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) यौन उत्पीड़न के मामलों में कानूनी तौर पर कार्रवाई करने में विफल रही। जांच के प्रोटोकॉल का पालन करने को लेकर कोई पारदर्शिता नहीं थी। लड़की ने इस दुखद घटना से बहुत पहले, प्रशासन से दो बार शिकायत की थी। दोनों ही शिकायतों में, उन्होंने एक अवैध समझौता करने का फैसला किया।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्वविद्यालय को पहली शिकायत के बाद लड़के को सज़ा देने का अधिकार था। हालांकि, उन्होंने लड़की के साथ एक अवैध समझौता कराके लड़के का ‘पक्ष’ लिया, जिसके कारण लड़की ने आत्महत्या कर ली।
इसमें कहा गया है, ‘इस आत्महत्या मामले को टाला जा सकता था।’
समिति ने कहा कि बुनियादी ढांचे और प्रशासन में गंभीर खामियां, यौन उत्पीड़न की शिकायतों की अनदेखी और नियमों, देश के कानून और देश के अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को प्राथमिकता देना, विश्वविद्यालय की ओर से ‘अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों’ में शामिल हैं।
समिति ने कुछ कठोर सिफारिशें की हैं, जिनके आधार पर आयोग विश्वविद्यालय के विस्तार पर रोक लगाने तथा दोषी अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई करने पर विचार कर रहा है।
इसने यह भी कहा कि आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के सदस्य और विश्वविद्यालय के वरिष्ठ प्रशासनिक कर्मचारी ‘कानून के अनुसार आपराधिक दंड के लिए उत्तरदायी हैं।’
इस साल 16 फरवरी को 20 वर्षीय नेपाली छात्रा विश्वविद्यालय के छात्रावास के अपने कमरे में मृत मिली थी। इसके बाद, गुस्साए छात्रों ने परिसर में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, छात्रा के लिए न्याय की मांग की और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय ने उत्पीड़न की शिकायतों को नज़रअंदाज़ किया है। तनाव बढ़ने पर, विश्वविद्यालय ने 500 से ज़्यादा नेपाली छात्रों को जबरन विश्वविद्यालय से निकाल दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘मजबूत सुरक्षा ढांचे के अभाव के कारण अनियंत्रित कदाचार को बढ़ावा मिला… हम अनुशंसा करते हैं कि विश्वविद्यालय को सख्त निर्देश जारी किए जाएं और उसके अनुपालन की समीक्षा की जाए।’
इस समिति की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति नागेश्वर राव ने की। राष्ट्रीय योजना एवं प्रशासन संस्थान की कुलपति शशिकला वंजारी और दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एचसीएस राठौड़ इसके सदस्य थे। यूजीसी की संयुक्त सचिव सुनीता सिवाच समिति की समन्वयक अधिकारी थीं।
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